अनमोल  गांव मेरे, भारत की शान हैं ये,
मेरा देश इनमें बसता, भारत का मान हैं ये।
जहाँ पर सुबह सबेरे,  मुँडेर बैठ कागा,
आवाज दे अतिथि को, बोलेहै आजा आजा,
वहीं पास गोठ से भी, गइया रँभा रही हैं,
है समय दुहने का, स्मरण करा रही हैं,
बैलों की जोड़ी सिन्धी, कृषक की शान हैं ये,
मेरा देश इनमें बसता, भारत का मान हैं ये।
खेतों में बैल हलवाह, संगत जो कर रहे हैं,
मेरे गांव की मृदा को, वो स्वर्ण कर रहे हैं,
ले हाथ में कुदाली, सिर पोटली में रोटी,


आई है सुन्दरी भी, बिटिया है साथ छोटी,
बस खेत इनका जीवन,खेती की जान हैं ये,
मेरा देश इनमें बसता, भारत का मान हैं ये।
होते हैं प्रेम मूरत, मेरे गांव के निवासी,
है श्रेष्ठ भाईचारा, कोई भी हो निवासी,
सरहद की रक्षा करते, सारे युवक यहाँ के,
हो फौज में वे शामिल, करें सामना जहाँ के,
मेरे देश के सिपाही, दौलत हैं जान हैं ये
मेरा देश इनमें बसता, भारत का मान हैं ये।
 - नरेश चन्द्र उनियाल,
  पौड़ी गढ़वाल, उत्तराखण्ड।


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