छोड़ो शर्माना साइकिल से करो आना- जाना


- डॉ. अशोक कुमार वर्मा  
विश्व भर में 3 जून को साइकिल दिवस मनाया जाता है। इसका निर्णय संयुक्त राष्ट्र महासभा द्वारा वर्ष  2018 में लिया गया था। इसको मनाने के पीछे अनेक कारण और उद्देश्य हैं। जहां एक और साइकिल पर्यावरण संरक्षण में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकती है वहीं दूसरी और प्रदुषण को नियंत्रित करने में बहुत बढ़ा योगदान सिद्ध हो सकता है। साइकिल के इतने अधिक लाभ हैं कि गिनने में बहुत अधिक समय का प्रयोग होगा। आओ हम इस पर चर्चा करते हैं कि साइकिल का प्रयोग किस प्रकार लाभदायक सिद्ध हो सकता है।  
आज चाहे छोटा बच्चा हो अथवा वृद्ध जो ठीक से ईंधन चलित वाहन में बैठ भी नहीं सकता वो आपको गाडी चलाता हुआ सड़क पर देखने को सामान्य रूप से मिल जाएगा। इतना ही नहीं ऐसे ऐसे बच्चे दुपहिया वाहन को चला रहे होते हैं जिनके पैर धरती पर ठीक से नहीं रखे जा रहे होते। आज से लगभग 30 वर्ष पूर्व सभी घरों में एक अथवा दो साइकिल अवश्य होती थी जिसका प्रयोग वे दैनिक कार्यों के लिए किया करते थे। सबसे बड़ी बात पुराने समय के लोग स्वस्थ रहते थे और उन्हें कोई व्याधि नहीं होती थी क्योंकि वे अपने सभी कार्य स्वयं करते थे और बहुत अधिक परिश्रम किया करते थे। जैसे कि हाथ पैर से अधिक परिश्रम करना, घर, खेत खलियान में कार्य करना। दूर दूर तक साइकिल का प्रयोग करके जाना। मेरे पिता एक सैनिक थे और वे 1962 से 1970 तक भारत-पाक सीमा पर नियुक्त थे, उन दिनों मेरे दादा और ताऊ करनाल से साइकिल चलाकर उन्हें मिलने जाया करते थे। यदि ये कहें कि साइकिल ही लोगों की सरल और सुखद सवारी हुआ करती थी तो इसमें कोई अतिश्योक्ति नहीं।
साइकिल की सवारी करते समय कई बार एक ही साइकिल पर तीन लोग एक साथ बैठ कर यात्रा करते थे। लोग इतने हृष्ट-पुष्ट होते थे कि एक व्यक्ति साइकिल पर दो अन्य व्यक्तियों को बिठाकर ले जा सकता था। मार्ग में चलते-चलते एक दूसरे से राम-राम और एक दूसरे के बारे लोग पूछा करते थे। इतना ही नहीं रात्रि में विश्राम के लिए अपने घर में ही ठहरा लिया करते थे। लोगों में एक दूसरे के प्रति प्रेम की भावना कूट कूट कर भरी हुई थी। साइकिल के साधन का एक सबसे बड़ा लाभ यह भी है कि इसमें तेल डलवाने की चिंता बिल्कुल नहीं, बस टायर में हवा पूरी हो और ब्रेक ठीक से काम करते हो तो चल गया काम। यदि साइकिल में पंक्चर भी हो जाए तो अधिक तनाव लेने की आवश्यकता नहीं क्योंकि इसको खींचना बहुत ही सरल है। और छोडो कैसे भी हो मार्ग साइकिल के लिए कोई समस्या नहीं। थोड़े से स्थान से साइकिल निकल जाती है और लम्बी चौड़ी सड़कों की इसे आवश्यकता नहीं।  


 समय बदला, लोगों की सोच बदली, साइकिल का स्थान स्कूटर, फिर मोटर साइकिल और अब कार ने ले लिया। आज सबसे बड़ी बात यह है कि एक कार और एक ही व्यक्ति जो चला रहा है। सड़कों का विकास हुआ, सड़के चौड़ी की गयी, फिर चौड़ी की गयी लेकिन फिर भी सड़को पर गाड़ियों की बढ़ती ही जा रही है। दिल्ली जैसे बड़े शहरों में घंटों जाम लगा रहता है। सरकार भी सड़के कहाँ तक चौड़ी करे। लोग सब्ज़ी मंडी में सब्ज़ी लेने भी कार से जाते हैं। इतना ही नहीं दो 100 मीटर की दुरी के लिए भी लोग ईंधन चलित वाहन का प्रयोग करते हैं कहते हैं कि समय नहीं है। वास्तव में लोगों की प्रवृति और सहनशक्ति क्षीण हो चुकी है। कुछ डग चलने में भी उनके स्वास फूलने लगते हैं। आज एक बहुत बड़ी संख्या प्रात: काल की सैर के लिए घर से कार लेकर चलते हैं और जिम में जाकर साइकिल चलाते हैं।
क्यूबा देश एक छोटा देश है और एक समय वहां की अर्थव्यवस्था और पर्यावरण बहुत अधिक प्रदूषित हो गया था। एक बार वहां के राष्ट्रपति फिदेल कास्त्रो लुधियाना (भारत) आये और वहां से अपने देश के लिए कुछ हज़ार साइकिल आर्डर कर गए। अपने देश जाकर उन्होंने सुझाव दिया कि सभी कर्मचारियों  की नियुक्ति 8 किलोमीटर के क्षेत्र में कर दी जाए और उन्हें एक-एक साइकिल उपलब्ध कराइ जाए ताकि वे कार्यालय साइकिल से आएं और जाए। इस प्रकार उन्होंने अपने देश की अर्थव्यवस्था को सुधार दिया था। इसके साथ ही वहां पर्यावरण में बहुत अधिक सुधार हुआ। हमें भी उनसे प्रेरणा लेने की आवश्यकता है।

कुछ वर्षों पूर्व हरियाणा के गुरुग्राम सहित अनेक ज़िलों में सप्ताह में एक दिन साइकिल से सरकारी कार्यालयों में आने जाने की व्यवस्था हुई थी लेकिन थोड़े समय में ही वह बंद हो गई। इसी प्रकार कुरुक्षेत्र में भी प्रेरणा समिति हरियाणा द्वारा साइकिल रैलियां निकाल कर लोगों को साइकिल के साधन का प्रयोग करने के लिए प्रोत्साहित किया गया था और यह आज भी नियमित है। प्रेरणा समिति हरियाणा के संस्थापक डॉ. अशोक कुमार वर्मा (लेखक) आज भी केवल और केवल साइकिल का प्रयोग करते हैं। आज भी वे अपने साइकिल पर पट्टी लगाकर चलते हैं जिस पर लिखा होता है- साइकिल चलाओ, बीमारी भगाओ, स्वस्थ हो जाओ। छोडो अब शर्माना, अच्छा स्वास्थ्य चाहिए तो साइकिल पर शुरू करो आना - जाना। पर्यावरण अगर है  बचाना, तो चाहिए सबको, साइकिल चलाना। साइकिल चलाओ,  प्रदुषण भगाओ। कार चलाये तब, अति जरुरी हो जब। अगर साइकिल हो हर घर, पुलिस चालान का नहीं फिर डर। दूर का सफर रेल व् परिवहन की बसों से करे तय, सड़क दुर्घटना का नहीं रहेगा फिर कोई भय। इन्धन को बचाकर देश को समृद्ध बनाएंगे, इसीलिए आज से हम रोज साइकिल चलाएंगे आदि।
हरियाणा सरकार द्वारा 1 सितम्बर से 25 सितम्बर 2023 और 5 अप्रैल से 27 अप्रैल 2025 में हरियाणा में दो बार साइक्लोथॉन यात्राएं निकाली गई हैं जिसका उद्देश्य हरियाणा को नशा मुक्त करना है। यह साइक्लोथॉन यात्राएं पूरे देश के लिए एक प्रेरणा का विषय रही है। इनमें एक बच्चे से लेकर मुख्यमंत्री तक साइकिल चलाकर बहुत ही उत्तम सन्देश दिया गया था। इसमें साइकिल के प्रति जो उदासीनता समाज में आ गई थी अथवा जो सोच लोगों ने बना ली थी उस पर अंकुश लगा है। नशे जैसी विषम समस्या के निवारण के साथ साइकिल के साधन को अपनाने की सकारात्मक सोच एक बहुत ही बड़ी प्रेरणा और महत्वपूर्ण सन्देश सिद्ध हुई है।    

 इस प्रकार की जागरूकता आज समय की आवश्यकता है। आज देखा जाए तो हर कोई व्यक्ति किसी न किसी रोग से पीड़ित है। इसका सबसे बड़ा कारण यही है कि हम अधिकतर स्वचलित संसाधनों पर निर्भर होते जा रहे हैं। शारीरिक परिश्रम वाले कार्य नहीं करते और दिन प्रतिदिन रोगों का शिकार हो रहे हैं इनमें मोटापा, शर्करा, तनाव इत्यादि कई भयानक व्याधियां आज घर कर रही हैं।  

 आज हमें आवश्यकता है, अच्छा स्वास्थ्य, अच्छा पर्यावरण, शुद्ध हवा, शुद्ध पानी और शुद्ध विचार, इसके लिए हमे अपनी सोच को बदलना होगा। अपने आप में सामंत या अमीर होने का भ्रम त्यागना होगा। आधुनिकता के प्रभाव में हमें अपनी सवारी को बदलना होगा और साइकिल को अपने जीवन की मुख्य सवारी बनाना होगा।  छोटे छोटे काम साइकिल की सवारी से शुरू करें और देश की उन्नति में सहायक सिद्ध हों। हम ये नहीं कहते कि इंधन वाले वाहन न चलाये, लेकिन चलाये तब अति जरुरी हो जब। हमें लम्बी दूरी की यात्राएं निजी कार की अपेक्षा परिवहन की बस या रेलगाड़ी से करनी चाहिए।          
(लेखक हरियाणा पुलिस में सेवारत हैं)


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