स्कूली शिक्षा की गिरावट
इलमा अज़ीम
स्कूली शिक्षा में बड़ी गिरावट बेहद चिंताजनक है। स्वयं केन्द्र सरकार द्वारा जो आंकड़े जारी किये गये हैं वे भारत की भयावह तस्वीर पेश कर रहे हैं- वर्तमान व भावी दोनों ही। कोई भी अंदाजा लगा सकता है कि ज्ञान के बिना कैसा भारत बनेगा। स्कूली शिक्षा ही उच्चतर शिक्षा, शोध और यहां तक कि अध्ययन के पश्चात देश को चलाने वाली पीढ़ी के स्तर को भी तय करती है।
अगर नयी पीढ़ी का शैक्षणिक स्तर खराब रहा तो, जैसा कि आंकड़े बतला रहे हैं, देश का एक स्याह व निराशाजनक भविष्य ही दिखता है। सरकार को चाहिये कि तमाम मतांतरों को एक तरफ रखकर शिक्षा के स्तर को बेहतर बनाने में जुट जाये। सभी तरह के पूर्वाग्रहों को छोड़कर हर बच्चे को स्कूली शिक्षा, वह भी गुणवत्तायुक्त दिलाना सरकार का पहला कर्तव्य होना चाहिये।
आधुनिक विश्व में शिक्षा का महत्व सभी जानते हैं। गुणवत्ताहीन शिक्षा के आधार पर कोई भी व्यक्ति, समाज या देश विकास की कल्पना भी नहीं कर सकता। जो भी देश आज अग्रणी, विकसित और सही मायनों में आधुनिक हैं, वे दरअसल अनिवार्य, सभी की सहज पहुंच वाली तथा गुणवत्तायुक्त शिक्षा व्यवस्था के कारण ही हैं। इसलिये आधुनिक भारत के निर्माताओं ने इस पर बहुत जोर दिया था।
युवा व छात्र वर्ग अब शिक्षा में कम राजनीतिक व धार्मिक व्यक्तियों तथा संगठनों के एजेंडों को पूरा करने में व्यस्त हैं। सियासी व धार्मिक जुलूसों एवं गतिविधियों में नयी पीढ़ी का पूरा समय और ऊर्जा खप रही है। शिक्षा की ओर से यह पीढ़ी स्वयं मुंह मोड़कर सियासतदानों को अवसर दे रही है कि शिक्षा विभाग के खर्चों को कम कर सके। बहरहाल अगर बुनियादी शिक्षा कमजोर होती है तो वह सरकार व राजनीतिक दलों के लिये तो लाभदायक है, पर समाज व देश के लिये घातक साबित होगी।
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