अघोर परंपरा के अनन्य आचार्य बाबा कीनाराम
पं. विनोद कुमार दुबे
राबर्ट्सगंज, सोनभद्र।
अघोराचार्य बाबा कीनाराम अघोर सम्प्रदाय के एक अनन्य आचार्य थे। चंदौली सहित पूरे बनारस मंडल में इनकी प्रसिद्धि के कारनामें सहज ही सुनने को मिल जाया करते हैं। संत कीनाराम का जन्म सन् 1693 भाद्रपद
शुक्ल को चंदौली के रामगढ़ गाँव में अकबर सिंह के घर हुआ। बारह वर्ष की अवस्था में विवाह अवश्य हुआ पर वैराग्य हो जाने के कारण गौना नहीं कराया। ये देश के विभिन्न भागों का भ्रमण करते हुए गिरनार पर्वत पर बस गये। कानीराम सिद्ध महात्मा थे और इनके जीवन की अनेक चमत्कारी घटनाएं प्रसिद्ध हैं। सन् 1769 को काशी में ही इनका निधन हुआ।
शुक्ल को चंदौली के रामगढ़ गाँव में अकबर सिंह के घर हुआ। बारह वर्ष की अवस्था में विवाह अवश्य हुआ पर वैराग्य हो जाने के कारण गौना नहीं कराया। ये देश के विभिन्न भागों का भ्रमण करते हुए गिरनार पर्वत पर बस गये। कानीराम सिद्ध महात्मा थे और इनके जीवन की अनेक चमत्कारी घटनाएं प्रसिद्ध हैं। सन् 1769 को काशी में ही इनका निधन हुआ।
नामकरण के साथ भी जुड़ी हुई है कहानी
श्री अकबर सिंह को 60 वर्ष की आयु में यह पुत्र प्राप्त हुआ था इससे परिवार के साथ ही ग्रामवासी भी विलक्षण प्रसन्न थे। बालक दीर्घजीवी और कीर्तिवान् हो इसके लिये उन्हें दूसरे को दे कर उससे धन दे कर खरीदा गया। इसी आधार पर आपका नाम कीना (क्रय किया हुआ) रखा गया। बालक कीना का शैशव समवयस्क बालकों के साथ खेलने-कूदने तथा महापुरुषों की जीवन कथाएँ सुनने और मनन करने में बीता।
उन दिनों बाल विवाह का प्रचलन था अत: 9 वर्ष की उम्र में ही आपका विवाह कात्यायनी देवी के साथ कर दिया गया। 12 वर्ष की उम्र में गौने की तैयारी हो रही थी, तभी कात्यायनी देवी की मृत्यु का समाचार आया। कुछ समय बाद माता-पिता भी परलोक सिधार गये और कीना के लिये वैराग्य का मार्ग प्रशस्त हो गया। उन्होंने घर छोड़ा और सब से पहले गाजीपुर में एक गृहस्थ साधु शिवादास के यहाँ पड़ाव डाला।
गंगा जी स्वयं करतीं थी विलक्षण बालक कीना का चरण स्पर्श
बाबा शिवादास को बालक कीना की विलक्षणता का आभास हो गया था। उनके आश्चर्य की सीमा न रही जब उन्होंने छिप कर देखा कि गंगा स्नान के लिये जाने वाले कीना का चरण-स्पर्श करने के लिये गंगाजी स्वयं आगे बढ़ रही हैं। कुछ दिन बाबा शिवादास के साथ रहने के बाद वे उनके शिष्य बन गये। कुछ वर्षों के उपरान्त उन्होंने गिरनार पर्वत की यात्रा की। वहाँ भगवान् दत्तात्रेय के दर्शन किये और उनसे अवधूती की दीक्षा ग्रहण की। इसके बाद वे काशी लौट आये। यहाँ आकर बाबू कालूराम जी से अघोर मत का उपदेश लिया। इस प्रकार कीना जी ने वैष्णव, भागवत् तथा अघोर पन्थ इन तीनों को साध्य किया। वैष्णव होने के नाते वे राम के उपासक बने।
वैष्णव मत के चार मठ किए स्थापित
अपने दोनों गुरुओं की मर्यादा का पालन करते हुए उन्होंने वैष्णव मत के चार स्थान-मारुफपुर, नयी ढीह, परानापुर तथा महुवर और अघोर मत के चार स्थान रामगढ़ (बनारस), देवल (गाजीपुर), हरिहरपुर (जौनपुर) तथा क्रींकुण्ड काशी में स्थापित किये। उनकी प्रमुख गद्दी क्रींकुण्ड पर है।
बाबा कीनाराम और चमत्कार
बाबा के चमत्कार आज भी किवदंतियों के रुप में जीवित हैं। वे जब जूनागढ़ पहुँचे तो वहाँ के नवाब (जिसे कोई सन्तान न थी) ने राज्य में भिखारियों को जेल भेजने का आदेश दिया हुआ था। कीनाराम के शिष्य बीजाराम भी भिक्षा माँगते समय जेल भेज दिये गये थे। जब कीनाराम जी को पता चला तो वे जेल पहुँचे। वहाँ अनेक साधु चक्की चला कर आटा पीस रहे थे। उन्होंने साधुओं को चक्की चलाने से मना किया और अपनी कुबड़ी से चक्की को ठोकते हुए कहा, “चल-चल रे चक्की।’ चक्की अपने आप चलने लगी। जब नवाब को इस बात की सूचना मिली तो वह दौड़ा आया और कीनाराम को आग्रह करके किले में ले गया, उनसे माफी माँगी। कीनाराम जी ने नवाब को माफ कर दिया और उससे कहा कि आज से सभी साधुओं को आटा और नमक दिया जाय जिससे उन्हें भविष्य में भीख न माँगनी पड़े। सभी साधु तत्काल रिहा कर दिये गये और नवाब को संतान की भी प्राप्ति हो गयी।
कीनाराम के प्रसिद्ध शिष्य हुए संत बीजाराम
ऐसा सुनने में मिलता है कि एक बार कीनाराम जी घूमते – घामते नयीडीह नामक गाँव में चले गए थे। वहाँ उन्हें देखने को मिला कि एक लाचार निर्बल महिला बड़ी ही करूणामयी अवस्था में विलाप कर रही थी। उसके मार्मिकता को देखकर उनसे रहा नहीं गया और बाबा ने उस महिला से विलाप का कारण पूछा। पूछने पर जानकारी प्राप्त हुई कि उसके एकमात्र पुत्र को बकाया लगान न चुका पाने के कारण जमींदार के आदमी उसे पकड़ कर लें गए हैं। बाबा जी भी उस महिला को लेकर जमींदार के पास चले गए। वहाँ पर उन्होनें देखा की लड़के को कड़ी धूप में बैठाया गया है और लोग उस लड़के की रिहाई के लिए मिन्नतें कर रहे हैं। तब कीनाराम जी ने घमंडी जमींदार को आदेश दिया कि जहाँ पर लड़का बैठा है वहाँ की ज़मीन खोदकर वो अपना बकाया राशि ले ले। दो हाथ जमीन की खुदाई करने पर वहाँ रुपये देखकर सब अचंभित हो गए थे। यह कारनामा देखकर जमींदार बहुत ही लज्जित हुआ और तत्काल लड़के को मुक्त कर दिया। उस महिला ने बाबा के शरण में अपने उस एकलौते पुत्र को सौंप दिया। ऐसा कहा जाता है कि संभवतः वही बालक आगे चलकर प्रसिद्ध संत बीजाराम जी के नाम से विख्यात हुए ।
काशी का क्रींकुण्ड अघोर साधना का केंद्र
काशी का यह क्रींकुण्ड अघोर साधना का केन्द्र बिन्दु रहा है। यहाँ अनेक औघड़ साधकों ने साधना की और देश की समस्याओं के समाधान में महत्वपूर्ण भूमिका निभायी। बाबा कीनाराम जी के समस्त मठों में भण्डारण का आयोजन आम बात है। उनके मठों में प्रतिवर्ष भव्य मेले का आयोजन किया जाता है एवं प्रसाद ग्रहण करने के लिए दूर – दूर से लोगों का विशाल हुजूम उमड़ता है तथा इस मनभावन दृश्य को देखते ही उत्साह प्रकट होने लगता है और हर साल पुनः आने की लालसा जागृत होने लगती है।
बाबा का चमत्कारी कुआं
बाबा के जन्म स्थान रामगढ़ में रामशाला के बाहर मैदान में एक बड़ा भव्य कुआं है, जो बाबा किनाराम का बनवाया हुआ है । कहा जाता है कि जब यह कुँआ बन रहा था उसे बांधते समय ईटें घट गई । बाबा ने तत्काल आदेश दिया कि गोहरा ( उपली ) लगाकर जोड़ाई पूरी कर दी जाय। वैसा ही किया गया और वह कुँआ आज भी विद्यमान है। इसके चार घाट हैं, जिसमें पानी का स्वाद अलग - अलग है। आज भी चौथिया ज्वर से पीड़ित लोग यहाँ आकर पूरब घाट से पाँच लोटा जल से स्नान करके बाबा के यहाँ धरना देते हैं और निश्चित रोग मुक्ति पा जाते हैं।

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