प्रगति के पैमानों की अवधारणाएं

- संजीव ठाकुर
किसी भी देश के विकास तथा प्रगति के अलग-अलग मापदंड एवं अवधारणाएं हैं l भारत 1947 को स्वतंत्रता के बाद से ही पंचवर्षीय योजनाओं के लागू होने के साथ-साथ विज्ञान टेक्नोलॉजी उद्योग और आर्थिक योजनाओं के विकास के साथ-साथ कृषि के विकास पर भी ज्यादा से ज्यादा ध्यान देता आया है। परिणामस्वरूप आज 76 वर्ष के बाद भारत एक विकसित राष्ट्र बनने की दौड़ में शामिल हो चुका है। अब भारत के सामने पर्यावरण बचाने, कृषि तथा उद्योगों को बचाने के लिए नई-नई समस्याएं सामने आ रही हैं. अब भारत के सामने विकास के लिए डिजिटल भारत चाहिए या पर्यावरण बचाने के लिए ग्रीन भारत, इस पर भारत में वैज्ञानिकों,चिंतकों और राजनीतिज्ञों के मध्य गहन विचार विमर्श चल रहा है पर भारत के उदारवादी दृष्टिकोण और निजीकरण के युग में विकास की अवधारणा के बारे में जब भी चर्चा होती है तब स्वाभाविक तौर पर विकास के विभिन्न आयामों पर भी विस्तृत परिचर्चा का पदार्पण होता है।
विकास प्राप्ति है या साधन है और विकास की संपूर्ण अवधारणा क्या है इस पर एक स्वस्थ बहस की आवश्यकता हैl निसंदेह विकास परिवर्तन की सामाजिक आर्थिक सांस्कृतिक बदली हुई परिणति ही है, परिवर्तन अथवा विकास के सामने समतामूलक न्याय पूर्ण तथा संपूर्ण समावेशी प्रयासों को मजबूत करने की बात कही गई है और भारत सरकार ने इस पर अपनी आस्था व्यक्त की है , इसी विचार के साथ भारत ने पर्यावरण संरक्षण की मुहिम को मजबूती देने का प्रयास किया है भारत को हरित भारत के लक्ष्य को स्वीकार भी किया है। विभिन्न जीव जंतुओं को बचाना तथा वन के परीक्षेत्र को 33% लक्ष्य प्राप्त करने की दिशा में हर संभव प्रयास किए जाने के लिए योजनाएं बनाई जा रही है ।वही दूसरी तरफ मरुस्थल बनने से धरा को रोकने के प्रयास और जैव विविधता को सुरक्षित रखने का लक्ष्य की भारत में प्रगति कर रहा हैl जलवायु परिवर्तन से भारत को जितना नुकसान हो रहा है इतना किसी भी अन्य देश को नहीं हो रहा है। इसी कार्यक्रम में प्राकृतिक संसाधनों के वितरण प्रकार और गुणवत्ता को जलवायु परिवर्तन से बचाने का प्रयास भी शामिल है ।भारत में इसी संदर्भ में ग्रीन इंडिया जैसी अवधारणा को आत्मसात किया है ग्रीन इंडिया तथा परिस्थितिकी सुधार को संरक्षण दिया है उसमें केंद्र व राज्य सरकारों ने मिलकर एक दशक के लिए लगभग 40, हजार करोड़ रुपए के खर्च होने का अनुमान भी दर्शाया है।


सरल शब्दों में ग्रीन इंडिया मिशन को जलवायु परिवर्तन की अनुकूलता को अंदर से देखा जाए उसमें कारबन में कटौती तथा परिस्थिति तंत्रों में मजबूती लाने का प्रयास किया जाएगा ,इसके अंतर्गत बंजर वाली भूमि पर 50 लाख हेक्टेयर पर पेड़ लगाना और 50 लाख हेक्टेयर जमीन पर बढ़ते हुए वनों का संरक्षण भी शामिल है। जिसके फलस्वरूप 30 लाख परिवारों को रोजगार मुहैया कराना साथ ही 50 से 60 लाख तन तक कार्बन डाइऑक्साइड में कमी लाने का लक्ष्य तय किया गया। इस तरह ग्रीन इंडिया में भारी भरकम बजट खर्च करने की परियोजना तैयार की गई है ।निश्चित तौर पर जलवायु परिवर्तन में होने वाले नुकसान को इस योजना से रोका जा सकता है। वहीं दूसरी ओर यदि डिजिटल इंडिया की बात करें तो ज्ञान के आधारित अर्थव्यवस्था मैं सुधार डिजिटल पद्धति से ही लाया जा सकता है। भारत देश जैसे विकासशील अर्थव्यवस्था के लिए डिजिटलीकरण अत्यंत आवश्यक भी दिखाई देता है। डिजिटल विकास के पास भारत देश में दीमक की तरह फैले हुए भ्रष्टाचार को भी रोका जा सकता है। बिचौलियों की उपस्थिति को भी चुनौती दी जा सकती है वैसे डिजिटल इंडिया प्रशासन सब प्रशासन को काफी मददगार साबित होने वाला है।


सरकारी कार्यालयों में समस्त कार्य प्रणाली पेपर रहित हो गए है डिजिटल टेक्नोलॉजी के साथ कार्य किए जाए तो समय के साथ अर्थव्यवस्था में बेहतरी लाई जा सकती है। भारत सरकार ने अनेक विकास के पैमानों को ध्यान में रखते हुए और अनेक विसंगतियों को दूर करने के इरादे से डिजिटल मिशन के तहत ई गवर्नेंस ब्रॉडबैंड हाईवे, नेशनल स्कॉलरशिप पोर्टल, हॉस्पिटल एप स्वच्छ भारत मोबाइल ऐप, डिजिटल लॉकर जैसी सुविधाएं शुरू कर चुका है। आज सारी कार्य करा लिया मोबाइल ऐप तथा कंप्यूटर इंटरनेट से पूरी की जा रही है वहीं दूसरी तरफ उल्लेखनीय है कि अंतरराष्ट्रीय समुदाय अपनी कार्यसूची में पर्यावरण संरक्षण को सर्वोच्च प्राथमिकता दे रहा है और यह अंतरराष्ट्रीय पर्यावरण सम्मेलनों में भी साबित हो चुका है जिसमें विश्व के शीर्ष नेतृत्व करने वाले देश पर्यावरण की समस्याओं के समाधान के संदर्भ में सकारात्मक प्रयासों की तरफ अग्रसर हैं। स्वच्छ वातावरण और पर्यावरण मनुष्य की मूल आवश्यकता है क्योंकि मनुष्य बिना हवा, स्वच्छ पानी या स्वच्छ पर्यावरण के जिंदा नहीं रह सकता है। ऐसे में विकास के ग्रीन इंडिया तथा डिजिटल इंडिया के दोनों पैमानों पर सतत विकास कर भारत को आगे बढ़ना होगा।

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