भारत–कनाडा संबंध
राजीव त्यागी
भारत और कनाडा के बीच संबंध ऐतिहासिक रूप से सौहार्दपूर्ण रहे हैं। दोनों देश लोकतांत्रिक मूल्यों, बहुसांस्कृतिक समाज और वैश्विक सहयोग की समान विचारधारा साझा करते हैं। लेकिन पिछले कुछ वर्षों में यह संबंध राजनीतिक मतभेदों और कुछ विवादास्पद घटनाओं के कारण तनावपूर्ण दौर से गुज़रा। इसका सबसे अधिक प्रभाव उन आम भारतीय नागरिकों, छात्रों और पेशेवरों पर पड़ा जो कनाडा में अपनी शिक्षा और रोजगार के माध्यम से जीवन निर्माण कर रहे हैं।
अब जब दोनों देशों के बीच संबंध सुधार की दिशा में नई पहल दिखाई दे रही हैं, तो उम्मीद की किरण फिर से जाग उठी है। भारत–कनाडा संबंधों में गिरावट की मुख्य वजह रही कनाडा में सक्रिय राष्ट्र विरोध का मुद्दा। भारत ने लगातार यह चिंता जताई कि कनाडा की भूमि का उपयोग भारत-विरोधी गतिविधियों के लिए किया जा रहा है। इस विषय पर कई बार राजनयिक स्तर पर असहमति और बयानबाजी हुई, जिसने द्विपक्षीय संवाद को प्रभावित किया। इन घटनाओं के चलते उच्च-स्तरीय वार्ता ठप पड़ गईं, निवेश और व्यापारिक समझौतों की गति धीमी हो गई, और शिक्षा–वीज़ा जैसे विषयों पर भी अप्रत्यक्ष असर पड़ा।
हजारों भारतीय छात्र जो कनाडा में पढ़ाई या नौकरी की तलाश में थे, उन्हें वीज़ा प्रक्रियाओं में कठिनाइयों का सामना करना पड़ा। अब हालात धीरे-धीरे बदलते दिखाई दे रहे हैं। हाल के महीनों में दोनों देशों की सरकारों ने संवाद बहाल करने की दिशा में महत्वपूर्ण पहल की हैं। द्विपक्षीय वार्ता के पुनः प्रारंभ होने से यह संकेत मिला है कि भारत और कनाडा अब अपने मतभेदों को पीछे छोड़कर सहयोग की नई राह पर चलना चाहते हैं।
सबसे उल्लेखनीय परिवर्तन यह है कि कनाडा सरकार ने भारत की सुरक्षा चिंताओं को अधिक गंभीरता से लेना शुरू किया है। आतंकी संगठनों की गतिविधियों पर निगरानी और नियंत्रण के संकेत मिले हैं। यह कदम न केवल भारत के हित में है, बल्कि कनाडा के अपने सामाजिक ताने-बाने की स्थिरता के लिए भी आवश्यक है।





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