भारत-अमरीका आर्थिक संबंधों का सच

- डा. जयंतीलाल भंडारी
27 जनवरी को भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अमरीकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प से फोन पर बात करके राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प को उनके ऐतिहासिक दूसरे कार्यकाल के लिए बधाई देते हुए भारत-अमरीका के बीच व्यापार, प्रौद्योगिकी, निवेश, ऊर्जा और रक्षा के क्षेत्र में व्यापक द्विपक्षीय साझेदारी को आगे बढ़ाने के उपायों पर सार्थक चर्चा की। इस चर्चा के बाद भारत-अमरीका के बीच आर्थिक संबंधों का नया परिदृश्य उभरकर दिखाई दे रहा है। यह भी बात महत्वपूर्ण है कि जहां फरवरी 2025 में प्रधानमंत्री मोदी के अमरीका जाने की संभावना है, वहीं क्वाड के शिखर सम्मेलन में इसी वर्ष 2025 में राष्ट्रपति ट्रंप के भारत आने की संभावनाएं हैं और इससे अमरीका के साथ भारत के कारोबारी संबंध भी और व्यापक होंगे।


गौरतलब है कि 20 जनवरी को डोनाल्ड ट्रंप ने अमरीका के 47वें राष्ट्रपति के रूप में शपथ लेने के बाद अपने पहले संबोधन में कहा कि अब अमरीका का स्वर्णिम दौर शुरू हो रहा है। अमरीका फिर से अमीर देश बनेगा। अमरीका फिर से मैन्युफैक्चरिंग हब बनेगा और अमरीकी नागरिकों को समृद्ध बनाने के लिए दूसरे देशों के उत्पादों पर टैक्स और टैरिफ बढ़ाए जाएंगे। ट्रंप के नए कार्यकाल में उनकी नई आर्थिक रणनीति उभर कर दिखाई दे रही है। गौरतलब है कि शपथ ग्रहण करने के बाद ट्रंप ने नए आर्थिक फैसले लेते हुए कहा कि यदि ग्लोबल ट्रेड में ब्रिक्स देशों के द्वारा डॉलर का इस्तेमाल घटाया जाएगा तो ब्रिक्स देशों पर 100 फीसदी ट्रैरिफ लगाया जाएगा। ट्रंप ने ऐसा कुछ नहीं कहा जिससे भारतीय अर्थव्यवस्था पर कोई प्रतिकूल प्रभाव पड़े।


ट्रंप इस बार दोगुने आर्थिक ताकतवर राष्ट्रपति दिखाई दे रहे हैं। यह स्पष्ट दिखाई दे रहा है कि ट्रंप ने पहले भी उनके संबोधनों में स्पष्ट संकेत दिया है कि उनकी नई आर्थिक रणनीति में जहां समृद्ध अमरीका के सपने को साकार करने के लिए आयात शुल्कों को बढ़ाना शामिल है, वहीं बदलती हुई दुनिया में उथल-पुथल मचाते हुए अमरीका को चुनौती दे रहे चीन के आर्थिक दबदबे को कारोबारी प्रतिबंधों व ऊंचे शुल्कों से नियंत्रित करना भी शामिल है। ट्रंप ने सबसे पहले चीन, कनाडा, मैक्सिको सहित उन शीर्ष पांच-छह देशों पर ऊंचे आयात शुल्क लगाने का संकेत दिया है, जिनके साथ अमरीका का व्यापार घाटा सबसे अधिक है। इन देशों पर कड़े आर्थिक फैसले भारत के लिए फायदेमंद होंगे। चूंकि ट्रंप ने भारत को भी कुछ उत्पादों के लिए अधिक आयात शुल्क वाला देश कहा है, ऐसे में भारत के द्वारा अमरीका के व्यापक हित में कुछ उत्पादों से शुल्क घटाए जाने से भारत को अमरीका में निर्यात के अधिक मौके प्राप्त होंगे। भारत में अमरीकी राजदूत एरिक गारसेटी ने कहा है कि ट्रंप के आगमन से भारत और अमरीका के आर्थिक रिश्ते और अधिक मजबूत होंगे। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने ट्रंप को शपथ ग्रहण करने के बाद बधाई देते हुए एक-दूसरे के हित में मिलकर काम करने का संदेश दिया है।


ऐसे में ट्रंप की आर्थिक चुनौतियों के बीच भी भारत के लिए आर्थिक मौके उभर कर दिखाई दे रहे हैं। खास तौर पर ट्रंप ने भारतीयों को बड़ी राहत का ऐलान करते हुए कहा कि एच-1बी वीजा बंद नहीं होगा, क्योंकि इस समय अमरीका को अच्छे प्रोफेशनल्स की जरूरत है। नि:संदेह ट्रंप ने अपने दूसरे कार्यकाल में वैश्वीकरण की जगह ‘मेरा अमरीका प्रथम’ की धारणा को उच्च प्राथमिकता देते हुए परस्पर निर्भर अर्थव्यवस्थाओं की जगह अमरीका की आत्मनिर्भरता और आर्थिक मजबूती की ओर बढऩे का संकेत दिया है। इसका एक बड़ा कारण यह भी है कि द्वितीय विश्वयुद्ध के बाद विश्व स्तर पर जो आर्थिक-कारोबारी नियम, समझौते और सहकारी एजेंडे बनाए गए थे, वे सब इस समय ध्वस्त होते हुए दिखाई दे रहे हैं।


खास तौर से चीन ने स्वीकार्य वैश्विक कारोबारी नियमों का पालन नहीं किया है। चीन ने न केवल रणनीतिक रूप से पश्चिम का औद्योगीकरण समाप्त करने का काम किया है, बल्कि उसने पश्चिम की कई नई तकनीकें भी चुराई हैं। इनके दम पर चीन का दबदबा बढ़ता ही जा रहा है। 2024 में अमरीका का सबसे ज्यादा व्यापार घाटा चीन से रहा है। स्थिति यह है कि वर्ष 2030 तक चीन का विनिर्माण क्षेत्र समूचे पश्चिम के विनिर्माण क्षेत्र की तुलना में अधिक हो जाने का अनुमान है। इस परिप्रेक्ष्य में यह भी उल्लेखनीय है कि पिछले माह दिसंबर 2024 में चीन की सालाना सेंट्रल इकानॉमिक वर्क कॉन्फ्रेंस (सीईडब्ल्यूसी) में ट्रंप के राष्ट्रपति बनने की चुनौती से निर्मित कुछ उल्लेखनीय बिंदुओं पर चर्चा करते हुए अमरीका से मुकाबले की नई आर्थिक रणनीति बनाई गई। इसके तहत चीन में मांग में ठहराव, बिगड़ती बाहरी आर्थिक चुनौतियों और चीनी अर्थव्यवस्था में लगातार गिरावट की बात स्वीकार करते हुए अधिक बड़े आर्थिक प्रोत्साहन का रास्ता चुना गया है। ‘उदार मौद्रिक नीति’ पर रजामंदी बन गई है।
यहां यह उल्लेखनीय है कि ट्रंप के नए कार्यकाल के मद्देनजर अंतरराष्ट्रीय रेटिंग एजेंसियों ने अनुमान जताया है कि अमरीका के नए राष्ट्रपति ट्रंप से चीन को भारी नुकसान हो सकता है और भारत समेत आसियान देशों को फायदा होगा। वैश्विक अर्थविशेषज्ञों का यह भी मत है कि भारत और अमरीका के बीच लगातार बढ़ता हुआ व्यापार ट्रंप के नए कार्यकाल में और बढऩा संभावित है। वित्त वर्ष 2023-24 में करीब 120 अरब डॉलर मूल्य की वस्तुओं का द्विपक्षीय व्यापार हुआ था। 

वर्ष 2024 में जनवरी से जून 2024 के बीच अमरीका भारत का सबसे बड़ा व्यापारिक भागीदार बनने के साथ-साथ भारत के लिए अमरीका निर्यात के लिए सबसे बड़े बाजार सबसे प्रमुख निर्यात के रूप में रेखांकित हो रहा है। पिछले वर्ष भी अमरीका के साथ व्यापार संतुलन भारत के पक्ष में रहा है और यह अधिशेष 35.3 अरब डॉलर स्तर पर है। विकासशील देशों की अनुसंधान एवं सूचना प्रणाली (आरआईएस) सहित अन्य नई अध्ययन रिपोर्टों में कहा जा रहा है कि ट्रंप के नए कार्यकाल में भारत के लिए चुनौतियों के बीच मौके दिखाई दे रहे हैं।


ट्रंप के पहले शासनकाल में भारत चीन के खिलाफ सख्ती का फायदा नहीं उठा सका था। ऐसे में ट्रंप द्वारा अमरीकी प्रशासन की बागडोर संभालने के बाद भारत को ऐसी बहुआयामी रणनीति पर आगे बढऩा होगा, जिससे एक ओर अमरीका में निर्यात बढ़ सके, वहीं दूसरी ओर वैश्विक निर्यात में भी तेज बढ़त मिल सके। हम उम्मीद करें कि अब जब डोनॉल्ड ट्रंप ने अपने नए कार्यकाल में अमरीका को नए सिरे से गढऩे के लिए चीन, कनाडा व मैक्सिको पर अधिकतम शुल्क लगाने के साथ-साथ भारत के भी कुछ उत्पादों पर शुल्क बढ़ाने का संकेत दिया है, तब भारत के द्वारा अमरीका के व्यापक हित वाले उत्पादों पर शुल्क में उपयुक्त कमी की रणनीति के साथ आगे बढऩा लाभप्रद होगा। ऐसे में अमरीका को अधिक निर्यात बढ़ाने और चीन प्लस वन के मद्देनजर वैश्विक स्तर पर अधिक निर्यात के मौके भारत की मुठ्ठी में आते हुए दिखाई दे सकेंगे। हम उम्मीद करें कि ट्रंप के द्वारा जो नई आर्थिक इबारत लिखी जाएगी, उससे भारत-अमरीका के आर्थिक रिश्तों का नया दौर आगे बढ़ेगा और अमरीका के साथ मजबूत आर्थिक रिश्ते भारत को 2047 तक विकसित देश बनाने के लक्ष्य को पूरा करने में भी मददगार साबित होंगे। नए अवसरों का दोहन करना होगा।


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