प्रोफ़ेसर चेतन सिंह सोलंकी ने आईआईटी बॉम्बे से इस्तीफा दिया

नोएडा। फटे मोज़े पहनने के कारण प्रसिद्ध हुए आईआईटी बॉम्बे के प्रोफेसर चेतन सिंह सोलंकी ने एक दुर्लभ और क्रांतिकारी कदम उठाते हुए अपने पद से इस्तीफा दे दिया है।

ज्ञात है कि प्रोफेसर सोलंकी एक सौर वैज्ञानिक और जलवायु योद्धा है, जिन्हें अक्सर भारत का "सौर पुरुष" और "सौर गांधी" कहा जाता है। उन्होंने ऐसा इसलिए किया है, ताकि वे खुद को पूरी तरह जलवायु परिवर्तन जैसे गहरे संकट से मानवता को बचाने के लिए अपने आपको समर्पित कर सके। प्रोफेसर सोलंकी कहते है कि हम "अभी नहीं तो कभी नहीं की स्थिति में जी रहे है। हम जलवायु आपातकाल में जी रहे हैं और दुनिया गहरी नींद में सो रही है"। इसके समाधान के लिए प्रोफ. सोलंकी सभी से एक सरल सा प्रश्न पूछते है कि "जब हमारी आय सीमित होती है तो हमारे खर्चे भी सीमित होते हैं। इसी तरह जब पृथ्वी का आकार सीमित है, इसके सारे संसांधन जैसे खनिज, मिट्टी सीमित है तो फिर हमारी इमारतें, वाहन और कपड़ों की संख्या लगातार कैसे बढ़ रही है?" उनका मानना है कि जलवायु परिवर्तन को रोकने लिए हम सभी को "सीमित धरती-सीमित उपभोग" मंत्र को अपनाना पड़ेगा, जो कि उनके द्वारा चलाये गए दी फाइनाइट अर्थ मूवमेंट को मूल मंत्र है। प्रोफ. सोलंकी का फटे मोज़े वाला फोटो और उनका "मैं अफोर्ड  कर सकता हूँ, लेकिन प्रकृति नहीं कर सकती", इस मूल मंत्र का ही एक उदहारण है। आईआईटी बॉम्बे से अपने इस्तीफे की घोषणा करते हुए उन्होंने कहा: "मैंने प्रतिष्ठा के बजाय उद्देश्य को चुना, क्योंकि हम अब जलवायु इमरजेंसी में जी रहे है जिसके कारण धीरे धीरे पृथ्वी पर मानव जीवन के अस्तित्व खतरा बढ़ रहा है।"

प्रोफ़ेसर सोलंकी ने आईआईटी बॉम्बे में दो दशक से ज़्यादा समय बिताया है, सौर ऊर्जा शिक्षा और अनुसंधान में अग्रणी भूमिका निभाते हुए - सोलर विषय पर कई किताबें लिखीं, पेटेंट हासिल किये, ऑनलाइन पाठ्यक्रम तैयार किए और सोलर ऊर्जा पर भारत का सबसे बड़ा  रिसर्च सेण्टर भी स्थापित किया। मध्य प्रदेश के एक छोटे से अनजान गाँव के एक साधारण किसान परिवार से आने के बाद, आईआईटी बॉम्बे  से मास्टर डिग्री करके, उन्होंने यूरोप में सोलर ऊर्जा पर पीएचडी की उपाधि प्राप्त की, और वर्ष २००४ में  अपने देश की सेवा के लिए भारत लौट आए।  धीरे धीरे वह सोलर ऊर्जा विषय पर भारत की अग्रणी आवाज़ों में से एक बन गए।

वर्ष 2020 में प्रोफ. सोलंकी ने  जलवायु परिवर्तन जैसे गंभीर विषय के प्रति अवेयरनेस लाने और आम नागरिको, शैक्षणिक संस्थाओ और सरकारी तंत्र को सही दिशा में एक्शन लेने के लिए एक विशेष सोलर बस के द्वारा एनर्जी स्वराज यात्रा चालू की जिसका समापन  2030 में होगा। इस यात्रा के दौरान उन्होंने ११ साल घर नहीं जाने का संकल्प भी लिया और उनकी सोलर बस को ही अपना घर बना लिया। पिछले पांच सालो में, उन्होंने सोलर बस में रहकर पुरे देश में 68000 ‘े की यात्रा की और करीब 1650 से ज्यादा व्याख्यान जलवायु परिवर्तन विषय पर दिए। उन्होंने अपनी यात्रा में आम आदमी और संस्थाओ की जलवायु परिवर्तन के प्रति निष्क्रियता को भी समझा और समाधान के लिए कई प्रोग्राम बनाये जैसे ऊर्जा साक्षरता, इंदौर क्लाइमेट मिशन इत्यादि। लेकिन अब, वे कहते हैं, जागरूकता पर्याप्त नहीं है - हमें कार्रवाई की आवश्यकता है। उन्होंने कहा की  "2 डिग्री सेल्सियस ग्लोबल वार्मिंग की सीमा - जिसके आगे जलवायु परिवर्तन अपरिवर्तनीय हो जाएगा - केवल 20 से 25 साल ही दूर है। यदि हम ग्लोबल वार्मिंग की इस इस सिमा को पार किया तो मनुष्य जीवन के अस्तित्व को ही खतरा बन जायेगा।  और हमारा जीवन न सिर्फ कठिन बल्कि रोजमर्रा का जीवन जीना महंगा भी हो जायेगा।"

प्रो. सोलंकी ने सीमित धरती आंदोलन या फाइनाइट अर्थ मूवमेंट (ऋएट) की शुरुआत की है, जो इस सरल सत्य पर आधारित है कि "एक सीमित ग्रह पर, असीमित उपभोग संभव नहीं है।" उनका लक्ष्य "ऋएट" के माध्यम से अगले मात्र तीन वर्षो में लगभग एक अरब लोगों को जलवायु सुधार की कार्रवाई में शामिल करना है। उन्होंने कहा की मेरा त्यागपत्र सिर्फ "एक करियर में बदलाव नहीं, बल्कि कर्तव्य का आह्वान है।" "आईआईटी बॉम्बे ने मुझे प्रतिष्ठा दी, लेकिन अब ऋएट में उद्देश्य का बीज छिपा है।" 23 अक्टूबर 2025 आईआईटी बॉम्बे में प्रो. सोलंकी का अंतिम कार्य दिवस होगा। उन्होंने नागरिकों, संस्थानों और विश्व की सभी सरकारों से सीमित धरती आंदोलन में शामिल होने और सीमित जीवन को न सिर्फ एक राष्ट्रीय बल्कि अंतरास्ट्रीय मिशन बनाने का आह्वान किया है, क्योकि जलवायु परिवर्तन सम्पूर्ण मानवता की समस्या है।

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