बढ़ती गर्मी और जीवन-संकट
इलमा अज़ीम
इस बार बढ़ती गर्मी के पूराने सारे रेकॉर्ड तोड़ देने की चेतावनी दी जा रही हैं जो हमारे लिए चौंकाने से ज्यादा गंभीर चिंता की बात है। भारत में इस समय गर्मी एवं हीट वेव का प्रकोप बढ़ता जा रहा है, खासकर उत्तर भारत के अनेक राज्यों विशेषतः गुजरात, राजस्थान, दिल्ली, मध्यप्रदेश, महाराष्ट्र और ओडिशा में अप्रैल के प्रारंभ में ही बढ़ती गर्मी एवं हीट वेव लोगों को अपनी चपेट में लेने लगी, कई शहरों में पारा 44-45 डिग्री तक चढ़ गया है।
राजस्थान के बाडमेर में तापमान 46 डिग्री सेल्सियस के पार पहुंच गया है, जो चिन्ताजनक होने के साथ अनेक समस्याओं एवं परेशानियों का सबब है। लगातार बढ़ती गर्मी के आंकड़े एक बार फिर जलवायु परिवर्तन के परिणामों और इसकी वजह से खड़े हुए संकट को ही दर्शा रहे हैं। अधिक तापमान पानी की गंभीर कमी का कारण बन सकता है, कृषि को प्रभावित कर सकता है और विशेष रूप से घनी आबादी वाले क्षेत्रों में महत्वपूर्ण स्वास्थ्य जोखिम का कारण बन सकता है। भीषण गर्मी एवं लू का प्रकोप लोगों की सेहत, कार्य-क्षमता और उत्पादकता पर गंभीर खतरा है। पानी की कमी, बिजली कटौती और गर्म लू के कारण बीमारी के हालात गंभीर हो सकते हैं। इतनी तेज गर्मी में पेयजल की उपलब्धता, बिजली की आपूर्ति व ट्रिपिंग की समस्या से निजात पाना मुश्किल होगा। सवाल यह है कि इस भीषण लू या यों कहें कि हीटवेव के लिए बहुत कुछ हम, हमारी सुविधावादी जीवनशैली और हमारा विकास का नजरिया भी जिम्मेदार है।
आज शहरीकरण और विकास के नाम पर प्रकृति को विकृत करने में हमने कोई कमी नहीं छोड़ी है। पेड़ों की खासतौर से छायादार पेड़ों की अंधाधुंध कटाई एवं गांवों में हो या शहरों में आंख मींचकर कंक्रिट के जंगल खड़े करने की होड़ के दुष्परिणाम से ही गर्मी कहर बरपाती है और प्रकृति एवं पर्यावरण की विकरालता के रूप में सामने आती हैं। जल संग्रहण के परंपरागत स्रोतों को नष्ट करने में भी हमने कोई गुरेज नहीं किया।
अब विकास एवं सुविधाओं और प्रकृति के बीच सामंजस्य की और ध्यान देना होगा, अन्यथा आने वाले साल और अधिक चुनौती भरे होंगे। कंक्रिट के जंगलों से लेकर हमारे दैनिक उपयोग के अधिकांश साधन एवं विकास की भ्रामक सोच तापमान को बढ़ाने वाले ही हैं।
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