देख कर आईने को...!


देख कर आईने को क्या बातें करें
बात आमने-सामने गर हो तो अच्छा।

चेहरा किसका है कैसा करें क्यूँ रूबरू
हो थोड़ी सी आदमीयत तो अच्छा।

 बादलों की ओट से चाँद ने कुछ कहा
 रात शबनम से सजी हो तो अच्छा‌।

 रात में रूह छू लेती है आवाज़ें तेरी
 ये ख्वाब सच में ढल जाए तो अच्छा।

 ख्वाहिशों की पोटली रख दिया तख्त पर
खुली आँखों से देखूँ ख्वाब तेरा तो अच्छा।

 हसरतों का हर बाज़ार पीछे छूटा
 दीद तुझ पर ठहर जाए तो अच्छा।
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- निशा भास्कर, नई दिल्ली।

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