निकल पड़े हैं करने दर्शन यह भोले मतवाले 

मेरठ-दून हाई वे 'सुनहरी यादों के सफर से सराबोर'

लाखों कांवड़िए अब तक हरिद्वार से उठा चुके हैं पवित्र गंगा जल 

 शिव की भक्ति में आस्था हुई 'सस्ती' 

 शिवरात्रि में शिवभक्तों के लिए आशुतोष को मनाना हुआ आसान .

मेरठ। 'भांग की गोली मुंह में रखकर कांधे कांवड़ डाले, निकल पड़े हैं करने दर्शन ये भोले मतवाले'। हर साल की तरह इस साल भी अपने शिव से मिलन की आस लिए लाखों शिव भक्त कांवड़िए अपना घर बार छोड़ अपनी ही धुन में अपने बाबा के द्वार के दर्शन के लिए निकल पड़े हैं। 11 जुलाई से शुरु हुए सुनहरी यादों के इस सफर के दौरान शिव की भक्ति में मानो आस्था भी सस्ती हो गई। इस दौरान शिव भक्त अपने आशुतोष को मनाने के लिए अपने पैरों के छालों की परवाह किए बिना लगातार आगे बढ़ रहे हैं। तपती धरा हो या बरसता पानी, शिव भक्त बस घड़ी की चौथाई में अपने भोले के द्वार पर अपनी आमद दर्ज कराने को आतुर हैं। आतुर हों भी क्यों न, क्योंकि यह मौका तो साल में एक बार ही आता है। 'बाबा ने बुलाया है कांवड़िया आया है, भोले की भक्ति में वो तो समाया है'। कुछ इसी तर्ज पर भोले के भक्त अपने आशुतोष के बुलावे पर हरिद्वार की ओर बेपरवाह होकर दौड़ पड़े हैं। अक्सर देखा जाता है कि जब भी शिव भक्त कांवड़िए अपने आशुतोष का जलाभिषेक करने के लिए गंगा मैया की गोद से जल लेकर निकलते हैं तो उनमें एक अलग ही उतावलापन होता है और यह उतावलापन अपने बाबा (भगवान शिव) के प्रति किसी दीवानगी से कम नहीं दिखता। आस्था रूपी इस दीवानगी पर आखिर कोई कैसे वारे न जाए। 'पी कर भरे भांग का प्याला, भोला नाचे है मतवाला'। इसी तर्ज पर तमाम कांवड़िए श्रावण मास में अपने पैरों की थिरकन भी भोले को अर्पित करेंगे। भगवान शिव को समर्पित सावन के महीने में आयोजित होने वाली कावड़ यात्रा में शामिल शिव भक्तों की भीड़ अब रेला बनती नजर आ रही है। अब इसे भगवान शिव के प्रति उनके भक्तों की दीवानगी कहें या फिर मन्नतें पूरी करवाने का जज्बा कि यह यात्रा अब वैश्विक स्तर पर गिनी जाने लगी है। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार इसी माह शिव जी और पार्वती का मिलन भी हुआ था। यह भी मान्यता है कि इस महीने भोले को मनाना बेहद आसान है। 

कांवड़ यात्रा के नियम 

 केवल सात्विक भोजन ही करना है

 मांसाहार और शराब का सेवन नहीं करना 

रास्ते में कहीं भी कांवड़ जमीन पर नहीं रखना

 विश्राम के समय भी कांवड़ को जमीन से ऊंचाई पर लटकाना

जिस मंदिर में अभिषेक का संकल्प, वहां तक पैदल सफर

कैसे शुरु हुई कांवड़ यात्रा 

इसकी अलग-अलग मान्यताएं हैं। एक मान्यता के अनुसार सबसे पहले त्रेता युग में श्रवण कुमार अपने माता-पिता को कांवड़ में बैठाकर हरिद्वार ले गए। वहां उन दोनों को गंगा में स्नान कर आया। इसके बाद श्रवण कुमार गंगाजल लेकर वापस आए और उन्होंने इस जल को अपने माता-पिता के साथ शिवलिंग पर अर्पित किया और तभी से यह यात्रा शुरु हुई। दूसरी मान्यता के अनुसार भगवान परशुराम ने गढ़मुक्तेश्वर से गंगाजल भर कर शिवलिंग पर अर्पित किया था और तभी से यह यात्रा प्रारंभ मानी गई है।


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