अमीर-गरीब के बीच बढ़ती खाई
- डा. जयंतीलाल भंडारी
यकीनन इस समय जहां एक ओर वैश्विक आर्थिक चुनौतियों के बीच भारतीय अर्थव्यवस्था दुनिया में सबसे तेजी से आगे बढ़ रही है और पूरी दुनिया में भारत के अरबपतियों की संख्या भी सबसे तेजी से बढ़ रही है, वहीं दूसरी ओर यद्यपि दुनिया में भारत में अत्यधिक गरीबी में सबसे तेजी से कमी आ रही है, लेकिन भारत में अमीर और गरीब के बीच खाई बढ़ती जा रही है। हाल ही में एक अक्टूबर को प्रकाशित एमएम हुरुन इंडिया रिच लिस्ट 2025 के मुताबिक भारत में 9.55 लाख करोड़ रुपए की संपत्ति के साथ रिलायंस इंडस्ट्री के मुकेश अंबानी पहले स्थान पर हैं, जबकि गौतम अडानी 8.15 लाख करोड़ रुपए की संपत्ति के साथ दूसरे स्थान पर हैं। इस सूची के इतिहास में पहली बार कोई महिला शीर्ष तीन में जगह बनाने में कामयाब रही हैं। वह महिला हैं, रोशनी नादर मल्होत्रा। उनके और उनके परिवार की संपत्ति का आकार 2.84 लाख करोड़ रुपए है। यह महत्वपूर्ण बात है कि 2025 की सूची भारत के अरबपति समुदाय में विस्तार का प्रतीक है। देश में अब 358 अरबपति हैं, जो 13 साल पहले की तुलना में 6 गुना अधिक हैं। इस सूची के मुताबिक भारत में 1687 ऐसे भारतीय हैं जिनकी संपत्ति 1000 करोड़ से अधिक है। इस सूची में शामिल सभी लोगों की कुल संपत्ति 167 लाख करोड़ रुपए है जो पिछले साल 2024 की तुलना में 5 फीसदी अधिक है। यह भारत की सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) के लगभग आधे के बराबर है। यह बात महत्वपूर्ण है कि पिछले दो वर्षों में भारत में औसतन हर सप्ताह एक नया अरबपति बना है।
इस रिपोर्ट में यह भी बताया गया है कि भारत के सभी धनी व्यक्तियों ने प्रतिदिन 1991 करोड़ रुपए की दर से संपत्ति अर्जित की है। ऐसे में भारत में अमीर और गरीब के बीच की खाई को कम करने के लिए कई बातों पर ध्यान देना जरूरी है। भारत की अर्थव्यवस्था स्वदेशी आत्मनिर्भरता के साथ तेजी से आगे बढ़ानी होगी और हरसंभव तरीके से गरीब वर्ग के हितों का ध्यान रखना होगा। पूरी दुनिया ने हाल ही में यह भी देखा है कि जब अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के टैरिफ हथियार के डर से दुनिया के अधिकांश देश अमेरिका के सामने झुकते हुए उसकी व्यापार शर्तों को मानते हुए दिखाई दिए हैं, तब भारत अमेरिका के साथ कारोबार समझौते के तहत अपने करोड़ों गरीब किसानों और मछुआरों के हितों के मद्देनजर बिना झुके अपनी शर्तों के साथ अडिग खड़ा रहा। यह भारत सरकार का गरीबों के रोजगार हित में बड़ा कदम है। नि:संदेह भारत में गरीबी में कमी लाने के लिए बहुआयामी प्रयास किए जाने से गरीबी में बहुत तेजी से कमी आ रही है। पिछले दिनों प्रकाशित विश्व बैंक की वैश्विक गरीबी संबंधी रिपोर्ट के मुताबिक भारत में अत्यधिक गरीबी की स्थिति में रहने वाले लोगों की संख्या में पिछले 11 सालों में जबरदस्त गिरावट दर्ज की गई है और अत्यधिक गरीबी से करीब 27 करोड़ देशवासी बाहर निकले हैं। विश्व बैंक ने अत्यधिक गरीबी रेखा के निर्धारण के संबंध में जो नए अनुमान जारी किए हैं, उनके मुताबिक निम्न आय वाले देशों के लिए अत्यधिक गरीबी की रेखा 2.15 डॉलर प्रतिदिन के उपभोग व्यय से बढ़ाकर अब प्रतिदिन 3 डॉलर उपभोग व्यय पर निर्धारित की गई है। ऐसे में देश में अत्यधिक गरीब लोगों की जो संख्या 2011-12 में 27.1 फीसदी थी, वह 2022-23 में घट कर केवल 5.3 फीसदी रह गई है। इससे अत्यधिक गरीबी में रहने वाले लोगों की संख्या 34.44 करोड़ से घटकर 7.52 करोड़ रह गई है। निश्चित रूप से यह परिदृश्य भारत में गरीब कल्याण की दिशा में बड़ी प्रगति का स्पष्ट संकेत करता है। साथ ही यह परिदृश्य पिछले 11 सालों में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के द्वारा गरीब कल्याण को लक्षित करके बनाई गई अत्यधिक लाभकारी योजनाओं की सार्थकता भी प्रस्तुत करता है।
खासतौर से देश में करीब 55 करोड़ से अधिक जनधन खातों (जे), करीब 138 करोड़ आधार कार्ड (ए) तथा करीब 119 करोड़ मोबाइल उपभोक्ताओं (एम) की शक्ति वाले जैम से सुगठित बेमिसाल डिजिटल ढांचा गरीबों के सशक्तिकरण में असाधारण भूमिका निभा रहा है। इस जैम के बल पर देश के गरीब लोगों के खातों में सीधे आर्थिक राहत हस्तांतरित हो रही है। इसमें कोई दो मत नहीं हैं कि प्रधानमंत्री गरीब कल्याण अन्न योजना (पीएमजीकेएवाई) के तहत 80 करोड़ से अधिक गरीब व कमजोर वर्ग के लोगों को सार्वजनिक वितरण प्रणाली (पीडीएस) के माध्यम से मुफ्त खाद्यान्न वितरित करते हुए उनकी गरीबी को कम करने में अहम भूमिका निभा रहा है। सरकार ने पीएमजीकेएवाई के तहत गरीबों को 2028 तक मुफ्त अनाज दिया जाना सुनिश्चित किया है। गरीबों के सशक्तिकरण से संबंधित कई और योजनाओं से गरीबी घट रही है। इनमें स्वच्छ ईंधन के लिए उज्ज्वला योजना, सभी घरों में बिजली के लिए सौभाग्य योजना, पेयजल सुविधा के लिए जल जीवन मिशन, डिजिटल इंडिया, स्वच्छ शौचालय और आयुष्मान भारत जैसी योजनाएं शामिल हैं। यह बात भी महत्वपूर्ण है कि अब आर्थिक विकास और नई तकनीकों का उपयोग गरीबों के हित में किया जाना जरूरी है। अब कर सुधारों का लाभ गरीब और कमजोर वर्ग के लोगों तक पहुंचना चाहिए। हाल ही में उभरते भारत कार्यक्रम को संबोधित करते हुए वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने कहा कि नए कर सुधार देश के हर नागरिक के लिए एक बड़ा उपहार हैं। इन दिनों नए सुधारों और नई कर व्यवस्थाओं पर प्रकाशित हो रही विभिन्न रिपोर्टों में कहा जा रहा है कि इन आमूल कर सुधारों से न केवल आम आदमी की जिंदगी आसान होगी। ऐसे में कई परिवारों को अपनी आजीविका कमाने और युवाओं के लिए नौकरी के अवसर पैदा करने में मदद मिलेगी। इससे देश के गरीब और कमजोर वर्ग के लोगों की आमदनी में वृद्धि होगी। चूंकि अब देश का लक्ष्य 2047 में आम आदमी की खुशहाली के साथ देश को विकसित भारत बनाना सुनिश्चित किया गया है, इस लक्ष्य को पाने के लिए कई बातों पर रणनीतिक रूप से ध्यान देना होगा। निश्चित रूप से देश से गरीबी के तेजी से घटने और अर्थव्यवस्था के तेजी से बढऩे के बावजूद अभी हमें स्वदेशी आत्मनिर्भरता की डगर पर और तेजी से आगे बढऩा होगा। हमें अभी आम आदमी के कल्याण और प्रतिव्यक्ति आय बढ़ाने के लिए मीलों चलना होगा।
यद्यपि इसी वर्ष 2025 में भारत 140 करोड़ से अधिक जनसंख्या की कुल आमदनी के आधार पर जापान को पीछे छोडक़र दुनिया की चौथी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बन गया है, लेकिन हमें आत्मसंतुष्ट नहीं होना चाहिए। स्थिति यह है कि प्रति व्यक्ति आय के मामले में भारत दुनिया के कई देशों से बहुत पीछे है। जापान की प्रति व्यक्ति आय भारत की तुलना में लगभग 11.8 गुना अधिक है। ऐसे में अभी हमें देश में गांवों की मजबूती, कृषि क्षेत्र की ऊंचाई और छोटे शहरों के विकास के साथ-साथ आम आदमी की शिक्षा, स्वास्थ्य और रोजगार के लिए अधिक प्रयास करने होंगे। नि:संदेह अब गरीबों के रोजगार और गरीबों की आमदनी बढ़ाने के लिए सूक्ष्म, लघु एवं मध्यम उद्योगों (एमएसएमई) को उनके लिए वरदान बनाना होगा।
एमएसएमई को बढ़ावा देने के लिए सीधे मदद और प्रक्रियाओं के माध्यम से मदद, दोनों ही डगर पर आगे बढऩा होगा जिससे उनके व्यापक ढांचे में लचीलापन मिल सकेगा और उनके अनुपालन लागत में भी कमी आएगी। सरकार के द्वारा एमएसएमई के कारोबार करने को आसान बनाने और घरेलू खपत को बढ़ाने के तरीकों पर नए सिरे से आगे बढऩा होगा। नई सप्लाई चेन और नए बाजारों की तलाश की जानी होगी। विदेशों में वेयरहाउसिंग की सुविधा और वैश्विक ब्रांडिंग पहल से भी एमएसएमई के निर्यात का बाजार बढ़ाना होगा।
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