डिजीटल अम्ब्रेला के नीचे शासन और सरकार
By News Prahari -
मनोज कुमार
यह कहानी शुरू होती है करीब दो वर्ष पहले कोरोना के धमकने के साथ। आरंभिक दिनों में सबकुछ वैसा ही चलता रहा और लगा कि बस थोड़े दिन की बात है लेकिन ऐसा था नहीं। कोरोना की दूसरी लहर ने जो कोहराम मचाया तो सब तरफ हडक़म्प मच गया। कोरोना के शिकार लोगों को इलाज, उनकी देखरेख और व्यवस्था बनाये रखने के लिए मुस्तैद अधिकारियों और कर्मचारियों को मोर्चे पर डटना मजबूरी थी। जिंदगी उनकी भी थी, डर उनके पास था और इस डर ने एक संभावना को जन्म दिया। टेक्रालॉजी का यह नया दौर है और इस महामारी के पहले हम इस कोशिश में लगे थे कि पूरा तंत्र डिजीटल हो जाए लेकिन सौ फीसदी करने में तब वैसी रूचि लोगों की नहीं थी। आज भी सौफीसदी डिजीटलीकरण नहीं हो पाया है लेकिन डर से उपजी संभावना में जो जहां है, वहीं रूक गया और हाथों में कोई मोबाइल लिये तो कोई आइपैड तो कोई घर पर रहकर लेपटॉप से अपने दायित्व को पूरा कर रहा था। इस तरह से जो काम बीस वर्ष में नहीं हो पाया था, वह दो वर्ष में हो गया। इस डिजीटल अम्ब्रला के नीचे पूरा शासन और सरकार आ गई है। बदलते जमाने के साथ हम अब चलने के लिए अब पूरी तरह से तैयार हैं बल्कि चलने लगे हैं।
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