- प्रोफेसर नंदलाल मिश्र
अधिष्ठाता कला संकाय
महात्मा गांधी चित्रकूट ग्रामोदय विश्वविद्यालय



दुनिया विकास के दौर में आगे बढ़ रही है। सभी प्रकार की सुख सुविधाएं उपलब्ध हो रही हैं। नित नए अविष्कार हो रहे हैं । मनुष्य अपनी आवश्यकताओं को अच्छे ढंग से पूरा करने में लगा हुआ है। फिर भी वह प्रसन्न नहीं है। सबकुछ होने के बाद भी वह उदास है। संसार में सुख और दुख ये ऐसे तत्व हैं, जिसे बारी-बारी से सभी को भोगना है। इन तत्वों का संबंध संसाधनों की पर्याप्तता से या कमी से नहीं है। हमें ऐसा लगता है कि आवश्यकताओं की पूर्ति होने और न होने से भी इनका कोई संबंध है। खुशियां मिलें इसके लिए इंसान ने अनगिनत खोजें कर डालीं। किसी ने अच्छी नौकरी खोज ली। किसी ने उत्तम कोटि का व्यवसाय कर डाला। करोड़ों की संपत्ति अर्जित कर ली। कोई मंत्री बन गया। कोई अफसर बन गया तो कोई जज बन गया। किसी ने अपने मन से लव मैरिज कर लिया तो कोई साधु बन गया।संत बनकर लोगों ने खुशियां तलाशनी चाही तो कुछ दान देकर प्रसन्न रहने की कोशिश की, लेकिन खुशियां कहीं भी मिली नहीं। अच्छे गद्दे और एसी कमरे में भी नीद नही आती क्योंकि मन हल्का नहीं।

हर व्यक्ति अपने जीवन में चार पुरुषार्थों को चेतन या अचेतन प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूपों से प्राप्त करना चाहता है। हालांकि बहुत से लोग हैं जो इनको जानते नहीं हैं फिर भी धन कमाना पैसे की व्यवस्था करना, नदियों में स्नान करना, तीर्थ स्थलों पर जाना, गार्हस्थ जीवन बिताना इत्यादि कार्य करते रहते हैं, पर उन्हें ये पता नहीं की ये पुरुषार्थ हैं। अर्थात जाने अनजाने उसी रास्ते पर चलते हैं। इनको प्राप्त करने में उन्हें बहुत सी कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है और वे परेशान रहते हैं। नौकरीपेशा लोग नौकरी की तिकड़म में परेशान रहते हैं। आधुनिकता ने ऐसे रास्ते दिखा दिए कि आवश्यकताएं अनंत हो गईं और कमाई का साधन छोटा। उन्हें आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए तिकड़म करना ही करना है।
इंसान ने अपनी चाहतों को इतना बढ़ा दिया है कि उनका पेट आसानी से नही भरता। उनके पास करोड़ों रूपये हैं पर आठ दस करोड़ और चाहिए। कैसे चैन से रहेंगे। मानव को यह सब करने के लिए तिकड़म तो करना ही होगा।और उस तिकड़म के रास्ते में क्रोध ईर्ष्या द्वेष जलन कुढन आएगा ही आएगा।उसे पार करना ही पड़ेगा। आज हम जिस पद और प्रतिष्ठा के पायदान पर खड़े हैं छोटा लगता है। आगे पहुंचना है आगे जाने के लिए कुछ को पीछे छोड़ना ही पड़ेगा। शांति कैसे आएगी। तीस लाख के पैकेज पर काम करते हैं पर जब तक पचास लाख न हो जाय चैन कैसे आये।
 खुशियां कैसे आएं। एक किसान और मजदूर जिसके आय की कोई गारंटी नहीं जो अनिश्चितता के कालचक्र में रहता है। उसके पास भी उतनी ही जिम्मेदारियां हैं पर स्वस्थ है आनंदित है। उसे नहीं मालूम कि कल काम मिलेगा या नहीं। किसान को नहीं मालूम कि उसकी फ़सल सही सलामत उसके घर आ जायेगी। उसने लड़की की शादी तय कर रखी है उसे करना ही करना है। फिर भी वह आनंदित है। यह निश्चिन्तता किस काम की। किसान मजदूर ईश्वर में मन से आस्था रखता है उसे भरोसा है कि जिसने जन्म दिया है वह रास्ता भी देगा। यही विश्वास उसे निश्चिन्त रखता है। भगवान कृष्ण कहते भी हैं-
     अनन्याश्चिन्तयन्तो माम् ये जनाः पर्युपासते।
      तेषा नित्य अभियुक्तानं योग क्षेमम वहामयहम।।
        जो लोग निश्चिन्त होकर मेरे में भरोसा करते हैं। दिन रात मुझको ही याद करते हैं मैं अपने उन भक्तों को सभी वस्तुएं उपलब्ध करवाता हूँ और न सिर्फ उपलब्ध कराता हूँ बल्कि उसकी सुरक्षा भी करता हूँ।
असीमित की चाह रखने वाले को असीमित गलतियां भी करनी पड़ती हैं।जिससे उनका अंतःकरण दूषित हो जाता है। हम अपने आप को समझ ही नहीं सके। जब तक अपने को नहीं समझेंगे सही रास्ता नहीं पा सकेंगे।इसलिए अहर्निश हमें इसका ध्यान रखते हुए आगे बढ़ना है, अन्यथा हम जीवन भर इसी तरह परेशान होते रहेंगे और गाते रहेंगे इस शहर में हर शख्स परेशान सा क्यूँ है।


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