हाईवे पर कब तक होते रहे हादसे 

 राजीव त्यागी 

जयपुर-अजमेर हाईवे पर मंगलवार रात फिर वही मंजर दोहराया गया, जो कुछ महीनों पहले भांकरोटा में देखने को मिला था। दूदू के पास मोखमपुरा क्षेत्र में एलपीजी सिलेंडरों से भरे ट्रक से केमिकल टैंकर की भीषण टक्कर हुई और देखते ही देखते हाईवे आग का मैदान बन गया। करीब दो घंटे तक 200 सिलेंडर एक के बाद एक फटते रहे। धमाकों की गूंज दस किलोमीटर दूर तक सुनाई दी। पांच वाहन जलकर राख हो गए, एक व्यक्ति जिंदा जल गया और जयपुर-अजमेर हाईवे छह घंटे तक ठप पड़ा रहा।

 सबसे बड़ा सवाल यही है कि आखिर ऐसे हादसे बार-बार क्यों हो रहे हैं? क्या भांकरोटा जैसी घटनाओं से प्रशासन ने कुछ नहीं सीखा? क्या एनएचएआई और आरटीओ विभाग सिर्फ रिपोर्ट तैयार करने तक सीमित हैं? यह हादसा महज़ एक ट्रक और टैंकर की टक्कर नहीं, बल्कि उस लापरवाह सिस्टम का आईना है जो हर बार लोगों की जान लेकर भी नहीं जागता। हादसे की जड़ में जो कारण बताया गया, वह और भी चौंकाने वाला है। प्रत्यक्षदर्शियों के अनुसार, आरटीओ की गाड़ी देखकर केमिकल टैंकर चालक घबरा गया और जांच से बचने के लिए उसने ढाबे की तरफ गाड़ी मोड़ दी। 

इसी दौरान सामने खड़े एलपीजी सिलेंडरों से लदे ट्रक से उसकी टक्कर हो गई। टक्कर के बाद टैंकर के केबिन में आग लगी और केमिकल के संपर्क में आते ही धमाकों की लड़ी शुरू हो गई। यह स्पष्ट संकेत है कि हमारी सड़क सुरक्षा व्यवस्था भय और अव्यवस्था पर टिकी हुई है- जहां नियमों के पालन का डर नहीं, बल्कि आरटीओ से बचने का डर ज्यादा है। अब यह पूछना जरूरी है कि आखिर एलपीजी और केमिकल जैसे ज्वलनशील पदार्थों को ढोने वाले वाहनों के लिए सुरक्षा मानक कहां हैं? नियम साफ कहते हैं कि ऐसे वाहन आबादी से दूर, निर्धारित मार्गों और समय पर चलें। इन्हें रात में ढाबों या जनसंख्या वाले क्षेत्रों के पास खड़ा करने की सख्त मनाही है। लेकिन इन नियमों का मखौल उड़ाया जा रहा है।




 सिलेंडर खेतों में जा गिरे, धमाके ढाबे के अंदर तक पहुंचे, और कई लोग बाल-बाल बचे। यह सब प्रशासनिक सुस्ती और एनएचएआई की निगरानी व्यवस्था पर गंभीर सवाल खड़े करता है। यह हादसा सिर्फ एक ड्राइवर की गलती नहीं, बल्कि आरटीओ, एनएचएआई, फायर डिपार्टमेंट और जिला प्रशासन की सामूहिक विफलता का नतीजा है। जरूरत अब बहानों की नहीं, व्यवस्था सुधार की है।

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