राष्ट्रीय शिक्षा नीति-2020 के महत्वाकांक्षी एवं बहुउद्देशीय लक्ष्यों की ओर इंगित करते हुये विश्व के दूसरी सर्वाधिक आबादी वाले एवं सबसे बड़े लोकतांत्रिक देश के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने भारत के 74वें स्वतन्त्रता दिवस पर राष्ट्र को अपना संबोधन करते हुए यह उचित ही कहा कि भारत को आत्मनिर्भर और आधुनिक बनाने में नई शिक्षा नीति का महत्वपूर्ण योगदान होगा। इस सम्बन्ध में प्रधानमंत्री का निम्नांकित वक्तव्य भी विचारणीय हो जाता है।
‘‘हम 3 दशकों बाद नई शिक्षा नीति लाये हैं, जिसका सम्पूर्ण देश में स्वागत किया गया है जो नये आत्मविश्वास को बढ़ाती है। छम्च् हमारे देश की जड़ों से छात्रों को जोड़ेगी और साथ ही उन्हें वैश्विक नागरिक के रूप में विकसित होने का अवसर प्राप्त होगा।
वास्तव में आत्मनिर्भर भारत के लक्ष्य हासिल करने के मार्ग में आने वाले मुख्य अवरोध क्या है एवं क्या उन्हें दूर करने का मसौदा इस शिक्षा नीति में समाहित है?
इस बात पर गौर करते हैं कि हम देश में मानवीय मेधा होते हुये भी स्वयं के बलबूते पर ही इन सब चुनौतियों का सामना क्यों नहीं कर सकते हैं जबकि हमारे ही भारतीय मूल के मानव संसाधन की ताकत पर ही उत्पन्न संसाधन हमारे देश में अन्य देश निर्यात करते हैं? तब ऐसा क्या कारण है कि हमारे देश में रहते हुये हमारे लोग श्रम एवं मेधा के अनूठे संयोग से इन उल्लेखनीय सफलताओं को अर्जित नहीं करते हैं?
उक्त कारणों पर पड़ताल करने पर ज्ञात होता है कि हमारी वर्तमान शिक्षा व्यवस्था हमारे बच्चों को समाज की आवश्यकतानुरूप उन्मुक्त ज्ञान अर्जित करने में सहयोगी एवं लोचपूर्ण वातावरण उपलब्ध नहीं करती है बल्कि एक थका हुआ जड़ तन्त्र होने के कारण विज्ञान के अनुप्रयोग समयानुकूल होने में विलम्ब होता रहा है। परिणामस्वरूप हम अन्वेषण, शोध, उद्यमिता, बौद्धिक सम्पदा आदि क्षेत्रों में सापेक्षित रूप से अन्य विकसित देशों एवं चीन जैसे विकासशील देशों से भी पिछड़ते दिखायी देते हैं।
जहाँ वर्तमान शिक्षा नीति मात्र डिग्री प्रदान करने वाली एवं बेरोजगारों की फौज खड़ी कर रही है वहीं नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति इन समस्याओं का समाधान प्रस्तुत करती है एवं भविष्य को दृष्टिगत रखते हुये नये भारत के निर्माण का खाका प्रस्तुत करती है। नूतन ज्ञान के परिदृश्य में पूरा विश्व तेजी से परिवर्तन के दौर से गुजर रहा है। विग डाटा, मशीन लर्निंग और आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस जैसे क्षेत्रों में हो रहे बहुत से वैज्ञानिक एवं तकनीकी विकास के बलबूते पर एक ओर विश्व भर में अकुशल कामगारों की जगह मशीने काम करने लगेंगी और दूसरी ओर डेटा साइंस, कम्प्यूटर साइंस और गणित जैसे क्षेत्रों में कुशल कामगारों की जरूरत और मांग बढ़ेगी जो विज्ञान, समाज विज्ञान और मानविकी के विविध विषयों में योग्यता रखते हैं।
रोजगार और वैश्विक पारिस्थितिकी में तीव्र गति से आ रहे परिवर्तनों की वजह से यह जरूरी हो गया है कि बच्चे जो कुछ सिखाया जा रहा है, उसे तो सीखें ही और साथ ही वे ‘सतत् सीखते रहने की कला’ भी सीखें। विविध विषयों के बीच अन्र्तसम्बन्ध को भी देखें, जिज्ञासा, खोज, अनुभव व संवाद के आधार पर तार्किक एवं रचनात्मक रूप से सोचना सीखें।
माध्यमिक शिक्षा में पारम्परिक रूप से स्थापित धारायें जैसे कला, मानविकी, विज्ञान, व्यावसायिक, वाणिज्य अथवा अकादमिक या व्यवसायिक धारा के बजाय विद्यार्थी की रूचि अनुरूप पाठ्यक्रम अपनाने की स्वतन्त्रता का मॉडल अधिक लचीला है एवं नवाचार हेतु अनुकूल है। लक्ष्य आधारित अति विशेषज्ञता वाले क्षेत्र से सम्बन्धित विषयों को स्नातक एवं परास्नातक स्तर पर भी अपनाये जाने के विकल्प से अनावश्यक एवं गैर जरूरी विषयों को पढ़ने की बाध्यता से मुक्ति मिलेगी एवं छात्र जीवन के उसके महत्वपूर्ण वर्ष मात्र ‘डिग्री’ प्राप्त करने की जद्दोजहद में बरबाद नहीं होंगे।
‘अकेडमिक क्रेडिट बैंक’ योजना से प्राप्त सहूलियत को अपनाकर छात्र उच्च शिक्षा के दौरान कभी भी ‘व्यवहारिक अनुभव प्राप्त करने हेतु’ अथवा व्यक्तिगत कारणों से अवकाश ले सकता है उसके पश्चात् उसी संस्थान से उसी पाठ्यक्रम को जारी रख सकता है अथवा अन्य पाठ्यक्रम अपना सकता है। छात्र किसी अन्य विशेषज्ञता वाले संस्थान में जाकर भी आगे की पढ़ाई का विकल्प अपना सकता है। इस प्रकार की लोचपूर्ण नीति से न केवल आवश्यकता एवं बाजार आधारित विषय विशेष का अध्ययन करने की स्वतन्त्रता बढ़ेगी, अपितु तेजी से बदलती औद्योगिक जगत की मानव संसाधन की आवश्यकता को पूरा किया जा सकेगा।
‘व्यावसायिक शिक्षा नीति’ एवं ‘कौशल विकास’ के सम्बन्ध में नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति से इस सम्बन्ध आमूल-चूल परिवर्तन सुझाये गये हैं। इन सबको प्रभावी ढंग से लागू करने हेतु अध्यापक शिक्षा के प्रावधानों में परिवर्तन, आनलाइन एवं डिजिटल माध्यमों को बढ़ावा, नियामक संस्थाओं की भूमिका में बदलाव एवं नई संस्थायें जैसे भारतीय उच्च शिक्षा आयोग(एच.ई.सी.आई.) नेशनल रिसर्च फाउण्डेशन (छत्थ्) की स्थापना करने का इरादा व्यक्त किया गया है।
‘अन्तर्राष्ट्रीय गुणवत्ता’ के समान मानदण्ड प्रस्तुत करने के लक्ष्य के साथ अन्तर्राष्ट्रीय महत्व के नये उभरते हुये शैक्षिक क्षेत्र जैसे जीनोमिक अध्ययन, जैव प्रौद्योगिकी, नैनो प्रौद्योगिकी, न्यूरो साइंस के साथ ही तेजी से प्रमुखता हासिल कर रहे आर्टिफिशियल इन्टेलिजेंस (ए.आई.), 3डी मशीनिंग, विग डाटा एनालिसिस और मशीन लर्निंग क्षेत्रों में पेशेवरों को तैयार करने में अग्रणी भूमिका निभाने का इरादा राष्ट्रीय श्क्षिा नीति-2020 में व्यक्त किया गया है ताकि ज्ञान के क्षेत्र में हमारी न केवल आत्मनिर्भरता हो बल्कि अन्तर्राष्ट्रीय छात्र-छात्राओं के लिये भी अध्ययन के अवसर प्रदान किये जा सकें।
(आचार्य, जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय, नई दिल्ली।)




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