'मम्मीजी, मेरी मम्मी का फोन आया था, पूछ रही थी कि गर्मी की छुट्टियों में मायके कब आ रही है ? क्या जबाब दूंगी?'  शिल्पा ने सास से पूछा।
'उसमे पूछने की क्या बात है? कह देना था अबकी बार नहीं आ पाऊँगी।'
'पर मम्मीजी---?'
'अरे इतनी हैरानी से मेरी तरफ क्यों देख रही है? हर साल मायके जाना जरुरी है क्या?'
'मम्मीजी, सिर्फ तीन-चार दिनों के लिए ही तो जाती हूं।'
'तेरे लिए तो सिर्फ तीन-चार दिन ही होते हैं, लेकिन यहां पर मेरे बेटे को, मुझे कितनी परेशानी होती है, सोचा है कभी? मुझसे तो अब कुछ होता नहीं। उसे बाहर के साथ-साथ पूरा घर संभालना पड़ता है। आजकल की बहुओं को तो सिर्फ मायके की ही पड़ी रहती है। पति की, बूढ़ी सास की किसको फ़िक्र है?'
शिल्पा मन मारकर रह गई। कुछ दिन बाद जब उसकी ननद पंद्रह-बीस दिन मायके रहकर बिदा हो रही थी तब ---
सास- 'बेटी, इसी तरह थोड़े दिन के लिए ही सही, आ जाया कर। थोड़ा चेंज हो जाता है।'
ननद- 'पर मम्मी, मेरे न रहने पर इनको खाने-पीने की, सभी बातों की बहुत परेशानी होती है। इसलिए मन थोड़ा ---'
'अरे पुरे सालभर तो ससुरालवालों की सेवा करती रहती है। आखिर तू भी एक इंसान है। तेरा भी तो मन करता है की थोड़ा चेंज हो। तेरी सास तो ऐसी ही है। थोड़ा सा भी नहीं सोचती कि बहू की भी कुछ इच्छा होती होगी। थोड़े दिन एडजस्ट नहीं कर सकते क्या?'
शिल्पा सोचती ही रह गई की कितना फर्क होता है बहू और बेटी में?

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