खोए हाथ' के दर्द से पीड़ित मरीज को महज पांच दिन में दी राहत

न्यूरोलॉजी विभाग ने 'फैंटम लिम्ब सिंड्रोम' नामक एक जटिल और पीड़ादायक स्थिति से जूझ रहे एक मरीज का सफलतापूर्वक इलाज 

 मेरठ। मेडिकल कॉलेज  के सुपरस्पेशलिटी हॉस्पिटल के न्यूरोलॉजी विभाग ने 'फैंटम लिम्ब सिंड्रोम' नामक एक जटिल और पीड़ादायक स्थिति से जूझ रहे एक मरीज का सफलतापूर्वक इलाज करके एक उल्लेखनीय चिकित्सकीय उपलब्धि हासिल की है। इस सिंड्रोम में अंग विच्छेदन के बाद भी मरीज को खोए हुए अंग में तीव्र दर्द, जलन और झनझनाहट जैसी विकट संवेदनाएँ होती रहती हैं।

सरधना निवासी 40 वर्षीय पवन सितंबर 2025 में हुई एक भीषण सड़क दुर्घटना का शिकार हुए, जिसमें उन्हें अपना दाहिना हाथ कोहनी के नीचे से खोना पड़ा। दुर्घटना के लगभग एक महीने बाद, पवन ने अपने उस 'खोए हुए' हाथ में तीव्र दर्द और जलन का अनुभव करना शुरू कर दिया। यह दर्द इतना अधिक था कि उनकी दैनिक जीवनचर्या और नींद तक बुरी तरह प्रभावित होने लगी।स्थानीय चिकित्सकों से उपचार कराने के बाद भी जब उन्हें कोई राहत नहीं मिली, तो वह निराशा और असहनीय पीड़ा के साथ एल.एल.आर.एम. मेडिकल कॉलेज के न्यूरोलॉजी ओपीडी पहुंचे। यहाँ विभागाध्यक्ष डॉ. दीपिका सागर के नेतृत्व में टीम ने उनकी स्थिति की गंभीरता को तुरंत पहचाना और उन्हें तत्काल भर्ती कर उपचार शुरू किया।

क्या है फैंटम लिंब सिंड्रोम?

डॉ.दीपिका सागर ने बताया कि फैंटम लिंब सिंड्रोम एक न्यूरोलॉजिकल समस्या है, जिसमें विच्छेदन के बाद भी मस्तिष्क उस अंग के होने का संकेत देता रहता है। यह स्थिति लगभग 80 से 100 प्रतिशत अंग विच्छेदन करवाने वाले मरीजों में देखी जाती है। इसका सही समय पर इलाज न होने पर मरीज की जीवन-गुणवत्ता गंभीर रूप से प्रभावित हो सकती है और वह मानसिक तनाव का भी शिकार हो सकता है।

पाँच दिन में कैसे मिली राहत?

पवन केइलाज में एक समन्वित और बहु-आयामी दृष्टिकोण अपनाया गया। डॉ. सागर के मार्गदर्शन में तैयार उपचार योजना में निम्नलिखित चीज़ें शामिल थीं:

1. विशिष्ट औषधीय प्रबंधन: तंत्रिका आधारित दर्द (न्यूरोपैथिक पेन) को नियंत्रित करने के लिए विशेष दवाएँ।

2. केंद्रीय दर्द नियंत्रण रणनीतियाँ: दर्द के मस्तिष्क में पहुँचने वाले संकेतों को मॉड्युलेट करना।

3. निरंतर न्यूरोलॉजिकल मॉनिटरिंग: मरीज की प्रतिक्रिया को करीब से देखना और उपचार में आवश्यक समायोजन करना।

4. मनोवैज्ञानिक परामर्श: दर्द से जुड़े मानसिक तनाव और भय को दूर करने के लिए समर्थन।

इस व्यापक देखभाल का परिणाम चौंकाने वाला रहा। महज पाँच दिनों के समर्पित उपचार के बाद ही पवन के दर्द और असुविधा में स्पष्ट और उल्लेखनीय कमी देखी गई। उनकी स्थिति में सुधार को देखते हुए, चिकित्सकीय टीम ने उन्हें संतोषजनक स्थिति में अस्पताल से छुट्टी दे दी।

'मैं फिर से सो पा रहा हूँ',

राहत महसूस करते हुए पवन ने कहा, "पिछले कुछ हफ्ते नरक जैसे थे। मैं समझ नहीं पा रहा था कि जो हाथ है ही नहीं, उसमें इतना तेज़ दर्द क्यों हो रहा है। डॉक्टरों ने मेरी बात समझी और एक योजना बनाई। अब दर्द काफी कम हो गया है और मैं फिर से सामान्य रूप से सो पा रहा हूँ। मैं पूरी टीम का आभारी हूँ।"

डॉ. दीपिका सागर ने इस सफलता को टीमवर्क और समय पर हस्तक्षेप का परिणाम बताया। उन्होंने कहा, "फैंटम लिंब पेन का इलाज अक्सर चुनौतीपूर्ण होता है, क्योंकि इसके लिए सिर्फ दर्द निवारक दवाएँ काम नहीं करतीं। हमें तंत्रिका तंत्र और मस्तिष्क पर काम करने वाली एक व्यापक रणनीति की आवश्यकता होती है। पवन का मामला इस बात का ज्वलंत उदाहरण है कि सही निदान और बहु-विषयक उपचार से ऐसे मरीजों को जल्द राहत दिलाई जा सकती है और उन्हें एक बेहतर जीवन वापस मिल सकता है।"

यह मामला उन सभी अंग विच्छेदन करवा चुके मरीजों के लिए एक आशा की किरण है, जो फैंटम दर्द से पीड़ित हैं और इसके बारे में खुलकर बात नहीं कर पाते। विशेषज्ञों का मानना है कि ऐसे मरीजों को तुरंत न्यूरोलॉजी विशेषज्ञ से परामर्श लेना चाहिए। प्राचार्य डॉ आर सी गुप्ता ने न्यूरोलॉजी विभाग की विभागाध्यक्ष डॉ. दीपिका सागर व उनकी पूरी टीम को इस उपलब्धि हेतु शुभकामनाएँ दी।

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