- संजीव ठाकुर


तालिबान कोई मान्यता प्राप्त स्वतंत्र राष्ट्र नहीं है। भारत ने तालिबान को कभी राष्ट्र के रूप में मान्यता नहीं दी और ना ही अमेरिका, रूस, चीन, ब्रिटेन, आस्ट्रेलिया, फ्रांस आदि देशों ने भी आतंकवाद से लबालब तालिबानी हमलावरों को किसी भी प्रकार से अभी मान्यता अथवा समर्थन नहीं दिया है। विश्व के केवल 3 मुस्लिम देशों ने इसका समर्थन किया है और आज की स्थिति में वह भी तालिबानी आतंकवादियों से दहशत में हैं।

अफगानिस्तान में 1995 से लेकर लगभग दो हजार तक सोवियत रूस का शासन तंत्र काम करता रहा है। तब पाकिस्तान तथा अमेरिका ने तालिबानी आतंकवादी संगठनों को उत्प्रेरित तथा धन एवं शस्त्रों की मदद से उकसा कर सोवियत रूस को वहां से बेदखल करवा दिया था। उसके बाद से अमेरिकी सैनिकों का दस्ता 2001-2021 तक नाटो की सेना के साथ अफगानिस्तान पर एक तरह से शासन तंत्र चला कर अफगानी सैनिकों की तालिबानी आतंकवादियों से रक्षा करता रहा है।
आज की स्थिति में अचानक अमेरिकी सैनिकों तथा नाटो सैनिकों की वापसी से अफगानिस्तान पर भयानक तालिबानी आतंकवादियों से युद्ध का संकट छा गया है। तालिबानी आतंकवादियों और फौजियों से अफगानिस्तान दहल गया है। तालिबान के प्रवक्ता का कहना है कि उन्होंने अफगानिस्तान के 85 प्रतिशत हिस्सों पर कब्जा कर लिया है। केवल काबुल और कंधार में कब्जा करना शेष है। पर अफगानिस्तान का कहना है कि उनके केवल 30 प्रतिशत हिस्से में ही तालिबानी आतंकियों का कब्जा है। पर हाल ही में पाकिस्तान से सटी हुई सीमा पर स्पिन अबदोह में तालिबानी आतंकवादियों ने अफगानी सेना को खदेड़ कर वहां कब्जा जमा लिया है।
तालिबान की यह बहुत बड़ी एवं खतरनाक विजय है। तालिबान आतंकवादी संगठनों के समूह वाला देश है। और इनकी मूल गतिविधि अत्याचार, दमन, सैनिकों की हत्या नागरिकों से लूटपाट, महिलाओं से बलात्कार एवं वैश्विक आतंकवाद को बढ़ावा देना ही है। ऐसे में अफगानिस्तान पर तालिबान का कब्जा न सिर्फ दक्षिण एशिया में अशांति फैलाने वाला है, बल्कि अफगानिस्तान में नारकीय युग की शुरुआत की तरह देखा जा रहा है। सामरिक महत्व के अफगानिस्तान क्षेत्र में तालिबानी आतंकवादियों का दिनोंदिन बढ़ते प्रभाव से तुर्कमेनिस्तान, ताजिकिस्तान,तुर्क, ईरान, भारत, पाकिस्तान, चीन की चिंताएं बढ़ा दी हैं।
अब तालिबानी हरकतों से अमेरिका, संयुक्त राष्ट्र संघ तथा यूरोपीय देश भी काफी परेशान एवं चिंतित दिखाई दे रहे हैं, क्योंकि तालिबानी आतंकवादियों की हरकतें वैश्विक अशांति की ओर इशारा कर रही है। पाकिस्तान जो हमेशा तालिबान की हिमायत कर उसकी अस्त्र-शस्त्र से मदद करता रहा है, अब तालिबान ने पाकिस्तान को भी धमकी देकर डराना शुरू कर दिया है। विगत दो दशकों में पाकिस्तान ने तालिबानी आतंकवादियों की गतिविधि को बढ़ाने के लिए और अफगानिस्तान में तालिबानी सत्ता को विराजमान करने के लिए पूरी मदद की है। आज पाकिस्तान खुद असमंजस में खड़ा हुआ है।
अफगानिस्तान का महत्वपूर्ण हवाई अड्डा अबराम बड़ा ही संवेदनशील क्षेत्र है, इस पर यदि कब्जा हुआ तो सारी अंतरराष्ट्रीय उड़ानें प्रभावित हो सकती हैं।
अफगानिस्तान में मौजूदा हालात एकदम भयावह हो चुके हैं अमेरिका ने दावा किया था कि उसने 90 हजार से 1लाख अफगानी सैनिकों को युद्ध के लिए प्रशिक्षित किया है, पर अब तालिबान का शस्त्रों तथा शस्त्रागारों पर कब्जा हो जाने से अफगानिस्तान की सेना काफी कमजोर प्रतीत होती है।
अफगानिस्तान में तालिबानी आतंकवाद से पीड़ित वहां की महिलाएं तथा युवतियां भी तालिबानी क्रूर आतंकवादियों से युद्ध लड़ने के लिए मैदान में आने को तैयार हैं। उन्हें किसी भी परिणाम की कोई चिंता नहीं क्योंकि तालिबानी आतंकवादियों के जुल्म सितम से महिलाएं तथा बच्चे काफी परेशान हो गए, और वह सब आतंकवाद के खिलाफ हथियार उठाने को हर तरह से तैयार हैं।
संयुक्त राष्ट्र अमेरिका ब्रिटेन को भी मध्यस्थ बंद कर अफगानिस्तान की मदद करनी होगी वरना तालिबानी आतंकवादियों को दक्षिण एशिया सहित वैश्विक आतंकवाद को बढ़ावा देने से कोई नहीं रोक सकता है।
- स्वतंत्र टिप्पणीकार, रायपुर (छत्तीसगढ़)।

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