यात्रा में


जब भी होता हूं घर की यात्रा में
दाएं-बाएं छूटता है,
तिरछे निशान के साथ
दशकों से तटस्थ भाव से
अपनी टांगों पर खड़ा
यह हरा बोर्ड बताता है
यहां से ठीक 20 किलो मीटर है -
'मड़ियाहूं '

पर वह यह कहां बता पाता है
अब कितनी दूरी रह गई शेष -
उस स्थान से मेरे हृदय की?


शर्की और तुगलक शासक के
प्रेम, विचार और शिक्षा के बुनियाद के पत्थर पर खड़े

मेरे प्यारे 'शिराज-ए-हिंद '
दो शिराओं को जोड़ने वाले
'शाही' --  से जब गुजरता हूं
तुम हमेशा याद आते हो
अपने सिर की ऊंचाई और
गोमती की तरलता के साथ
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- अवनीश यादव
इलाहाबाद विश्वविद्यालय।

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