इस रोटी ने, इस रोटी ने

क्या- क्या खेल रचाए हैं
कोई खाए थाली भर भर
कोई इसके लिए मुरझाए हैं
इस रोटी ने, इस रोटी ने
क्या क्या खेल रचाए हैं।
कोई देश छोड़ आया
परिवार छोड़ आया
कोई दर- दर धक्के खाए हैं
इतना करके भी पेट ना भरता
ये कैसे कर्म लिखाए हैं
इस रोटी ने, इस रोटी ने


क्या क्या खेल रचाए हैं।
भूख को मिटाने आए गए
देश जो पराए
वहाँ भी अगर रोटी
उसको मिल ही पाए
तो मजदूर बंदा बोलो
किधर को जाए।
इस रोटी ने, इस रोटी ने
क्या-क्या खेल रचाए हैं।
- करमजीत कौर, शहर- मलोट
जिला- श्री मुक्तसर साहिब (पंजाब)


No comments:

Post a Comment

Popular Posts