दिव्यांग बच्चाें ने सटीक निशाना लगा कर अपने को किया साबित
मेरठ। कहते है जब दिल में जोश हो तो कोई भी मुकाम हासिल किया जा सकता है। इसी को कर दिखा है मेरठ के दिव्यांग होनकर शूटर जो निशानेबाजी में अपने को 21 साबित कर रहे है।
दरअसल दिव्यांग के बारे में लोगों की राय कुछ अलग होती है। वह ये सोचते है कि दिव्यांग कुछ नहीं कर सकते है। लेकिन समाज में ऐसे कुछ दिव्यांग है जो ऐसे लोगों की सोच बदलने के लिए अपने मुकाम हासिल कर रहे है। इतना नहीं ही शिक्षा के क्षेत्र के अलावा वह हर क्षेत्र में दूसरों के लिए नजीर बन रहे है।
हम बात कर रहे है प्रियांशु मलिक की। खुद 7 तक निशानेबाजी खेलते रहे। । नेशनल गेम खेलने के बाद बीमारी के कारण वे अपने खेल को आगे नहीं जा सके । इसके बाद उनके मन में विचार आया कि जो जन्मसिद्ध ही ऐसे बच्चे है उनका क्या होता होगा इस सोच के साथ उन्होंने ये एकेडमी शुरू की थी ।
मात्र तीन तीन महीने की तैयारी के बाद ही ऐसे दिव्यांग बच्चों ने मेडल जीतकर ये साबित कर दिखाया है कि अगर मेहनत की जाए तो कुछ भी असंभव नहीं है । उनकी इस प्रतिभा को निखारने और उनके साथ उनसे भी अधिक मेहनत करने वाले उनके कोच ने बताया कि ये बच्चे बहुत मेहनत से इसे सीखते है।अब उन्हें इन्हें सीखने में भी अच्छा महसूस होता है।
भाषा के साथ अन्य दिक्कत भी आई
कोच प्रियांशु ने बताया कि शुरूआती दौर में भाषा की भी दिक्कत उनके ओर इन खिलाड़ियों के बीच हुई। इसी बीच कई बात ये गन के साथ भी छेड़खानी कर देते थे । ऐसे में इनको समझाना मुश्किल हो जाता था लेकिन उसके बाद आपस में ताल मेल बन गया और अब करीब 25 ऐसे खास बच्चे निशानेबाजी की तैयारी कर रहे है। बताया कि बच्चों की प्रतिभा और मेहनत का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि जिले में भी हाल ही में हुई जिला स्तरीय जूनियर प्रतियोगिता में सामान्य खिलाड़ियों के साथ इन्होंने प्रतिभाग किया। इसके बाद इन्होंने उनको पीछे छोड़ पहला, दूसरा , तीसरा तीनों पदक अपने आप जीत लिए।
तीन महीने की तैयारी के साथ जीते इनाम
16 वर्षीय हर्ष डागर ने अंडर 18 प्रतियोगिता में प्रथम इनाम, 10 वर्षीय धैर्य ने दूसरा इनाम और 15 वर्षीय अनंत कुमार ने प्रतियोगिता में तृीतय स्थान प्राप्त किया। इसमें इनके साथ उम्र में इनसे बड़े खिलाड़ियों ने भी प्रतिभाग किया था। इसके बाद भी मात्र तीन महीने की तैयारी में ही इन्होंने मेडल जीत लिए।
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