यह वही पेड़ है जहां पर क्रांतिकारियों को फांसी पर लटकाया गया था 

 इस गांव में 168 साल  से नहीं मनाया जाता दशहरा 

1857 में विजयदशमी के दिन यहां 9 जवानों ने दी थी शहादत, ये मातम का दिन

 मेरठ। मेरठ का एक गांव ऐसा भी जहां दशहरा नहीं मनाया जाता है।  गांव में कई ऐसे परिवार हैं जिनके लिए दशहरा खुशी का नहीं बल्कि गम का दिन है। इस दिन गांव के ये परिवार मातम मनाते हैं।सालों से गांव के इन परिवारों में यही परंपरा चली आ रही है। क्योंकि विजय दशमी के दिन गांव में नौजवान शहीद हो गए थे। देश की आजादी के लिए उन्होंने अपनी शहादत दी थी। 

हम बात कर रहे है परतापुर क्षेत्र में पड़ने वाले गांव गगोल की ।  गांव का दर्द आज भी अलग है। यहां के लोग पिछले 168 साल से दशहरा नहीं मनाते। वजह है 1857 की क्रांति में गांव के वीरों की शहादत। 1857 की क्रांति के दौरान अंग्रेजों ने दशहरे के दिन गगोल गांव के नौ वीर सपूतों को गांव के ही एक पीपल के पेड़ पर फांसी पर लटका दिया था। उस दिन का दर्द और शहादत आज भी गांव के लोगों की यादों में जिंदा है। तभी से गांव में दशहरा और रावण दहन की परंपरा बंद कर दी गई।जिस पीपल के पेड़ पर फांसी लटकाई उसकी पूजा करते स्थानीय निवासी पवन का कहना है कि दशहरा उनके लिए पर्व नहीं, बल्कि शोक का दिन है। इस दिन गांव वाले अपने शहीदों को याद कर श्रद्धांजलि अर्पित करते हैं। गांव में आज भी लोग उस पीपल के पेड़ को शहादत का प्रतीक मानकर नमन करते हैं।



इन 9 लोगों को हुई थी फांसी

विजयदशमी के दिन गांव के रहने वाले राम सहाय सिंह, घसीटा सिंह, रम्मन सिंह, हरजस सिंह,हिम्मत सिंह,कढेरा सिंह, शिब्बा सिंह,बैरम सिंह,दरबा सिंह को अंग्रेजों ने पीपल के पेड़ पर लटकाकर फांसी दे दी थी। उन्हीं की कुर्बानी को याद करते हुए इस दिन को उनके नाम समर्पित करते हैं। शहीदों की याद में गांव में शहीद द्वार भी बनाया गया है। यह द्वार शौर्य, बलिदान और स्वतंत्रता की अमर गाथा

गांव में बनाया भव्य स्मारक

गांव गगोल में 1857 की क्रांति के 9 अमर शहीदों की याद में भव्य शहीद स्मारक बनाया गया है। इस स्मारक पर शहीदों के नाम अंकित हैं और इसमें बनाई गई 9 सीढ़ियाँ उनके बलिदान का प्रतीक हैं।

ग्रामीण बोले हमारे लिए ये दुख का त्योहार है

कालूराम ने बताया कि वह गगोल गांव के ही रहने वाले हैं उन्होंने बताया कि 1857 की क्रांति के दौरान गांव के 9 लोगों को अंग्रेजों ने पीपल के पेड़ पर लटका दिया था जो गुर्जर समाज से थे इसी वजह शहीदों की याद में पूरा गांव दशहरा नहीं मनाता है और ना रावण का दहन करते उन्होंने बताया कि इसी वजह से गांव में दशहरा नहीं मनाया जाता और दुख इस बात का है कि उन्हें कोई याद नही करता।

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