हार्ट फेलियर अचानक नहीं होता जागरूकता से बच सकती है ज़िंदगी
- चुपचाप बढ़ता हार्ट फेलियर समय पर पहचान न हो तो बन सकता है जानलेवा
मेरठ: अक्सर हार्ट फेलियर को लोग एक अचानक होने वाली बीमारी समझ लेते हैं, जबकि सच्चाई यह है कि यह एक धीमी और धीरे-धीरे बढ़ने वाली समस्या है, जो कई सालों में चुपचाप विकसित होती है। इसी वजह से इसे “साइलेंट एपिडेमिक” भी कहा जाता है। भारत में हाई ब्लड प्रेशर, डायबिटीज़, कोरोनरी आर्टरी डिज़ीज़ और लाइफस्टाइल से जुड़े रिस्क फैक्टर्स बढ़ने के साथ हार्ट फेलियर के मरीजों की संख्या लगातार बढ़ रही है। इसे और खतरनाक बनाता है इसके शुरुआती लक्षणों का हल्का होना, जिन्हें अक्सर सामान्य थकान या उम्र का असर मानकर नज़रअंदाज़ कर दिया जाता है।
मेदांता हॉस्पिटल, नोएडा के इलेक्ट्रोफिज़ियोलॉजी व इंटरवेंशनल कार्डियोलॉजी विभाग के डायरेक्टर डॉ. अमित कुमार मलिक ने बताया कि “हार्ट फेलियर का मतलब यह नहीं है कि दिल काम करना बंद कर देता है। इसका अर्थ है कि दिल शरीर की ज़रूरत के अनुसार पर्याप्त और प्रभावी तरीके से खून पंप नहीं कर पाता। यह स्थिति तब होती है जब हार्ट मसल कमज़ोर हो जाए, सख्त हो जाए या दिल की इलेक्ट्रिकल एक्टिविटी में गड़बड़ी आ जाए। एक इलेक्ट्रोफिज़ियोलॉजिस्ट और इंटरवेंशनल कार्डियोलॉजिस्ट के तौर पर मैं अक्सर ऐसे मरीज देखता हूँ, जो काफी देर से आते हैं, जब लक्षण गंभीर हो चुके होते हैं और उनकी क्वालिटी ऑफ लाइफ पहले ही प्रभावित हो चुकी होती है। हार्ट फेलियर से निपटने की सबसे बड़ी चुनौती है इसकी शुरुआती पहचान। शुरुआती लक्षण आमतौर पर हल्के होते हैं और धीरे-धीरे बढ़ते हैं। रोज़मर्रा के कामों में सांस फूलना, पहले जितनी एक्सरसाइज़ न कर पाना, बिना वजह थकान, पैरों या टखनों में सूजन और फ्लूड रिटेंशन के कारण अचानक वज़न बढ़ना इसके आम शुरुआती संकेत हैं।“
कुछ मरीजों को सोते समय परेशानी होती है, सांस लेने के लिए ज़्यादा तकियों की ज़रूरत पड़ती है या रात में अचानक सांस फूलने से नींद खुल जाती है। दिल की धड़कन तेज़ या अनियमित लगना, चक्कर आना या बेहोशी के कारण भी दिल की इलेक्ट्रिकल समस्या की ओर इशारा कर सकते हैं, जो आगे चलकर हार्ट फेलियर का कारण बनती है। कई बीमारियाँ हार्ट फेलियर का खतरा बढ़ाती हैं। लंबे समय तक अनकंट्रोल्ड हाई ब्लड प्रेशर दिल पर ज़्यादा दबाव डालता है और धीरे-धीरे हार्ट मसल को कमज़ोर कर देता है। ब्लॉक्ड कोरोनरी आर्टरीज़ दिल तक खून की सप्लाई कम कर देती हैं, जिससे डैमेज और स्कारिंग हो जाती है। डायबिटीज़ ब्लड वेसल डिज़ीज़ को तेज़ी से बढ़ाती है, जबकि मोटापा, स्मोकिंग, ज़्यादा शराब और फिज़िकल एक्टिविटी की कमी इस खतरे को और बढ़ा देती है। अगर हार्ट रिदम की गड़बड़ियों का समय पर इलाज न हो, तो वे भी दिल की पंपिंग क्षमता को धीरे-धीरे नुकसान पहुंचाती हैं।
डॉ. अमित ने आगे बताया कि “बचाव की शुरुआत इन रिस्क फैक्टर्स को समय रहते और लगातार कंट्रोल करने से होती है। बिना किसी लक्षण के भी रेगुलर हेल्थ चेक-अप बेहद ज़रूरी हैं, खासकर उन लोगों के लिए जिनके परिवार में हार्ट डिज़ीज़ का इतिहास रहा हो। ब्लड प्रेशर, ब्लड शुगर, कोलेस्ट्रॉल और बॉडी वेट को नियमित रूप से मॉनिटर करना और सुरक्षित सीमा में रखना चाहिए। कोरोनरी आर्टरी डिज़ीज़ की समय पर पहचान और सही इलाज दिल को होने वाले स्थायी नुकसान से बचा सकता है और हार्ट फेलियर की संभावना कम करता है। लाइफस्टाइल में बदलाव, हार्ट फेलियर की रोकथाम और लंबे समय तक मैनेजमेंट में अहम भूमिका निभाता है। कम नमक, कम सैचुरेटेड फैट और प्रोसेस्ड फूड से दूरी रखने वाला हार्ट-हेल्दी डाइट, फ्लूड ओवरलोड और ब्लड प्रेशर को कंट्रोल करने में मदद करता है। व्यक्ति की क्षमता के अनुसार नियमित फिज़िकल एक्टिविटी दिल को मज़बूत बनाती है और ओवरऑल कार्डियोवैस्कुलर फिटनेस सुधारती है। स्मोकिंग छोड़ना और शराब का सेवन सीमित करना दिल की सेहत के लिए बेहद ज़रूरी कदम हैं।“
कार्डियोलॉजी में हुई प्रगति ने हार्ट फेलियर के मरीजों के नतीजों में काफ़ी सुधार किया है। समय पर डायग्नोसिस से सही दवाइयों, डिवाइस-बेस्ड ट्रीटमेंट और इंटरवेंशनल प्रोसीजर्स के ज़रिए दिल की कार्यक्षमता को स्थिर किया जा सकता है और सर्वाइवल बेहतर होता है। पेसमेकर और डिफिब्रिलेटर जैसे कार्डियक डिवाइसेज़, खासकर रिदम-से जुड़े हार्ट फेलियर में, अचानक कार्डियक डेथ से बचाने और दिल की एफिशिएंसी सुधारने में अहम भूमिका निभाते हैं।
मरीजों की जागरूकता भी उतनी ही ज़रूरी है। अगर सांस फूलना, सूजन, बिना वजह थकान या दिल की धड़कन से जुड़ी परेशानी लंबे समय तक बनी रहे, तो तुरंत डॉक्टर से सलाह लेनी चाहिए। इन्हें सिर्फ तनाव या उम्र का असर मानकर टालना डायग्नोसिस में देरी कर सकता है और इलाज के विकल्प सीमित हो सकते हैं।
हार्ट फेलियर भले ही एक साइलेंट एपिडेमिक हो, लेकिन यह न तो अपरिहार्य है और न ही लाइलाज। सही जानकारी, समय पर पहचान, प्रिवेंटिव केयर और उचित इलाज से इसकी प्रगति को काफी हद तक धीमा किया जा सकता है, जिससे मरीज एक एक्टिव और बेहतर जीवन जी सकते हैं।


No comments:
Post a Comment