बरसेंगे इस बार,
सोच रहा बैठकर
गांव का हर किसान।
निकाल लाया है,
फावड़ा और कुदाल,
लहराती फसल के सपने उग,
आए हैं आँखों में इस बार,
आषाढ़ के बादल,
जमकर बरसेगें इस बार।।
नवयौवना भी झूम उठीं हैं।
मन में उमंगें रही हिलोरें मार,
प्यार ही प्यार होगा आएंगे,
जब साजन इस बार,
आषाढ़ के बादल,
जमकर बरसेगें इस बार।।
टूटेंगी सड़कें, भरेंगे नदी- नाले,
फैलेंगी बिमारियां,
कैसे इन सबके बीच?
नैया लगेगी पार?
बस यही सोच रही सरकार,
आषाढ़ के बादल?
जमकर बरसेगें इस बार।।
- अरुणा कुमारी राजपूत ‘राज’
शिक्षिका, हापुड़ (यूपी)
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