जबरदस्ती का मुद्दा हिजाब

कर्नाटक हाईकोर्ट की टिप्पणी और अब सुप्रीमकोर्ट की रायके बाद साफ होता जा रहा है कि हिजाब कोई मुद्दा ही नहीं है। उसेे विवाद और बवाल बना दिया गया है। यदि कुछ कथित मुस्लिम स्कॉलर मानते हैं कि इस्लाम, कुरान में हिजाब को जरूरी बताया गया है, तो कई ऐसे विद्वान भी हैं, जो इसे नहीं मानते और इस व्यवस्था के खिलाफ हैं। उनका दावा है कि कुरान में कहीं भी नहीं लिखा है कि मुस्लिम औरतों, लड़कियों को बुर्का, हिजाब पहनना ही है। कुरान में शालीन, सभ्य और विनम्र लिबास पहनने और निगाहों को नीचा करके चलने का उल्लेख है। हिजाब को लेकर कोई मज़हबी बंदिश नहीं है। बहरहाल हमारा उद्देश्य मज़हबी विवाद में उलझना नहीं है। कर्नाटक के शिक्षण संस्थानों में हिजाब पर पाबंदी है, बल्कि हिजाब और भगवा ब्रिगेड टकराव की स्थिति में महसूस होते हैं। कर्नाटक उच्च न्यायालय की एकल पीठ ने मुद्दे की संवेदनशीलता और व्यापकता को देखते हुए यह मामला बड़ी न्यायिक पीठ को सौंपने का आग्रह किया था, लिहाजा अब तीन न्यायाधीशों के विचाराधीन यह मामला है। उनके संवैधानिक पक्ष की प्रतीक्षा करनी चाहिए। जिन मुस्लिम छात्राओं ने उच्च न्यायालय में याचिका दाखिल कर हिजाब को अनुच्छेद 14 और 25 के तहत मज़हबी आज़ादी का हवाला दिया था, उन्होंने अनुच्छेद 15 और 19 का उल्लंघन भी करार दिया था। उन सभी को अदालत के फैसले का इंतज़ार करना चाहिए कि अदालत क्या व्याख्या करती है।
यदि हिजाब पहनने पर छात्राओं को स्कूल-कॉलेज में प्रवेश करने की पाबंदी है, तो निश्चित तौर पर संवैधानिक व्यवस्था का उल्लंघन किया गया है, लेकिन यह व्यवस्था ड्रेस कोड की हिदायत से जुड़ी है, तो फिर कुछ और मामला है। दरअसल प्रत्येक शिक्षण संस्थान का अपना अनुशासन, उसकी आचार संहिता और एक निश्चित पोशाक की व्यवस्था अनिवार्य है। हम सब छात्र रहते हुए इस व्यवस्था से गुज़रे हैं। यह भी समझ लें कि कोई बरमुडा, नेकर, पायजामा, बिकनी, स्कर्ट आदि आपत्तिजनक और अभद्र लिबास पहन कर स्कूल-कॉलेज में प्रवेश नहीं कर सकता। व्यक्तिगत स्वतंत्रता के साथ-साथ सार्वजनिक शोभनीयता भी अनिवार्य है। कर्नाटक सरकार ने शिक्षा अधिनियम 1983 की धारा 133 (2) के तहत अधिसूचना जारी कर शैक्षिक परिसर में हिजाब पर पाबंदी लगाई थी और निजी संस्थानों को अपनी डे्रस तय करने का अधिकार दिया था। वह सरकारी कॉलेज ही था, जहां 1 जनवरी को 6 मुस्लिम छात्राओं को हिजाब में परिसर में आने से मनाही की गई थी। वह किसी को भी शिक्षा के मौलिक अधिकार से वंचित करने की कवायद नहीं थी। उस घटना से पहले कुछ अदालतों के निर्णय आए होंगे, लेकिन अब यह कर्नाटक हाईकोर्ट के विचाराधीन है।
एकल पीठ ने मुस्लिम छात्राओं को अंतरिम राहत देने से इंकार कर दिया था, लिहाजा अधिसूचना अदालत के फैसले तक प्रभावी रहेगी। जिस लड़की मुस्कान ने कॉलेज परिसर में भगवा भीड़ के घिरने पर ‘अल्लाह हू अकबर’ बोला था, क्योंकि भगवा हुजूम ‘जय श्रीराम’ के नारे बुलंद कर रहा था, तो खुद मुस्लिम छात्रा ने टीवी इंटरव्यू में स्पष्ट किया है कि वह कक्षा में हिजाब पहन कर नहीं जाएगी। वह कॉलेज प्रबंधन और प्रिंसिपल के निर्देशों पर भरोसा करती है, क्योंकि उन्होंने उसे समर्थन दिया है। उसके बावजूद एमआईएम नेता-सांसद ओवैसी और उनके प्रवक्ता इसे मज़हबी आज़ादी, छात्रा की स्वतंत्रता, संविधान और धर्मनिरपेक्षता के उल्लंघन से जोड़ कर पेश कर रहे हैं। मुस्कान की कथित बहादुरी को इस्लामी तौर पर महिमा-मंडित किया जा रहा है। जमीयत उलेमा-ए-हिंद ने लड़की को 5 लाख रुपए देने का ऐलान किया है। मुस्कान को सियासी और मज़हबी मुद्दा बना लिया गया है, क्योंकि सांप्रदायिक रूप से बेहद संवेदनशील उप्र राज्य में मतदान शुरू हो गया है। ऐसे मामलों को स्कूल-कॉलेज के ड्रेस कोड के अनुशासन, एकरूपता, गरिमा आदि से जोड़ कर ही देखा जाना चाहिए। हर किसी को चाहिए कि इसे मजहबी मामला न बनाए। सुप्रीमकोर्ट ने भी कहा है कि इसे राष्ट्रीय मुद्दा न बनाएं।


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