हम दुनियाँ के वो लोग
हम दुनियाँ के वो लोग हैं
जिन्होंने रिश्तों की मिठास
और रिश्तों को खट्टास को
करीब से महसूस किया है
रिश्तों के नाम मे धोखा भी
कइयों को खाते देखा है
अनजाने से रिश्तों पे
जान लुटाते देखा है।
कुछ जो फर्श से अर्श हुए
अटारियों की अकड़ को
जमी पे आते देखा है।
हम दुनियाँ के वो लोग हैं
जिन्होंने ऐसा अविश्वसनीय
सा नजारा देखा है,
जिसका विश्वास न था ऐसे
लोगों को बिछुड़ते देखा है।
करोनाकाल में पति-पत्नी ,
बाप-बेटा, भाई-बहन को
एक दूसरे को छूने से भी
डरते हुए भी देखा है।
इन रिश्तों की बात ही क्या?
आदमी को अपने ही हाथ से
अपनी ही नाक और मुंह को
छूने से डरते हुए भी देखा है।
बिना चार कंधों के "अर्थी " को
श्मशान घाट जाते हुए देखा है।
पार्थिव शरीर को दूर से ही
अग्नि दाग लगाते हुए देखा है।
हम आज के भारत की
एकमात्र वह पीढी हैं
जिसने माँ-बाप की बात और
बच्चों की बात मानते देखा है।
बस ये नजर अब न दिखे
ईश ऐसी कामना करते है
हम वो अंतिम लोग बने।
जिन्होंने ये नजर देखा हो
मानवता अब फिर से फूले।
निष्ठा विश्वास के अब फल लगे
रिश्तों में मिठास वही हो
पारिवारिक रिश्ता मजबूत बने।
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- श्याम कुमार कोलारे
सामाजिक कार्यकर्ता, छिन्दवाड़ा (म.प्र.)।
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