हिम शिखरों से भोले के, जयकारे आते हैं,
शंख और डमरू मिलकर, शिव कीर्तन गाते हैं।
शिव ही गगन धरा भी शिव ही, हमें बताते हैं,
गान संग है गीत भी शिव, हम महिमा गाते हैं।
पंचतत्व निर्मित शिव से, शिव रूप दिखाते हैं,
शिव से शव बनने के पथ को, सहज बनाते हैं।




गौरा के पति दर्शन दे कर, भक्ति जगाते हैं,
शिव के रंग में रंगी सृष्टि, विष भी पी जाते हैं।
श्रावण मास शिवमयी प्रकृति, भू पर आते हैं,
विष्णुपदी के आंचल में, आकर बस जाते हैं।
पावन हृदय प्रेम की बाती, ज्योति जलाते हैं,
अंजुरी भर जल से भंडारी, खुश हो जाते हैं।
- सीमा मिश्रा
बिन्दकी, फतेहपुर (उप्र)

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