महाकुंभ पर उमड़ी आस्था और दुश्वारियां
- प्रो. एनएल मिश्र
प्रयागराज महाकुंभ की अपनी एक अलग छटा और महत्ता है। इस महाकुंभ का पुण्य हर कोई लेना चाहता था और अधिकाधिक लोगों ने लिया भी। प्रयागराज की त्रिवेणी और संगम स्थली का कहना ही क्या जहां स्वयं मोक्षदायिनी मां गंगा विराजमान हैं,कल कल करती यमुना और लुप्त सरस्वती तीनों नदियों का संगम है।तीर्थों में महातीर्थ के रूप में प्रयागराज माना जाता है।पंडित लोगों की मान्यता के हिसाब से इस वर्ष का महाकुंभ एक सौ चौवालीस वर्ष के बाद आया था।इस वर्ष के महाकुंभ का नजारा वास्तव में अद्भुत था। ठहरे हुए हिंदुत्व को देशवासियों ने एक नया आकार दिया। हर हिन्दू धर्म के इस पुरुषार्थ को प्राप्त कर लेना चाहता था।उमड़ती घुमड़ती आस्था अपने चरम बिंदु पर पहुंच रही थी।
      देश में यातायात के साधनों में बेतहाशा वृद्धि विगत दो तीन दशकों में देखने को मिली है।लोग ट्रेन और बस की यात्रा के लिए मजबूर नहीं थे। मैं तो चित्रकूट में चार पहिया वाहनों की भीड़ देखकर हैरान था। इतनी भीड़ और इतना जाम मैने तीस चालीस वर्षों में चित्रकूट में नहीं देखा था।यह भीड़ प्रयागराज को जा रही थी और यह एक दो दिन के लिए नहीं अपितु मकर संक्रांति से लगातार महाशिवरात्रि तक चलती रही। गाड़ियों का रेला, हुजूम जो तमिलनाडु, केरला, कर्नाटक, आंध्र प्रदेश, गुजरात, महाराष्ट्र, राजस्थान और मध्य प्रदेश से आता था।स्थानीय निवासियों और पुलिस के बीच भिड़ंत आम बात थी।पुलिस अपनी ड्यूटी में परेशान तो स्थानीय जनता अपनी रोजमर्रा की आवश्यकताओं की प्रतिपूर्ति की जद्दोजहद में परेशान था।


    अजीब सा उन्माद लोगो के अंदर देखने को मिला।और हो भी क्यों नहीं जो महाकुंभ को एक सौ चौवालीस साल बाद आया बताया गया।नदियों में स्नान धर्म की प्रतिपूर्ति का एक साधन है।वृक्ष पूजा,अग्नि पूजा,जीव पूजा और न जाने कौन कौन सी पूजा हिंदुओं को मोक्ष प्रदान करते हैं।ऊपर से अमृत स्नान कहां मिलता है जो महाकुंभ के दौरान मिला।अपने सभी तरह के पापों जो जाने अनजाने में हुए थे लोग अमृत स्नान से धुल लेना चाहते थे।इस महाकुंभ के स्नान पर कुछ विशेष कहना ठीक नहीं क्योंकि यह आस्था का प्रश्न है आस्था का विषय है जहां सारे तर्क और कुतर्क अपने को बौना पाते हैं।महामहिम राष्ट्रपति , मा प्रधानमंत्री से लेकर सभी माननीयों ने इस महाकुंभ का अमृतपान किया।गांव के घूरहू हों या जिलों के जिलाधीश हों जो पहुंच सकते थे पहुंचे।
      शासन और प्रशासन ने आश्वस्त किया था कि प्रयागराज इस महाकुंभ के लिए सभी तरह के इंतजामात कर लिए हैं पर मै स्वयं इस महाकुंभ का साक्षी हूं ।मैने भी आस्था की डुबकी बाईस जनवरी को लगाई।मै कैसे संगम तक पहुंचा यह एक अलग विवेच्य विषय है पर इतना जरूर कहूंगा कि अत्यंत कठिनाइयों को मैने पार किया।शायद ऋषि और मुनि लोग साधना में इतना कष्ट नहीं पाते होंगे जितना मुझे संगम तक जाने में मिला।मंत्री जी स्नान करने के लिए आ रहे हैं तो सारे रस्ते बंद।बताया जाता था रूट डायवर्ट है आप पच्चीस किलोमीटर घूम कर जाइए।रोज कोई न कोई मंत्री जी को आना ही था आस्था की डुबकी उनको भी लगानी थी।


       साधु ,सन्यासी,अखाड़ों के संत महंत,मठाधीश ,धर्म संसद और सनातन बोर्ड सभी ने अपना स्थान सुरक्षित करा लिया था।उस पर से शासन और प्रशासन ने विभिन्न मीडिया चैनलों से लोगों को इकठ्ठा करने के लिए इतना प्रचार प्रसार किया जैसे धर्म का अलख जग रहा हो।क्या महाकुंभ के स्नान के लिए हिंदुओं को जगाना पड़ता है नहीं यह तो उनके लिए एक आवश्यक अंग है जो बिना जगाए चारों धाम निरंतर जाते रहते हैं।गंगा सागर से लेकर रामेश्वरम मथुरा से लेकर अयोध्या और काशी से लेकर उज्जैन तमाम धार्मिक स्थलों पर दर्शन करने निरंतर जाते रहते हैं।
      निष्पक्ष रूप से कहा जाय तो जितना बड़ा आमंत्रण दिया गया था उसके लिए प्रयागराज महाकुंभ का प्रबंधन योजनाबद्ध रूप से नहीं किया गया था।या तो विश्वास न रहा हो कि इतनी बड़ी संख्या में श्रद्धालु टूट पड़ेंगे या अपनी व्यवस्था पर प्रशासन को भरोसा था।कही न कही प्लानिंग में चूक जरूर हुई।जितनी संख्या में गाड़ियों का रेला चला है उससे प्रयागराज के पचास किलोमीटर की परिधि बेतहाशा प्रभावित हुई है।सभी सड़के जाम,भूखे प्यासे बच्चे खेतों में खड़े थे। न खाने की व्यवस्था, न बैठने की व्यवस्था चारों तरफ लोग बिलबिला रहे थे।कायदे से प्रशासन को यह व्यवस्था देनी चाहिए थी कि प्रयागराज से बीस किलोमीटर पहले ही विभिन्न दिशाओं से आ रही गाड़ियों को रोक कर पार्किंग की व्यवस्था देनी चाहिए थी और वहां से बसों और ट्रेनों के माध्यम से श्रद्धालुओं को उठाना चाहिए था जिससे संगम तक लोगो की पहुंच हो जाती।पर ऐसा था नहीं लोगों ने जो अव्यवस्थाएं झेली वह अकथनीय अवर्णनीय है।जितनी मौतें भीड़ के कारण हुईं उससे अधिक मौतें विभिन्न दिशाओं से आ रहे वाहनों के एक्सीडेंट से हुईं हैं।कितने परिवार उजड़ गए।
      इस महाकुंभ के आयोजन से सरकारों को सबक लेनेकी जरूरत है कि सोया हुआ हिंदुत्व नए कलेवर में आ रहा है।इसलिए ऐसे आयोजनों के लिए एक वर्ष पूर्व से सभी प्रकार के विकल्पों पर योजनाबद्ध तरीके से चिंतन होना चाहिए ताकि इस महाकुंभ में जो परेशानियां आम जनता ने उठाई हैं वह भविष्य में न हों।


      धन्य हैं प्रयागराजवासी जो अपने घरों में लंबे समय तक कैद रहे।खाद्य सामग्री,पेय जल, दवा की अव्यवस्था ,मरीजों का इलाज ,बच्चों और वृद्धों की समस्याएं सब कुछ ठहर सा गया था।उन्होंने जो समस्याएं इस बीच सही हैं उसका वर्णन करना मुश्किल है।हम लोग चित्रकूट में दीपावली के समय एक सप्ताह जो परेशानी झेलते हैं उसको देखते हुए प्रयागराज के लोगो के धैर्य की भूरि भूरि प्रशंसा और उनके प्रति कृतज्ञता प्रकट करनी चाहिए।कितने लोग दवा और उपचार के अभाव में काल कवलित हो गए।प्रशासन से यही मांग है कि ऐसे अवसरों पर स्थानीय निवासियों के लिए एक रास्ता सुरक्षित होना चाहिए जिस पर कोई वाहन इत्यादि न चले।आपातकाल में उसका उपयोग स्थानीय निवासी कर सकें अन्यथा दीपक तले अंधेरा तो सभी जानते ही हैं।
(महात्मा गांधी चित्रकूट ग्रामोदय विवि चित्रकूट)

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