माँ ही मेरे जीवन का रत्न
माँ ही मेरी अलादीन का जिन
माँ है तो मैं हूँ
माँ ही मेरे पारस का पत्थर
माँ ही मेरी सोनपरी
शायद नहीं यकीन है...
माँ ही मेरे जीवन को आकार देने वाली
माँ ही मेरी जीवन धात्री
क्या कहूँ मैं माँ के बारे में
कुछ भी कहूँ तो कम है।

बहुत पतली है नींद मेरी माँ की
तनिक स्पर्श से सी उठ जाती
करवट बदलने लग जाती
बहुत कुछ बोलने का मन करता
दिल! दिल है कि बोल कुछ नही पाता
मैं कभी आह! भी करूँ
माँ घबरा सी जाती है
इसलिए सर दर्द को छुपा लेती हूँ
पर कभी-कभी बुखार हल्की सी भी आये
तो ज्यादा है ऐसा बता देती हूँ
माँ जब अपना हाथ रखती है मेरे माथे पर
सारे दर्द सारे दुःख छू मन्तर सा हो जाता है।
माँ का दिल कितना प्यारा सा है
मैंने माँ को हमेशा हँसते हुये
हँसते बात करते देखा
अपने आँसुओं को मेरे आते ही
छुपाते हुये भी देखा है
सभी दुखो से अपने अंदर समेट लेती है
क्या माँ ऐसी होती है!
हाँ! माँ ऐसी ही होती है।
- अंकिता गौराई
अध्यापिका व कवयित्री
धनबाद, झारखंड।



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