अप्रतिम व्यक्तित्व के धनी पं. अटल बिहारी बाजपेई
- प्रो. नंदलाल
बहुत से नेता देश में पैदा हुए और होंगे पर बाजपेई जी ऐसे नेता हुए जो नेतृत्व सिद्धांतों का पालन करते हुए क्रमशः आगे बढ़े और देश में अपने नेतृत्व का झंडा गाड़ दिए। अधिकतर नेताओं के विकास के पीछे बहुत सारे काले अध्याय उनके साथ जुड़े रहे और उन काले धब्बों ने उन्हें राजनीति में प्रवेश दिलाया। राजनीति में ऐसे नेता आए तो जरूर पर वह स्थान नहीं पा सके जो बाजपेई जी ने अपने टूटते सपनों और अदम्य साहस से प्राप्त किया।
कई ऐसे अवसर आए जहां उन्हें अपने को स्थापित करने का मौका आया पर हाथ से फिसलता रहा। जब उच्च मुकाम का अवसर मिला तो एक बार नहीं तीन तीन बार प्राप्त हुआ और देश को बाजपेई जी का नेतृत्व मिला।सिद्धांतों से पीछे न हटने वाले बाजपेई जी ने सत्ता का परित्याग किया पर अपने उसूलों से समझौता नहीं किया।यही उनका विलक्षण व्यक्तित्व था। संसद में बहुमत साबित करते समय लोगों ने कुछ सांसदों को अपने तरफ मिला लेने की सलाह उन्हें दी पर अडिग बाजपेई जी ने कहा" चिमटे से भी छूना पसंद नहीं करता। आज के नेता पता नहीं क्या क्या कर डालते पर अदभुत कला और व्यक्तित्व के धनी उस महान नेता का कृतित्व ही कुछ ऐसा था।
प्रारंभ से ही बाजपेई जी में नेतृत्व क्षमता बेमिसाल थी।वे अजातशत्रु थे,किसी से उनकी बेरुखी नहीं थी।पक्ष का नेता हो, विपक्ष का नेता हो सभी को शुचिता, विनम्रता, विवेकशीलता और ग्राह्यता का पाठ पढ़ाते थे। उनका कार्यकाल सदियों तक याद किया जाएगा। कई बार उनको जीत मिली तो कभी हार भी मिली लेकिन वे इस हार और जीत से विचलित नहीं होते थे। उनका अटल विश्वास था कि सत्ता एक न एक दिन उनके पास आएगी और वह आई। अपनी ही पार्टी के नेताओं का खराब व्यवहार उन्हें रास नहीं आता था।उन्हें सख्त हिदायत भी देते थे। उनकी एक कविता उनके मनोभाव को देखिए कैसे व्यक्त करती है
बेनकाब चेहरे हैं दाग बहुत गहरे हैं
टूटता तिलिस्म आज सच से भय खाता हूं
गीत नहीं गाता हूं, गीत नहीं गाता हूं।
लगी कुछ ऐसी नजर बिखरा शीशे सा शहर
अपनों के मेले में मीत नहीं पाता हूं
गीत नहीं गाता हूं गीत नहीं गाता हूं।
पीठ में छुरी सा चांद राहु गया रेखा फांद
मुक्ति के क्षणों में बार बार बंध जाता हूं
गीत नहीं गाता हूं।
आजकल के नेताओं से भिन्न उनका विराट व्यक्तित्व था। भाषा, साहित्य, राजनीति, अर्थशास्त्र, समाज, संस्कृति इत्यादि में उनकी प्रवीणता थी। उनके बोलने का अंदाज संभवतः लाखों में एक था। आज भी जब मन करता है उनके पुराने भाषणों के रिकॉर्ड बार बार सुना जाता है। अटल विश्वास के धनी, बाजपेई जी देश के लिए जिए और देश के लिए मरे। बेहद संवेदनशील व्यक्तित्व था उनका। उनकी कूटनीति बहुत दूरगामी होती थी। उन्होंने कहा था कि अगला विश्व युद्ध जल के लिए लड़ा जाएगा। स्वर्ण चतुर्भुज सड़क परियोजना और नदियों को आपस में जोड़ने का उनका सपना था। आज गडकरी के नेतृत्व में सड़कों का जाल बिछ रहा है और उन सड़कों का लाभ व्यवसायियों, उद्योगपतियों, किसानों और आम पब्लिक को बखूबी मिल रहा है। ऐसा नेतृत्व हर समय हर जगह नहीं मिलता। मन में शांति की अभिलाषा लिए उन्होंने लाहौर बस यात्रा भी की थी पर दिल के काले लोग इसे कैसे पचा पाते। शांति की जगह कारगिल का युद्ध मिला और बाजपेई जी ने उसका बखूबी जवाब भी दिया। पाकिस्तान को मुंह की खानी पड़ी।
चौराहे पर लूटता चीर, प्यादे से पिट गया वजीर
चलूं आखिरी चाल कि बाजी छोड़ विरक्ति रचाऊं मैं
राह कौन सी जाऊं मैं।
दो दिन मिले उधार में घाटे के व्यापार में
पल पल का जोडूं हिसाब या पूंजी शेष लुटाऊं मैं
राह कौन सी जाऊं मैं
सपना जन्मा और मर गया मधु ऋतु में ही
बाग झड़ गया।
तिनके टूटे हुए बटोरूं या नवसृष्टि सजाऊं मैं
राह कौन सी जाऊं मैं।
क्या विचित्र अंतर्द्वंद्व है और क्या सकारात्मक सोच है यह इस कविता के माध्यम से समझा जा सकता है।
इस प्रकार का नेतृत्व हमेशा नहीं मिलता। उनके प्रधानमंत्री रहते संसद बिना किसी अवरोध के शानदार तरीके से चलती थी। पक्ष विपक्ष दोनों संसदीय बहसों का आनंद लेते थे।उम्मीद थी कि देश को उनका नेतृत्व लंबे समय तक मिलेगा किंतु सन दो हजार चार में उनकी हार हो जाने से उन्हें सत्ता से हाथ धोना पड़ा और एक नई सरकार मनमोहन सिंह जी के नेतृत्व में बनी।इसके बाद उन्हें अस्वस्थता ने घेर लिया और उन्होंने राष्ट्रीय राजनीति से सन्यास ले लिया। सन2015 में उन्हें भारत के सर्वोच्च सम्मान भारत रत्न से नवाजा गया।
देश को ऐसे नेताओं पर गर्व है जिनकी नजर में न कोई छोटा था न कोई बड़ा था,न कोई नीच था न कोई उच्च था। सब पर उनकी समान नजर थी।अनेक दलों को साथ लेकर जिस तरह से उन्होंने गठबंधन की सरकार चलाई और गठबंधन धर्म का पालन किया वह भी अपने आप में एक अनूठा प्रयोग था। आज ऐसे नेताओं का अभाव है। न किसी को अपशब्द बोलना न किसी विपक्षी को बेइज्जत करना अपितु बड़े ही मर्यादित ढंग से विपक्षी नेताओं की बोलती बंद कर देना बाजपेई जी की एक अद्भुत कला थी।
ऐसे नेता कभी खत्म नहीं होते अपितु राजनीतिक आसमान में दैदीप्यमान नक्षत्र की तरह हमेशा चमकते रहते हैं और अपनी चमक से दूसरों को भी चमकाते रहते हैं।उनकी जयंती पर उनको शत शत प्रणाम है।
(महात्मा गांधी चित्रकूट ग्रामोदय विवि चित्रकूट, सतना)





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