- शिवचरण चौहान

आषाढ़ खत्म होने को है। आसमान से गर्म तेल बरस रहा है। आषाढ़ में इतनी गर्मी तो सवा सौ साल में नहीं पड़ी, जो 2021 में पड़ रही है। गोस्वामी तुलसीदास की चौपाई की अर्धाली याद आती है-
बारिधि तपत तेल जनु बरिसा।
आसमान से कढ़ाई में गर्म किया हुआ तेल जैसे बरसाया जा रहा हो ऐसी ही गर्मी पड़ रही है। जीव जंतु मनुष्य पेड़ पौधे और सारी प्रकृति बेहाल है। कृषि विभाग ने कहा है कि उत्तर प्रदेश के 67 जिले सूखे की चपेट में हैं। केवल 8 जिले ही सामान्य हैं। उत्तर प्रदेश, बिहार, राजस्थान, हरियाणा, मध्य प्रदेश, पंजाब और दिल्ली इस समय सूखे की मार झेल रहे हैं। इतनी भयंकर गर्मी उमस वाली गर्मी पिछले 112 साल में नहीं पड़ी।


मौसम विभाग की सारी घोषणाएं झूठी साबित हो रही है। घाघ भड्डरी की कहावतें गलत निकल गई। वैज्ञानिकों का कहना है ऐसा जलवायु परिवर्तन / ग्लोबल वार्मिंग के कारण हो रहा है। चंद्रमा खिसक रहा है और सूरज में सौर तूफान आ रहा है जो धरती के लिए शुभ संकेत नहीं है। कनाडा जैसे ठंडे देश में पारा 45 के ऊपर जा रहा है। तालाबों , झीलों और यहां तक कि समुद्र तक का पानी सूरज की आग में खौल रहा है। ऐसे में बिजली की कटौती कोढ़ में खाज साबित हो रही है।
  मलिक मोहम्मद जायसी की पद्मावत की अर्धाली- चढ़ा आषाढ गगन घन गाजा, भी गलत साबित हो रही है। कालिदास के हरकारे मेघदूत दगा दे गए। पूरे देश का किसान बादलों की तरफ टकटकी लगाए देख रहा है। बादल है कि बरस कर धरती को तृप्त ही नहीं कर रहे हैं। उल्टे आसमान से गर्म तेल बरसा रहे हैं। दिल्ली में पीने के पानी का संकट है यमुना सूख गई है और भूगर्भ जलस्तर इतने नीचे चला गया है कि पानी प्राप्त करना बहुत मुश्किल है। ऐसा हाल कमोबेश पूरे भारत का होने वाला है।
 पहले तालाब और झील गांव-गांव में होते थे, जिससे भूगर्भ जल संतुलन बना रहता था। बरसात का पानी गांव के तालाबों में भर जाता था और जमीन के नीचे पानी की कमी नहीं होती थी। सरकार की गलत नीतियों के कारण रिंग बोर और घर घर सबमर्सिबल पंप लग जाने के कारण भूगर्भ जल समाप्त होने की स्थिति में आ गया है। वैज्ञानिकों ने आधे से ज्यादा भारत को भूगर्भ जल रहित क्षेत्र घोषित किया हुआ है किंतु फिर भी कोई नहीं मानता।
पहले लोग गांव में तालाब और झील खुदवाते थे। आज के लोगों ने तालाबों और झीलों को पाटकर अपने घर बना लिया है नदियों को संकरा कर दिया है। पहाड़ों पर बादल फट रहे हैं और मैदानों में धूल उड़ रही है आग बरस रही है। अगर 2021 में आषाढ़ और सावन सूखे निकल गया तो भयंकर अकाल पड़ेगा फिर लोग भूख से मरेंगे। हालात अनियंत्रित हो जाएंगे।
भी तो प्रधानमंत्री सहित सारे मुख्यमंत्री कोरोनावायरस के संकट से निपटने की बातें करते हैं किंतु किसी को आने वाला भयंकर सूखा / अकाल नहीं दिखाई देता। जो भारत के लिए बहुत बड़ा संकट साबित होने वाला है। यहां संकट यकायक नहीं आ गया है। मानव जाति का लाया हुआ है। हम इतने विकासशील हो गए हैं कि अपना भला बुरा भूल गया और पर्यावरण को अकल्पनीय  क्षति पहुंचाई। कार्बन गैसों का इतना उत्सर्जन किया की हमारी जलवायु खराब हो गई। पर्यावरण बिगड़ गया और आज हम और रोने के सिवा कुछ नहीं कर सकते।
भीषण गर्मी और आसन्न अकाल का संकट देख कर भी हमारी सरकार कुछ नहीं कर रही है। हाथ पर हाथ धरे बैठी है। कैसे चुनाव में जनता को बेवकूफ बना कर सत्ता हथिया ले इसको लेकर सरकार की बैठकें चल रही हैं। पर अगर अकाल पड़ गया तो कैसे निकलेंगे इसको लेकर कोई भी सुगबुगाहट नहीं है। कोई भी राजनीतिक दल अकाल की बात नहीं उठा रहा सिर्फ उत्तर प्रदेश के चुनाव और कई प्रांतों में होने वाले चुनाव ही सभी को दिखाई दे रहे हैं।
भयंकर अकाल को देखकर कभी प्रतिष्ठित साहित्यकार प्रताप नारायण मिश्र ने लिखा था ज्वार की पत्तियां सूरज की गर्मी में सूखकर बत्तियां बन गई है। आज यही हाल है। बिहार, उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, राजस्थान, हरियाणा, पंजाब, दिल्ली जहां-जहां भी धान की खेती होती है वहां के किसान धान की बेड किसी तरह बचाए हुए हैं।
बंगाल की खाड़ी से आने वाला मानसून मध्यम पड़ गया है। इस बार मई जून में गर्मी प डी ही नहीं आषाढ में गर्मी में एक शताब्दी के रिकॉर्ड को ध्वस्त कर दिया। समय रहते सरकार को आने वाले सूखे और अकाल को लेकर योजनाएं बनानी चाहिए। भारतीय कृषि तो सदियों से मानसून का जुआ रही है। इंद्रदेव मेहरबान हुए तो ठीक वरना किसान के माथे पर बर्बादी लिखी होती है।
                        - लेखक स्वतंत्र टिप्पणीकार और वरिष्ठ पत्रकार हैं।

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