खनन में बढ़ते निजीकरण के बाद भी छत्तीसगढ़ में सरकारी खदानों का दबदबा
खदानों और पेड़ कटाई में बढ़ रहा सरकारी कंपनियों का हिस्सा
छत्तीसगढ़, 7 अगस्त 2025 ।पिछले करीब पांच वर्षो में निजीकरण के चलते छत्तीसगढ़ में निजी कंपनियों का खनन क्षेत्र में काफी विस्तार हुआ है। फिर भी राज्य में केंद्र और सरकार की इकाइयों का प्रभाव में कमी नहीं आयी है। एक तरफ जब सरकारी खनन और बिजली संयंत्र कोयला और खनिज संपत्ति के लिए विस्तारण कर रही हैं तब उनकी तरफ से पेड़ कटाई की अर्जियां भी बढ़ रही है।
वर्तमान में छत्तीसगढ़ में कोयले और अन्य खनिजों की लगभग 95 खदानें चल रही हैं, जिनमें 62 केंद्र सरकार की कंपनियां, सात विविध राज्य सरकारों की कंपनियां और 27 निजी कंपनियां शामिल हैं। ये खदानें कोयला, बॉक्साइट, लौह अयस्क इत्यादि सहित ओपनकास्ट और अंडरग्राउंड खनन करती हैं।
छत्तीसगढ़ में सक्रिय निजी खनन कंपनियों की मौजूदगी के बावजूद, आंकड़े बताते हैं कि पेड़ों की कटाई के मामले में अब भी सरकारी खनन परियोजनाएं सबसे आगे हैं।
“वन (संरक्षण) अधिनियम, 1980 के तहत स्वीकृत परियोजनाओं की स्थिति – छत्तीसगढ़ राज्य में (दिनांक 02-07-2025 तक)” रिपोर्ट के अनुसार, कुल 4,92,210 पेड़ों की कटाई हुई है। इसमें से केवल 1,67,286 पेड़ निजी कंपनियों द्वारा काटे गए हैं, जबकि 3,24,924 पेड़ केंद्र और राज्य की सार्वजनिक क्षेत्र की कंपनियों (PSU और SPSU) द्वारा काटे गए हैं — यानी कुल कटाई का लगभग 66% हिस्सा सरकारी इकाइयों के नाम है।
एक सरकारी इकाई ने 8 परियोजनाओं में कुल 77,000 से अधिक पेड़ काटे हैं, जिनमें से एक परियोजना में ही 38,000 से अधिक पेड़ काटे गए हैं, जो प्रत्येक निजी परियोजना की तुलना में कहीं अधिक है। वहीं, एक निजी इकाई ने 27,000 से अधिक पेड़ काटे हैं, जो सूची में सबसे अधिक है।
हालांकि निजी कंपनियों द्वारा की गई कटाई भी कम नहीं है, फिर भी स्पष्ट है कि वर्तमान में सबसे अधिक पर्यावरणीय असर सरकारी खनन परियोजनाओं से ही हो रहा है। यह उल्लेखनीय है की छत्तीसगढ़ की गरमाई हुई राजनीती में अडाणी समूह का नाम सुर्ख़ियों में रहता है पर वह राज्य में एक भी खदान का मालिक नहीं है। अडानी समूह की एक सीमेंट कंपनी जो की हाल में खरीदी गयी थी वह एक छोटी खदान की पहले से ही मालिक है। अदाणी समूह कुछ सरकारी खदानों के लिए स्पर्धात्मक बोली द्वारा नियुक्त किया हुआ सिर्फ एक ठेकेदार है और उसकी जिम्मेदारी सिर्फ कोयला खनन कर अन्य सरकारी विद्युत् संयंत्र को ईंधन पहुंचाने की है।
ईंधन और बिजली की बढती हुई मांग एक संतुलित नीति की मांग करती है, जिसमें आर्थिक विकास के साथ-साथ पर्यावरण संरक्षण को भी प्राथमिकता दी जाए। आगे बढ़ते खनन कार्यों के साथ पुनः वनीकरण (reforestation), क्षतिपूर्ति वृक्षारोपण (compensatory afforestation) और कठोर पर्यावरणीय निगरानी को अनिवार्य रूप से लागू करना होगा ताकि छत्तीसगढ़ की वन-संपदा सुरक्षित रह सके।
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