अब तीसरी बड़ी आर्थिकी की डगर
- डा. जयंतीलाल भंडारी
हाल ही में 24 मई को नीति आयोग ने बताया कि जापान को पीछे छोड़ते हुए भारत दुनिया की चौथी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बन गया है और आगामी 2.5 से 3 सालों में भारत दुनिया की तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था के रूप में रेखांकित होते हुए भी दिखाई दे सकेगा। इस परिप्रेक्ष्य में उल्लेखनीय है कि 26 मई को दुनिया के ख्याति प्राप्त अरबपति निवेशक मार्क मोबियस ने कहा कि जापान को पछाड़ते हुए चौथी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बनना भारत की एक अविश्वसनीय उपलब्धि है। वास्तव में भारत के विश्व की शीर्ष अर्थव्यवस्थाओं में आगे बढऩे के पीछे जो प्रमुख कारण हैं, उनमें 140 करोड़ की जनसंख्या, देश के मध्यम वर्ग की बढ़ती क्रयशक्ति, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का दूरदर्शी नेतृत्व और मजबूत आर्थिक नीतियां शामिल हैं। साथ ही इस समय भारत जिस ऊंची विकास दर और आर्थिक रणनीति के साथ आगे बढ़ रहा है, उससे भारत जल्द ही दुनिया की तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बनते हुए भी दिखाई देगा। गौरतलब है कि दुनिया की तीसरी बड़ी अर्थव्यवस्था बनने की डगर पर भारत को कई चुनौतियों से मुकाबला करते हुए आगे बढऩा होगा। वैश्विक व्यापार तनाव, टैरिफ में हुई बढ़ोतरी, वैश्विक आपूर्ति श्रृंखलाओं में व्यवधान तथा बढ़ते हुए व्यापार घाटे जैसी चुनौतियों से भारत को निपटना होगा। खास तौर से भारत के द्वारा व्यापार घाटे पर नियंत्रण के लिए रणनीतिपूर्वक आगे बढऩा जरूरी है। चीन से वर्ष-प्रतिवर्ष तेजी से बढ़ते हुए आयातों को नियंत्रित करना होगा। हाल ही में प्रकाशित नवीनतम आंकड़ों के मुताबिक चीन के साथ द्विपक्षीय कारोबार में भारत लगातार घाटे की स्थिति में बना हुआ है।



पिछले वित्त वर्ष 2024-25 में चीन को भारत का निर्यात 14.5 प्रतिशत घटकर 14.25 अरब डॉलर रह गया, जबकि 2023-24 में यह 16.66 अरब डॉलर था। इतना ही नहीं, चिंताजनक यह भी है कि चीन से 2024-25 में आयात 11.52 प्रतिशत बढक़र 113.45 अरब डॉलर हो गया, जबकि 2023-24 में यह 101.73 अरब डॉलर था। चीन के साथ व्यापार घाटा पिछले वित्त वर्ष में करीब 17 प्रतिशत बढक़र 99.2 अरब डॉलर हो गया, जो 2023-24 में 85.07 अरब डॉलर था। चीन 2024-25 में 127.7 अरब डॉलर के द्विपक्षीय व्यापार के साथ भारत का दूसरा सबसे बड़ा व्यापारिक साझेदार बना रहा। दोनों देशों के बीच 2023-24 में 118.4 अरब डॉलर का द्विपक्षीय व्यापार हुआ था। चीन पर निर्भरता कम करने के जो रणनीतिक कदम उठाए गए हैं, उनका अभी जमीनी तौर पर कोई विशेष असर नहीं दिखा है। इस परिप्रेक्ष्य में उल्लेखनीय है कि 26 मई को प्रधानमंत्री मोदी ने गुजरात के दाहोद में आयोजित जनसभा को संबोधित करते हुए कहा कि हमें आयातित वस्तुओं की खरीदी की बजाय देश में उत्पादित उत्पादों को खरीदने का संकल्प लेना चाहिए। यह देश की प्रगति के लिए जरूरी है। निश्चित रूप से इस समय सूक्ष्म, लघु और मझौले उद्यम (एमएसएमई) देश को तीसरी बड़ी आर्थिकी बनाने में अहम भूमिका निभाएंगे। जहां एमएसएमई देश से निर्यात बढ़ाने में नई भूमिका निभा सकते हैं, वहीं आयात नियंत्रण में भी मददगार हो सकते हैं।

इस समय नए व्यापार युग के बदलाव के दौर में भारत के एमएसएमई के लिए चुनौतियों के बीच दुनिया में आगे बढऩे के ऐतिहासिक अवसर भी हैं और ये उद्योग वैश्विक आपूर्ति श्रृंखला में प्रतिस्पर्धी बन सकते हैं। इसमें कोई दो मत नहीं है कि टैरिफ वार से एमएसएमई क्षेत्र को जो झटका लग रहा है, उस झटके से एमएसएमई को उबारने के लिए जहां एक ओर सरकार के द्वारा एमएसएमई के समक्ष दिखाई दे रही चुनौतियों के समाधान के लिए रणनीति बनाकर निर्यातकों को सहारा देना होगा, वहीं एमएसएमई क्षेत्र के उद्यमियों और निर्यातकों को भी नई चुनौतियों के मद्देनजर तैयार होना होगा। नि:संदेह देश को तीसरी बड़ी अर्थव्यवस्था बनाने में भारत की नई वैश्विक व्यापार रणनीति अहम होगी। भारत के द्वारा विगत 6 मई को ब्रिटेन के साथ किए गए मुक्त व्यापार समझौते के बाद अब अमरीका और यूरोपीय यूनियन के साथ मुक्त व्यापार समझौतों को 31 दिसंबर 2025 तक पूर्ण किए जाने के लक्ष्य की ओर तेजी से आगे बढऩा होगा। इस समय भारत और अमरीका के बीच द्विपक्षीय कारोबार समझौते (बीटीए) के शुरुआती चरण के लिए वार्ता तेजी से आगे बढ़ रही है और 8 जुलाई से भारत और अमरीका के बीच अंतरिम व्यापार समझौता लागू हो सकता है।



हाल ही में अमरीका के वित्तमंत्री स्कॉट बेसेंट ने व्हाइट हाऊस में एक प्रेस कान्फ्रेंस में कहा कि पूरी दुनिया में भारत एक ऐसे पहले देश के रूप में सामने आया है, जो अमरीका के साथ सबसे पहले टैरिफ पर प्रभावी वार्ता करते हुए द्विपक्षीय कारोबार समझौते को तेजी से अंतिम रूप देने की डगर पर आगे बढ़ रहा है। भारत के द्वारा ओमान, कनाडा, दक्षिण अफ्रीका, इजराइल, भारत गल्फ कंट्रीज काउंसिल सहित अन्य प्रमुख देशों के साथ भी एफटीए को शीघ्रतापूर्वक अंतिम रूप दिया जाना होगा। इसमें कोई दो मत नहीं है कि भारत को दुनिया की तीसरी बड़ी आर्थिकी बनाने में देश से सेवा निर्यात (सर्विस एक्सपोर्ट) की भूमिका भी प्रभावी होगी। इस समय पूरी दुनिया में भारत सेवा निर्यात की डगर पर छलांगे लगाकर आगे बढ़ रहा है। भारत को सेवा निर्यात की नई वैश्विक राजधानी के रूप में रेखांकित किया जा रहा है। हाल ही में वाणिज्य मंत्रालय के द्वारा प्रकाशित आंकड़ों के मुताबिक पिछले वित्तीय वर्ष 2024-25 में भारत का सेवा निर्यात करीब 387.5 अरब डॉलर का रहा है।
भारत में बड़ी बहुराष्ट्रीय कंपनियों द्वारा ग्लोबल कैपेबिलिटी सेंटर्स (जीसीसी) की तेजी से नई स्थापनाओं के कारण भी सेवा निर्यात तेजी से बढ़ रहा है। हाल ही में नैसकॉम और जिनोव की ओर से जारी इंडिया जीसीसीए लैडस्केप रिपोर्ट के मुताबिक जीसीसी के लिए भारत दुनिया का सबसे बड़ा हब बनते हुए दिखाई दे रहा है। फिलहाल देश में 1700 जीसीसी हैं जिनसे 20 लाख से अधिक लोगों को रोजगार मिल रहा है। देश में जीसीसी का बाजार आकार 5.4 लाख करोड़ रुपए का है और यह 2030 तक 8.4 लाख करोड़ रुपए का होगा। दुनिया के 50 प्रतिशत जीसीसी सिर्फ भारत में हैं। भारतीय जीडीपी में भारत के जीसीसी का योगदान एक प्रतिशत है और 2030 तक यह 3.5 प्रतिशत हो जाएगा। ऐसे में भारत को सेवा निर्यात और तेजी से बढ़ाने की नई रणनीति के साथ आगे बढऩा होगा।

यह बात ध्यान में रखी जानी होगी कि अब सेवा निर्यात के क्षेत्र में भी लगातार प्रतिस्पर्धा बढ़ रही है। ऐसी स्थिति में भारत से डिजिटल सेवा निर्यात में तेजी से वृद्धि के लिए सेवाओं की गुणवत्ता, दक्षता, उत्कृष्टता तथा सुरक्षा को लेकर और अधिक प्रयास करना होंगे। नि:संदेह मई 2024 में दुनिया की चौथी बड़ी आर्थिकी बने भारत को आगामी ढाई से तीन साल में तीसरी बड़ी आर्थिकी बनाने के मद्देनजर सरकार के द्वारा अर्थव्यवस्था को मजबूती देने के लिए कुछ और बातों पर ध्यान दिया जाना होगा। अब टैरिफ संरक्षण की बजाय वैश्विक प्रतिस्पर्धा, अनुसंधान व विकास (आरएंडडी) पर भी ध्यान दिया जाना होगा। कृषि तथा श्रम सहित अन्य सुधारों के क्रियान्वयन पर ध्यान देना होगा।


भारत में आत्म निर्भरता की नीति और वोकल फॉर लोकल मंत्र को बढ़ाना होगा। इससे स्थानीय और घरेलू बाजार तेजी से आगे बढ़ेंगे। जीएसटी में सरलता, निवेश के लिए अधिक अनुकूल माहौल, कुशल बुनियादी संरचना, लॉजिस्टिक लागत में कमी, गतिशक्ति योजना का तेज क्रियान्वयन, व्यवसाय करने की प्रक्रिया की सरलता जैसे रणनीतिक कदमों से भारत की आर्थिकी की चमक बढ़ाई जा सकेगी। इन सबके साथ-साथ इसी वर्ष 2025 के अंत तक अमरीका और यूरोपीय संघ तथा अन्य प्रमुख देशों के साथ भारत के संभावित मुक्त व्यापार समझौतों के पूर्ण किए जाने पर पूरा ध्यान देना होगा। हम उम्मीद करें कि इन रणनीतिक प्रयासों से भारत वर्ष 2028 तक तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था के रूप में रेखांकित होते हुए दिखाई देगा।

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