गलतियां स्वीकारें

 इलमा अज़ीम 

जीवन में ग़लतियां होना स्वाभाविक हैं। व्यक्ति अपनी ग़लतियों से सीख कर ही इंसान बनता है। जैसे विभिन्न कठिनाइयां ही मनुष्य को विषम परिस्थितियों में जीना और आगे बढ़ना सिखाती हैं वैसे ही उसकी ग़लतियां भी मनुष्य को सबसे अधिक सीखने का अवसर प्रदान करती हैं। ग़लतियों के अभाव में मनुष्य कैसे कुछ सीखेगा? ग़लती कोई अपराध नहीं लेकिन ग़लतियों को सुधारना ज़रूरी है। 

ग़लती को न सुधारने से वह आदत बन जाती है, हमारे व्यवहार का अंग बन जाती है और हमारा अनिष्ट करके ही छोड़ती है। इसीलिए ग़लती का पता लगने पर भी उस ग़लती को दूर न करना अथवा एक ग़लती को बार-बार दोहराना अपराध नहीं होने पर भी अपराध से कम नहीं माना जाता। प्रायः जब हमसे कोई बड़ी ग़लती हो जाती है तो उसको छुपाने के लिए दूसरी ग़लती कर देते हैं और कई बार अपराध तक कर डालते हैं। जो व्यक्ति एक ही ग़लती को बार-बार करे उसके लिए अंग्रेज़ी में एक शब्द है एररिस्ट। 



एक एररिस्ट व टेररिस्ट में कोई विशेष अंतर नहीं होता। जब कोई व्यक्ति अपनी ग़लती को स्वीकार करके उसे सुधारने के बजाय उसे बार-बार करता है तभी वह टेररिस्ट या आतंकवादी बनता है। चोरी करना, परिग्रह एवं अतिशय लोभवृत्ति, झूठ बोलना, दादागीरी व हिंसा का सहारा लेना, आज का कार्य कल पर टालना, अपनी भावनाओं या विचारों पर नियंत्रण न करना, बात-बात पर क्रोध करना, क्षमाशीलता व संवेदनशीलता का अभाव, हर स्थिति में असंतुष्ट व छिद्रान्वेषी बने रहना व अन्य दूसरे नकारात्मक भाव या आदतें ऐसी ग़लतियां अथवा भूलें हैं जिन्हें स्वीकार करके उन्हें दूर करना या सुधारना अनिवार्य है। 



अन्यथा हमारे एक सामान्य व्यक्ति से निकृष्ट व्यक्ति में बदलते देर नहीं लगती। इन्हीं ग़लतियों के कारण एक व्यक्ति कुख्यात बन जाता है और इन्हीं को सुधारकर विख्यात अथवा प्रख्यात हो जाता है।

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