दुनिया में लगता है शांति संभव नहीं है। ग्लोबल स्तर पर युद्ध की अशांति फैली हुई है। बुद्ध का रास्ता कहीं नहीं दिख रहा है। शक्तिशाली स्थितियां निर्बल को कमजोर बना रही हैं। दुनिया की सारी शक्तियां कुछ देशों के साथ सिमट कर रह गई हैं। संयुक्त राष्ट्रसंघ जैसी संस्थाएं बेमतलब साबित हो रहे हैं। भारत के पड़ोसी मुल्क अफगानिस्तान में अशांति फैली है। तालिबान की वजह से लोग शरणार्थी शिविरों में रहने को बाध्य हैं। हजारों की संख्या में रोज पलायन हो रहा है। तालिबान निर्दोष लोगों का कत्लेआम कर रहा है। जिसमें सेना, शिक्षाविद, पत्रकार, साहित्यकार और दूसरे तमाम लोग शामिल है। हजारों निर्दोष जंग में शहीद हो चुके हैं।
अफगानिस्तान जैसा एक संप्रभु मुल्क अशांत है। दुनिया शांत होकर इस युद्ध को देख रही है। फिलीस्तीन और इजरायल की तरह युद्ध में बेगुनाह और बेजुवान लोग मारे जा रहे हैं। मानवीय अधिकारों का खुला हनन हो रहा है। तालिबान दुनिया के शक्तिशाली देशों को चुनौती दे रहा है। जबकि तालिबानी जिहादियों को भारत का पड़ोसी मुल्क पाकिस्तान खाद-पानी दे रहा है। अफगानिस्तान में कब शांति लौटेगी अपने आप में यह बड़ा सवाल है। गुटों में विभाजित वैश्विक शक्तियां जानबूझकर इस खेल पर मौन हैं। अफगानिस्तान में बिगड़ती स्थितियों को लेकर रूस ने इस पर चिंता जाहिर की है। शुभ संकेत मिले हैं कि इस मसले पर अमेरिका, चीन और रूस के साथ पाकिस्तान की एक बैठक कतर में होनी है, जिसमें अफगानिस्तान की स्थिति पर विचार किया जाएगा। हालांकि इस बैठक में भारत को शामिल नहीं किया गया है। क्योंकि रूस की निगाह में तालिबान पर भारत का कोई असर नहीं है। इस बैठक में उन्हीं देशों को शामिल किया गया है जो दक्षिण एशिया के देशों पर अपना-अपना प्रभाव रखते हैं। हालांकि अफगानिस्तान के कई इलाकों पर तालिबानी लड़ाकों द्वारा लगातार कब्जा किया जा रहा है। समझौते में अगर कोई हल निकलता भी जाता है तो इसके बावजूद भी अफगानिस्तान के लिए मुश्किल होगी, क्योंकि तालिबान जितनी जमीन पर अपना कब्जा जमा लेगा उसे वह छोड़ना नहीं चाहेगा। जिसकी वजह से अफगानिस्तान और तालिबान के बीच संबंधों में हमेशा तनाव बना रहेगा। पाकिस्तान में तालिबान आतंकियों को खुलेआम मिलिट्री ट्रेनिंग दी जा रही है। यह बात चीन, रूस और अमेरिका को अच्छी तरह मालूम है। लेकिन इसके बावजूद भी तीनों महाशक्तियों ने चुप्पी साध रखी है। क्योंकि वह चाहती हैं कि दक्षिण एशिया में अशांति का माहौल बना रहे। पाकिस्तान आतंक की नर्सरी तैयार करता रहे। कश्मीर में पाकिस्तान की सह पर आतंकवाद फलता-फूलता रहे। अफगानिस्तान में तालिबान अपना काम करता रहे। अगर दक्षिण एशिया में शांति रहेगी तो फिर महाशक्तियों को कौन पूछेगा। कैसे अमेरिका, रूस, फ्रांस और चीन का सैन्य कारोबार चलेगा। उनकी पाण्डुब्बियाँ, युद्धपोत, रडार, युद्धक विमान और आणविक हथियार कौन खरीदेगा। अफगानिस्तान में तालिबान की जड़ें जितनी मजबूत होगी भारत के लिए उतना खतरा बढ़ेगा। अफगानिस्तान भारत का समर्थक रहा है। भारत अफगानिस्तान में पुनर्निर्माण के लिए कई बिलियन डालर का निवेश किया है। अफगानिस्तान में भारत की सक्रियता तालिबान को नहीं पचती। पाकिस्तान का आका चीन भी भारत के इस सहयोग से जलता है। क्योंकि पाकिस्तान में उसकी दाल गल जाती है, लेकिन अफगानिस्तान में उसकी एक भी नहीं चलती। अफगानिस्तान अमेरिका और भारत के साथ अच्छे संबंध रखना चाहता है। जिसकी वजह से पाकिस्तान और तालिबानियों को मिर्ची लगती है। तालिबान हमेशा से भारत का दुश्मन रहा है। वह कट्टर इस्लामिक संस्कृति का समर्थक है। जबकि सभ्य इस्लामिक मुल्क इसकी इजाजत नहीं देते, जिसकी वजह से वह अलग-थलग पड़ जाता है। शांति के प्रतीक भगवान बुद्ध की अनगिनत मूर्तियों को तालिबान ढहा चुका है। वैश्विक मीडिया रिपोर्ट के अनुसार युद्ध की विभीषिका के बीच हर रोज तकरीबन तीस हजार लोग अफगानिस्तान से पलायन कर रहे हैं। अधिकांश लोग शरणार्थी शिविरों में है, जबकि तालिबानियों का दावा है कि उन्होंने देश की कई सीमाओं को सील कर दिया है। तालिबान अस्पतालों के साथ और प्रमुख सरकारी संस्थानों को निशाना बना रहा है। तालिबान की वजह से 10 सालों में तकरीबन पचास लाख लोग विस्थापित हो चुके हैं। मीडिया रिपोर्ट में बताया गया है कि तकरीबन 200 जिलों में तालिबान का कब्जा हो गया है। तालिबान अफगानिस्तान पर कब्जा करने में सफल हो गया तो आने वाले दिनों के लिए यह शुभ संकेत नहीं है। अब वक्त आ गया है जब वैश्विक दुनिया को एक मंच पर आकर अफगानिस्तान में शांति बहाली की प्रक्रिया शुरू करनी चाहिए। भारत, अफगानिस्तान में हमेशा शांति का प्रबल समर्थक रहा है। भारत पुरी दुनिया को एक परिवार समझता है। वह खुद और दूसरों के साथ सौहार्द चाहता है। भारत युद्ध में नहीं बुद्ध में विश्वास रखता है। (स्वतंत्र लेखक और पत्रकार)
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