सावन के बारिश क्या कहने अल्हड़ मस्त और मदमाती चाल।
कभी उठे मन भाव उमड़कर कभी दिल में जगाए प्यार।।
झूले हों उस आम की डाली कोयल मोर और पपीहे की तान।
जामुन महुआ और आम से गमके सारा सकल जहाँ।।



लेकिन ये सावन लेकर आता अपने साथ बड़ा नुकसान।
कभी कराता बादल फटकर कभी लाता फिर मौत समान।।
जब डूबते चौक चौराहे या फिर डूबते आने जाने की राह।
कभी घर के अंदर कमर तक पानी जो बंद कर देते प्रगति की राह।।
बाढ़ विभीषिका लेकर आता सावन की ये अल्हड़ चाल।
कभी बहाता खड़ी फसल तो कभी बहाता पशुधन को साथ।।
बहती हुई मढ़ैया अंदर बिखर जाते जब संजोए ख्वाव।
उस बारिस से तेज निकलती  बहते हुए वेदना के धार।
तरु लता की वो अठखेलियां दिल पर फिर करती आघात।
सावन के झूले भी लगते फाँसी वाला बनकर हार।।
हे शिव शंभू ये आपका सावन इस पर तो आपका अधिकार।
इस सावन को आज्ञा देकर रुकवा दो उथल-पुथल संसार।।
आज्ञा दो बस इस सावन को केवल करे रिमझिम फुहार।
कोयल, पपीहे और मोर को खुशी-खुशी सुने संसार।।
- कमलेश झा, दिल्ली।


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