स्कूल शिक्षा को उत्कृष्ट कैसे बनाएं?

- डा. वरिंदर भाटिया
दूसरे देशों की बेहतर शिक्षा प्रणाली से सीखने के लिए हमारे देश में लगातार कोशिश की जा रही है। कुछ राज्य अपने स्कूल अध्यापकों को विदेशों में ट्रेनिंग के लिए भेज रहे हैं। वहीं आजकल हमारा पड़ोसी देश श्रीलंका अपनी स्कूल शिक्षा में बेहतर कारगुजारी के लिए पूरी दुनिया में चर्चा में आ रहा है। यहां तक कि अमरीका जैसा सुपर पावर देश भी स्कूल शिक्षा को लेकर श्रीलंका के प्रदर्शन को लेकर बौना साबित हो रहा है। स्कूली बच्चों की पढ़ाई के मामले में श्रीलंका ने हाल ही में बेहतर प्रदर्शन किया है।


भारत के साथ सांस्कृतिक सांझ रखने वाले श्रीलंका ने दिखा दिया है कि सही मेहनत और सही सोच हो, तो छोटा देश भी बड़े देशों से आगे निकल सकता है। यह खुलासा हाल ही में आई एक रिसर्च रिपोर्ट में हुआ है, जिसमें बताया गया है कि श्रीलंका को अमरीका से 0.7 नंबर ज्यादा मिले हैं, जो दिखाता है कि पढ़ाई के मामले में श्रीलंका ने छोटा-सा अंतर होने के बावजूद अमरीका जैसे महाबली को हरा दिया। श्रीलंका की पढ़ाई की व्यवस्था को इतना अच्छा बनाने के पीछे कई कारण हैं जो हमारे लिए भी सीखने का सबब हैं। सबसे बड़ा कारण यह है कि वहां की सरकार ने हर बच्चे को पढ़ाने को सबसे जरूरी काम माना है। गांवों में भी स्कूल बनाए गए हैं और वहां पढ़ाई की अच्छी सुविधाएं दी गई हैं। श्रीलंका में करीब 31 हजार स्कूल हैं, जो इतने छोटे देश के लिए बहुत बड़ी बात है। श्रीलंका में पढ़ाई तक पहुंच भी बहुत अच्छी है। वहां 98 प्रतिशत बच्चे प्राइमरी स्कूल में पढ़ते हैं और 85 फीसदी से ज्यादा बच्चे हाई स्कूल तक पढ़ाई करते हैं। इसका मतलब यह है कि वहां गरीब और अमीर सभी बच्चों को पढऩे का मौका मिलता है।


वहां की सरकार ने मुफ्त स्कूल और स्कॉलरशिप की सुविधा दी है, ताकि पैसों की कमी की वजह से कोई बच्चा पढ़ाई से वंचित न रहे। श्रीलंका में पढ़ाई की क्वालिटी भी बहुत अच्छी है। वहां टीचरों को अच्छी ट्रेनिंग दी जाती है, ताकि वे बच्चों को नए और आसान तरीकों से पढ़ा सकें। स्कूलों में बच्चों को किताबों के साथ-साथ प्रैक्टिकल नॉलेज भी दी जाती है, जैसे कि टेक्नोलॉजी और स्किल्स सिखाना। श्रीलंका में स्कूलों का सिलेबस भी समय के साथ अपडेट किया जाता है, ताकि बच्चे आज के समय की जरूरतों के हिसाब से पढ़ सकें। क्या हम यह सब अपडेट कर रहे हैं? श्रीलंका की पढ़ाई की एक खास बात यह है कि वहां बच्चों को सिर्फ किताबें रटने को नहीं कहा जाता। स्कूलों में खेल, कला और अच्छे संस्कार सिखाने पर भी ध्यान दिया जाता है। इससे बच्चे सिर्फ पढ़ाई में ही नहीं, बल्कि अपनी पर्सनैलिटी में भी बेहतर बनते हैं। कुछ देशों में पढ़ाई ज्यादा ग्लोबल होती है, लेकिन लोकल चीजों पर उतना ध्यान नहीं दिया जाता। ज्यादातर पढ़ाई पर ही जोर रहता है, लेकिन श्रीलंका में बच्चों को अच्छा इनसान बनाना भी जरूरी समझा जाता है। श्रीलंका ने अपनी पढ़ाई में पर्यावरण और अपनी संस्कृति को भी शामिल किया है। बच्चों को अपने आसपास की प्रकृति और अपनी परंपराओं के बारे में सिखाया जाता है, ताकि वे अपनी जड़ों से जुड़े रहें। श्रीलंका का यह तरीका बच्चों को जिम्मेदार और समझदार बनाता है। कुल मिलाकर श्रीलंका की स्कूल शिक्षा में कुछ ऐसे सारगर्भित गुण हैं जिनसे हम अपनी स्कूल शिक्षा को और अधिक प्रभावशाली और उत्कृष्ट बना सकते हैं।

इसी के साथ हमें अपने देश में शिक्षा को बेहतर बनाने के लिए अभी बहुत कुछ करना बाकी है। स्कूल न जाने वाले बच्चों के लिए आयु के अनुसार विशेष प्रशिक्षण और बड़े बच्चों के लिए आवासीय और गैर-आवासीय प्रशिक्षण, विशेष प्रशिक्षण केंद्र, आयु के अनुसार आवासीय और गैर-आवासीय प्रशिक्षण, एनआईओएस, एसआईओएस के माध्यम से शिक्षा पूरी करने के लिए स्कूल न जाने वाले बच्चों (16 से 19 वर्ष) को सहायता, समग्र प्रगति कार्ड, द्विभाषी शिक्षण सामग्री और पुस्तकें मुहैया कराना जरूरी है। राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों को उच्च माध्यमिक स्तर तक नए स्कूल खोलने, सुदृढ़ करने, स्कूल भवनों और अतिरिक्त कक्षाओं के निर्माण, वाइब्रेंट विलेज कार्यक्रम के तहत उत्तरी सीमावर्ती क्षेत्रों में स्कूल के बुनियादी ढांचे के विकास, कस्तूरबा गांधी बालिका विद्यालयों की स्थापना, उन्नयन और संचालन, नेताजी सुभाष चंद्र बोस आवासीय विद्यालयों की स्थापना, पीएम-जनमन के तहत पीवीटीजी के लिए छात्रावासों का निर्माण, एसटी आबादी के लिए धरती आबा जनजातीय ग्राम उत्कर्ष अभियान के तहत छात्रावासों का निर्माण और शिक्षक प्रशिक्षण को मजबूत करने के लिए कदम उठाए जाने होंगे। विशेष आवश्यकता वाले बच्चों के मामले में बच्चों की पहचान और मूल्यांकन के लिए वित्तीय सहायता, सहायक उपकरण, ब्रेल किट और किताबें, उपयुक्त शिक्षण सामग्री और विकलांग छात्राओं को मासिक वृत्ति आदि प्रदान की जानी चाहिए। इसमें स्कूलों में बाधामुक्त पहुंच के लिए रैंप, हैंडरेल के साथ रैंप और विकलांगों के अनुकूल शौचालय जैसे दिव्यांगों के अनुकूल बुनियादी ढांचे के निर्माण का भी प्रावधान किया जाना चाहिए। जिस देश और राज्य की स्कूल शिक्षा प्रणाली उच्च कोटि की होती है, वह देश बहुत तेज गति से विकास करता है। अत: प्रत्येक देश के विकास में उस देश की शिक्षा प्रणाली का बहुत बड़ा योगदान होता है। वर्तमान में हमारी स्कूल शिक्षा प्रणाली में कई कमियां हैं जिनमें सुधार करना बहुत जरूरी है।



यदि हमें तेज गति से आर्थिक विकास करना है तो हमें अपनी स्कूल शिक्षा व्यवस्था बेहतर स्तर की बनानी ही होगी। इसके लिए मिडल स्तर के ऊपर के स्कूल छात्रों को वास्तविक जीवन से परिचय करवाइए। उन्हें हवा-हवाई कथाएं न सुनाएं। उन्हें किसी भी तरह की आसमानी किताब न पढ़ाएं। उन्हें जीवन जीना सिखाएं। प्रैक्टिकल बनाएं, ताकि आने वाली पीढिय़ों में एक समझदार एवं सभ्य समाज का निर्माण हो सके। याद रहे कि सांस्कृतिक शिक्षा भी जरूरी है ताकि लोग नैतिक बनें। परंतु यह नैतिकता उनकी अपनी हो, उनके अंदर से आई हो। शिक्षा हमें अपने परिवार, समाज, रीति-रिवाजों, संस्कारों, मूल्यों, सांस्कृतिक पृष्ठभूमि व हमारे इतिहास आदि से परिचित करवाती है। शिक्षा हमें नैतिकता सिखा कर, हमारे कत्र्तव्यों के बारे में बताकर समाज का एक जिम्मेदार नागरिक बनाने में हमारी मदद करती है। यह सच है कि शिक्षा ऐसी होनी चाहिए जिसे प्राप्त करके इनसान अपने पैरों पर खड़ा हो सके और अपने परिवार का भरण-पोषण कर सके, लेकिन संपूर्ण शिक्षा का मूल उद्देश्य इनसान को एक चरित्रवान और जिम्मेदार नागरिक बनाना होता है। इन गुणों को विकसित करने की शुरुआत स्कूल की उत्कृष्ट शिक्षा से ही होगी। इन प्रयासों में देरी नहीं होनी चाहिए। उत्कृष्ट स्कूल शिक्षा से ही विकास संभव है।

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