Dr. Gyender kumar
Meerut। पेशाब में जलन एवं रूकावट युवा एवं मध्य आयु की स्त्रियों एवं वृद्ध पुरूषों को परेशान करने वाली एक आम समस्या होती है। बचपन में इस बीमारी के शिकार होने वालों में पचानवे प्रतिशत हिस्सा मूत्र मार्ग के छोटे होने के कारण पाया जाता है। यह अधिकांशत: लड़कियों में होता है। शेष पांच प्रतिशत उन लड़कों में यह पाया जाता है जिनमें या तो मूत्र मार्ग में या मूत्र थैली में पथरी होती है।
युवा एवं अधेड़ उम्र की स्त्रियों में इसकी पैंसठ प्रतिशत हिस्सेदारी होती है। मुख्यत: इसका कारण सहवास के दौरान आई चोट, प्रसव के बाद बच्चेदानी और मूत्र मार्ग पर पडऩे वाला दबाव एवं गर्भाशय के रोगों के लिए किये जाने वाले भौतिक उपायों से उत्पन्न विकार का होना होता है। वृद्ध पुरूषों में प्रोस्टेट ग्रंथि के बढ़ जाने के कारण मूत्र मार्ग में अवरोध पैदा होकर पेशाब में जलन पैदा होने लगती है।
पेशाब में जलन का होना अनेक कारणों से होता है। कई बार मूत्र थैली में किसी बाहरी वस्तु के प्रवेश होने से भी पेशाब में जलन होने लगती है। मूत्र थैली में पथरी का प्रवेश, पेशाब निकालने के लिए डाली गई रबड़ की नली, किसी कैंसर की गांठ का होना, मूत्र थैली में सूजन अथवा किसी बीमारी द्वारा फोड़ा उत्पन्न होने पर पेशाब की थैली या मार्ग में संक्रमण पैदा हो जाता है तथा पेशाब में जलन होने लगती है।
प्रोस्टेट ग्रंथि के बढ़ जाने के कारण अथवा मूत्र नलिका में विकार उत्पन्न होने के कारण या मूत्र मार्ग के बाहरी छिद्र के किसी बीमारी की वजह से छोटा हो जाने या बंद हो जाने के कारण मूत्र थैली से मूत्र पूरी तरह नहीं निकलता। गर्भावस्था या प्रसूति पश्चात रीढ़ की हड्डी और नसों को क्षति पहुंचने के कारण भी मूत्रमार्ग में रूकावट हो जाती है तथा पेशाब में जलन होने लगती है। शरीर की रोग प्रतिरोधक शक्ति का कम होना, मधुमेह, यकृत (लीवर) की बीमारी, पौष्टिक वस्तुओं का अभाव, अति मैथुन, हस्तमैथुन, गुदामैथुन आदि कारणों से भी पेशाब में जलन पैदा हो जाती है। कम पानी पीने के कारण भी पेशाब में जलन हो सकती है।
मूत्र विकार का मुख्य कारण मूत्र मार्ग का संक्रमण होना है। यह संक्रमण कई रास्तों द्वारा मूत्र में पहुंचता है। मुख्य रूप से यह मूत्र मार्ग में मौजूद जीवाणुओं के मूत्र थैली में प्रवेश किये जाने के कारण होता है। मल में मौजूद जीवाणु मल त्याग के पश्चात् योनि मार्ग एवं उसके आसपास फैल जायें तो आसानी से मूत्र थैली तक पहुंच कर उसे संक्रमित कर देते हैं।
मूत्र मार्ग में नली प्रवेश करके जब मूत्र निकाला जाता है तो उसके साथ भी जीवाणु अंदर पहुंचकर मूत्रमार्ग को संक्रमित कर देते हैं। संक्रमण पैदा करने वाले जीवाणु रक्त मार्ग से भी मूत्रथैली या मूत्र में फैलकर उसे संक्रमित कर सकते हैं। फोड़े द्वारा विसर्जित जीवाणु, फेफड़ों या गले के संक्रमण स्थल से निकले जीवाणु भी खून के माध्यम से मूत्र में प्रवेश करके मूत्रनली को संक्र मित कर डालते हैं।
अगर मूत्र पिण्डों में संक्र मण मौजूद हो तो वह बढ़कर मूत्र थैली तक बढ़ सकता है। कभी-कभी बच्चेदानी, डिंबाशय, डिम्बनली या आंतों का संक्रमण भी सीधे मूत्र थैली तक पहुंच जाता है। कई गुप्त रोग जैसे गनोरिया के जीवाणु भी मूत्र मार्ग में संक्र मण पैदा कर देते हैं।
विवाह के तुरंत बाद कई स्त्रियों में मूत्र विकार उत्पन्न हो जाते हैं। इसका कारण सहवास से उत्पन्न चोट व योनि अथवा पुरुष के जनन अंगों में मौजूद संक्रमण होता है। इसे 'हनीमून सिस्टाइटिस' कहा जाता है। संभोग के अनेक आसन भी पेशाब में जलन पैदा करते हैं। अंगुलियों के माध्यम से स्त्री को उत्तेजित करने की प्रक्रिया भी योनि में संक्रमण उत्पन्न करके पेशाब में जलन उत्पन्न करती है।
पेशाब की बार-बार इच्छा होना, पेशाब के वेग को सहने की क्षमता का न होना, बूंद-बूंद करके कठिनता से पेशाब उतरना, दर्द की तीव्रता का बढ़ते जाना, दर्द नाभि के नीचे, लिंग के अग्र भाग में, योनि के आसपास, गुदा एवं योनि के मध्य में होता रहता है। मूत्र त्याग के बाद भी मूत्र त्याग की इच्छा बनी रहती है। कई बार पेशाब के अंत में खून की दो-चार बूंदों का टपकना या लाल रंग का पेशाब होना, पेशाब में दुर्गन्ध आना, पेशाब का रंग दूधिया, पीला आदि होना इसके लक्षण होते हैं।
वजन में कमी का होते जाना, भूख न लगना, बुखार या ठंड लगना, कमजोरी या थकावट का महसूस होते रहना, मुंह सूखना, बेहद प्यास लगना, कब्ज, उल्टी एवं सिरदर्द के लक्षण भी दिखाई देने लगते हैं। प्रोस्टेट ग्रंथि का संक्रमण, शुक्र ाणु नस या अंडकोष का संक्रमण या क्षय रोग आदि भी मूत्र विकार उत्पन्न करके पेशाब में जलन पैदा कर सकते हैं।
पेशाब में जलन होते ही पेशाब की जांच करा लेना आवश्यक होता है। इससे मूत्र में उपस्थित जीवाणु, उनकी संख्या, प्रतिजैविक औषधियों के प्रति उनकी संवेदनशीलता, पीप से उत्पन्न अन्य कोशिकाएं, रक्त कोशिकाएं, पेशाब में मौजूद अम्ल या अल्कली का प्रमाण ज्ञात हो जाता है।
अगर मूत्र परीक्षण से भी मूत्र में संक्रमण का कारण ज्ञात नहीं हो पाता है, तो एक्सरे (आय. बी. पी.) जांच द्वारा इसे ज्ञात किया जाता है। मूत्रमार्ग और मूत्र थैली की भीतरी जांच दूरबीन द्वारा करके रोग का निदान कर लिया जाता है। अत: पेशाब की जलन को मामूली समझकर इसके प्रति लापरवाही नहीं करनी चाहिए।
No comments:
Post a Comment