नकलः सख्त कानून जरूरी
 इलमा अजीम 
तकनीक का जैसे-जैसे ज्यादा इस्तेमाल होने लगा है, देश के विभिन्न राज्यों के लिए प्रतियोगी परीक्षाएं पेपर लीक हुए बिना कराने की चुनौती भी बढ़ गई है। तमाम प्रयासों के बावजूद भर्ती परीक्षाओं में सेंध की खबरें न केवल सरकारी एजेंसियों की कार्यप्रणाली पर सवाल खड़े करती हैं, बल्कि इनमें बैठ रहे लाखों युवाओं को अपने भविष्य को लेकर चिंतित भी करती है। ऐसे में केंद्र सरकार का प्रतियोगी परीक्षाओं में गड़बडिय़ों से निपटने के लिए लाया गया विधेयक समय की जरूरत को देखते हुए बड़ी पहल माना जा सकता है। यह विधेयक लोकसभा में पेश किया जा चुका है। इसमें परीक्षा गड़बड़ी से जुड़े अपराध के लिए अधिकतम 10 साल तक की जेल और एक करोड़ रुपए तक के जुर्माने का प्रावधान किया गया है। सरकार का दावा है कि इस विधेयक में विद्यार्थियों को निशाना नहीं बनाया जाएगा, बल्कि इसमें संगठित अपराध, माफिया और सांठगांठ में शामिल पाए गए लोगों के खिलाफ कार्रवाई का प्रावधान है। 


यह केंद्रीय कानून राज्यों के लिए भी एक मॉडल ड्राफ्ट के रूप में काम करेगा। देखा जाए तो भर्ती परीक्षाओं में पेपर लीक के मामलों से अधिकतर राज्य जूझ रहे हैं। ऐसे संगठित गिरोह विकसित होते जा रहे हैं, जो पेपर लीक की घटनाओं को अंजाम दे रहे हैं। इसकी भयावहता इन आंकड़ों से देखी जा सकती है कि पांच साल के दौरान देश के 12 राज्यों में पेपर लीक के 37 मामले सामने आ चुके हैं। मध्यप्रदेश का व्यापमं और राजस्थान लोक सेवा आयोग तो पेपर लीक को लेकर काफी बदनामी झेल चुका है। गुरुवार को मेरठ एटीएस ने पुलिस भर्ती के 12 साल्वरों को गिरफ्तार किया है। हालात को देखते हुए पेपर लीक के मामले रोकना बेहद जरूरी हो गया है। राजस्थान और हरियाणा ने भर्ती परीक्षाओं में गड़बड़ी रोकने के लिए कानून बनाए हैं। अब केंद्र सरकार भी कानून बना रही है। इसके बावजूद यह कहना कठिन है कि भर्ती परीक्षाओं में सेंध रुक जाएगी। इसकी बड़ी वजह यह भी है कि पेपर लीक और नकल कराने के नित नए तरीके सामने आ रहे हैं। ऐसे में सिर्फ कानून बनाना ही काफी नहीं बल्कि कानून के प्रावधानों की सख्ती से पालना करानी होगी। भर्ती परीक्षाओं के समूचे सिस्टम को ऐसा बनाने की जरूरत है जिससे उसमें सेंध नहीं लगाई जा सके। इन लोगों पर नए कानून के अनुरूप सख्त कार्रवाई होगी तो संगठित गिरोह नहीं पनप सकेंगे। 

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