मूल आवंटी के सामने आने पर सकते में आए व्यापारी 

 दर्जनों व्यापारियों ने मीडिया के लिए पत्र लिखकर अपना बयान जारी किया

मेरठ। सेंट्रल मार्किट में ध्वस्त हुए 661/6 के कॉम्पलेक्स पर अब नया विवाद जन्म लेता दिख रहा है और वो है मूल आवंटी की दावेदारी का। गुरूवार को समाचार पत्रों में छपी खबर से व्यापारी भी सकते में आ गए। जिसके बाद सभी मीटिंग की और निर्णय लिया कि वह भी अब चुप नहीं बैठेंगे। यदि जरूरत पड़ी तो मूल आवंटी की दावेदारी करने वाले व्यक्ति के खिलाफ धोखाधड़ी का वाद दायर कराएंगे। दर्जनों व्यापारियों ने मीडिया के लिए पत्र लिखकर अपना बयान जारी किया है।

पत्र में कहा गया है कि 661/6 सैन्ट्रल मार्केट शास्त्रीनगर मेरठ के मूल आवंटी स्व० श्री वीर सिंह निवासी काजीपुर के वारिसान द्वारा जो प्रार्थना पत्र आवास विकास अधिकारियों को पुनः कब्जा हासिल करने के लिए दिया गया है। वो पूरी तरह अमानत में खयानत वाला प्रतीत हो रहा है। 

व्यापारियों ने बताया कि उक्त प्लाट का आवंटन सन् 1984 में वीर सिंह को हुआ था और आवंटी द्वारा सन् 1989 में 12 दुकानें बनाकर किराये पर दे दी गई। जैसे-जैसे किरायेदारों की सामर्थ बनी वह अपनी-अपनी दुकानें सन् 1994 से सन् 2010 तक व्यवसायिक बैनामे द्वारा श्री वीर सिंह से खरीद ली। इसमें भी हमें धोखे में रखकर आवासीय भूखण्ड पर व्यवसायिक स्टाम्प शुल्क लेकर रजिस्ट्री कर दी। इन दुकानों के पिछले भाग में कुछ भूमि रिक्त थी जिसका मुख्तारनामा वीर सिंह द्वारा विनोद अरोरा को सन् 2012 में कर दिया गया। विनोद अरोरा द्वारा उक्त भूमि पर निर्माण कर बैनामे द्वारा दुकानें बेच दी गई। सन् 1989 से 2025 तक सभी व्यापारी अपनी-अपनी दुकानें पर काबिज हैं तथा सभी व्यापारी द्वारा अपने-अपने बैनामे आवास विकास कार्यालय में प्रस्तुत किये जा चुके हैं। नगरनिगम कार्यालय में भी उक्त कॉम्पलैक्स व्यवसायिक में दर्ज है। मूल आवंटी के वारिसान द्वारा हम पर जो कब्जे का आरोप लगाया गया है वह बिल्कुल झूठा है। 

आज तक लगभग 36 वर्षों में मूल आवंटी व उसके वारिसान द्वारा कोई भी वाद किसी भी थाने या न्यायालय में प्रस्तुत नहीं किया गया।  चूँकि सुप्रीम कोर्ट के आदेशानुसार उक्त कॉम्पलैक्स का ध्वतीकरण हो चुका है अतः स्व० वीर सिंह के वारिसान द्वारा अमानत में ख्यानत की नीयत से यह दावा किया गया है। व्यापारी अब सभी वारिसानों के विरूद्ध वाद दायर कराने के लिए मजबूर हैं और पुलिस एवं प्रशासन से कार्यवाही करने की मांग की ज रही है। व्यापारियों का आरोप है कि उन्हें मूल आवंटी ने आवासीय प्लाट को व्यवसायिक बताकर धोखाधडी से बेचा गया और सभी व्यापारियों ने तय राशि देने के बाद ही दुकानों के बैनामे कराए हैं।

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