मानसिक विकार और खुदकुशी
इलमा अज़ीम
वर्तमान में जहां एक ओर मानव जीवन विलासितापूर्ण है, वहीं मनुष्य कई प्रकार के मानसिक विकारों का शिकार है अथवा ग्रसित है। विश्वभर के शोधार्थी एवं मनोवैज्ञानिक मानसिक विकारों के पीछे जेनेटिक्स कारक, पर्यावरणीय कारक जैसे तनाव, आघात एवं सामाजिक दबाव, न्यूरोकेमिकल असंतुलन, व्यक्तिगत अनुभव व स्वास्थ्य समस्याओं को मानते हैं। परंतु वास्तव में सामाजिक दबाव एवं सामाजिक अलगाव मानसिक विकारों को खुदकुशी की तरफ धकेलते हैं।
मानसिक विकार विभिन्न प्रकार के होते हैं। यद्यपि ये विकार व्यक्ति की आयु, लिंग एवं जीवन शैली के अनुसार पृथक-पृथक हो सकते हैं। चिंता विकार मुख्य सामान्य मानसिक विकार है तथा इसे मानसिक विकारों की जननी कहना भी उपयुक्त होगा। किसी ने कहा है कि ‘चिंता, चिता का कारण है।’ चिंता किसे नहीं होती, शायद ही ऐसा कोई व्यक्ति होता होगा जिसको चिंता न होती हो, लेकिन चिंता को अपने ऊपर हावी होने देना मानसिक विकार को उत्पन्न करता है। फलत: खुदकुशी का कारण बनती है।
विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार आज विश्व की लगभग 35 करोड़ जनसंख्या चिंता विकार की शिकार है। वहीं अवसाद जिसे डिप्रेशन कहते हैं, भी मानसिक विकार व रोग है जिसमें व्यक्ति को उदासी, निराशा व जीवन के प्रति रुचि की कमी महसूस होती है। अत: व्यक्ति का अपने प्रति यह उदासीन रवैया कभी-कभार खुदकुशी का कारण बनता है। द्विध्रुवी विकार भी एक मानसिक विकार है जिसमें व्यक्ति को अवसाद और उत्तेजना के बीच में बदलाव का अनुभव होता है। वहीं स्किजोफ्रेनिया मानसिक विकार में व्यक्ति को वास्तविकता की धारणा में गड़बड़ी का अनुभव होता है तथा उसी उधेड़बुन में व्यक्ति डूबा रहता है।
इसके कारण समाज में लोग ऐसे व्यक्ति को पृथक समझने लगते हैं तथा पृथकीकरण से अवसाद (डिप्रेशन) की स्थिति पैदा होती है। डिप्रेशन के परिणाम समय के साथ-साथ भयानक होते हैं, यदि समय रहते इसका उपचार न किया जाए। यही नही अटेंशन डेफिसिट हाइपरएक्टिविटी डिसऑर्डर से न जाने कितने व्यक्ति प्रभावित होंगे। इसके अतिरिक्त ओब्सेसिव-कंपल्सिव डिसऑर्डर, ईटिंग डिसऑर्डर, पर्सनैलिटी डिसऑर्डर, स्लीप डिसऑर्डर जैसे न जाने कितने विकारों से ग्रसित आज का मनुष्य है।
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