चौ. चरण सिंह की  जंयती पर विवि में कवि सम्मेलन का आयोजन 

 तिरंगे से लेकर दोस्ती तक कवियों ने मंच से पढ़ी कविताएं 

 मेरठ। विवि के नेताजी सुभाष चंद बोस के ओडिटाेरियम में देश पूर्व प्रधानमंत्री किसानों के मसीहा चौधरी चरण सिंह की जंयती पर आयोजित कवि सम्मेलन में कवियों ने दोस्ती से लेकर देशभक्ति शब्दों से कवि सम्मेलन में चार चाँद लगा दिये। कवि सम्मेलन में देश के विभिन्न हिस्सों से आए प्रतिष्ठित कवियों ने राष्ट्रभक्ति, सामाजिक सरोकार, मानवीय संवेदनाओं और समकालीन यथार्थ से जुड़ी रचनाओं का प्रभावशाली पाठ किया। कविताओं ने श्रोताओं को भाव-विभोर कर दिया और बार-बार तालियों की गूंज से सभागार गूंजता रहा।

किसान नेता एवं भारत के पूर्व प्रधानमंत्री स्वर्गीय चौधरी चरण सिंह जी की जयंती की पूर्व संध्या पर हर वर्ष की भांति इस वर्ष भी साहित्यिक–सांस्कृतिक परिषद, चौधरी चरण सिंह विश्वविद्यालय के तत्वावधान में एक राष्ट्रीय कवि सम्मेलन का भव्य आयोजन किया गया।



इस अवसर पर विश्वविद्यालय की कुलपति प्रोफेसर संगीता शुक्ला, पूर्व प्रतिकुलपति प्रोफेसर एम. के. गुप्ता, प्रोफेसर वीरपाल सिंह, प्रोफेसर कृष्णकांत शर्मा, प्रोफेसर नीलू जैन गुप्ता सहित अनेक गणमान्य शिक्षक, साहित्यकार एवं छात्र-छात्राएं उपस्थित रहे।

 अंबेडकर नगर से आए कवि अभय सिंह ने  आओ इसको शीश नवाएं,मुट्ठी कसकर शपथ उठाएं,तीन रंग का ईश्वर है ये,हर पल इसे निहारेंगे,अपने पूज्य तिरंगे की हम,आरती सदा उतारेंगे,भारत माता का हरगिज सम्मान नहीं खोने देंगे,अपने पूज्य तिरंगे का अपमान नहीं होने देंगे सुनाकर तिरंग के सम्मान में कविता पाठ किया। 

 कवि हरिओम पंवार ने नई सदी परमाणु बम के गहने पहने बैठी है  .घायल धरती मां अम्बर से पीड़ा कहने बैठी है  .मुझको ये पूरी दुनिया लाचार दिखाई देती है  .चीर हरण के चौसर का दरबार दिखाई देती है,मेरी कलम कामना गाती है जग की खुश हाली की  .लेकिन दिल में आग भरी है दुनिया की बदहाली की  . युद्ध के मुहाने पर बैठी दुनिया और धरती  को पुकार के साथ बदहाली को रेखांकित किया। 

सुदीप भोला ने ना केवल मंदिर के निर्माण,ना केवल पूजा विधि विधान,ना केवल भक्तों के भगवान,ये होगा उन सब का सम्मान,योग में देह दे गये दान,शिलामें समा गये जो प्राण,ये सूचित हो इतिहासों को,बिछाकर कर अपनी लाशों को,समय की कड़ी कसौटी पर खरी उतरी जो निष्ठा है,राम के नाम लुटा गये प्राण ये उनकी प्राण प्रतिष्ठा है सुनाकर तालियां बटौरी । 



प्रियांशु गजेन्द्र  ने  सुनता हूँ वे लोग बड़े हैं जो गीता और वेद पढ़े हैं,हमने पूरी रामायण में शबरी के दो बेर पढ़े हैं,जीवन में उनका रस घोल,निकले हैं रचने भूगोल,फूल लिखेंगे माथे पर अंगारों के,हम हैं राही प्यार भरे बाज़ारों के कविता की जमकर तारीफ की।

 कवि  सुमनेश  सुमन ने कल थे असफल मगर अब सफल हो गये,अपना दल दल बदल दल बदल हो गये,इस तरह हो गई उनपे भगवत्कृपा,बेहया फूल थे अब कमल हो गये,मेरा अरमान रह जाए  .वतन की शान रह जाए   .ज़माने में सुमन गंगाजली  ,पहचान रह जाए  .तिरंगे का निशा थोड़ा ,मुझे भी तो  मयस्सर हो.मेरे होटों पे जिंदाबाद  .हिन्दुस्तान रह जाए   .कविता पर ओडिटाेरियम तालियाें सें गुंज उठा। 

मुमताज़ नसीम ने  किसक़दर साफ़ है आज़ादी की रोशन तस्वीर,जगमगायेगी भला क्यों नहीं अपनी तक़दीर,हम अहिंसा के तरफ़दार मोहब्बत के असीर,आत्मा अपनी है बेदार तो ज़िंदा है ज़मीर,कल जो ग़ैरों की थी ओरों की थी सारी दुनिया,हमको है गर्व के है आज हमारी दुनिया  पेश की वाह वाही लूटी। 

डॉ अनुज त्यागी ने सारे हल मिल जाते चाहे जैसी भी हो उलझन,मिले यार तो लगे लौट के आया जैसे बचपन,क्या बोले की सब के सब मक्कार बहुत थे यार,खूब सताते फिर कहते चल चिल करते हैं यार,सभी को इस ज़माने में सभी चीज़ें नहीं मिलतीं,‌किसी बाजार में अनमोल तहजी़बें में नहीं मिलतीं,जहां की हर अदालत से बड़ी कोई अदालत है,वहां बस फैसले होते हैं तारीखें  नहीं मिलतीं काफी दर्शकों ने प्रंसद की। 



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