प्राचार्य के निलंबन में कुलपति की पूर्व अनुमति आवश्यक नहीं: उ प्र प्रबंध समिति फोरम
विश्वविद्यालय अधिनियम 1973 की धारा 35(4) की हो रक्षा: विवेक गर्ग
मेरठ। अनुदानित प्रबंध समिति फोरम, उत्तर प्रदेश ने अनुदानित प्राचार्य एसोसियेशन द्वारा की गई इस मांग पर कड़ी आपत्ति प्रस्तुत की है, जिसके तहत प्राचार्य एसोसियेशन द्वारा यह मांग की गई थी कि प्रबंध समिति द्वारा किसी प्राचार्य को जांच लंबित रहने तक निलंबित करने से पहले कुलपति से पूर्व अनुमोदन की आवश्यकता होनी चाहिए। इस संबंध में मेरठ में उत्तर प्रदेश के उच्च शिक्षा के लिए सहायता प्राप्त महाविद्यालयों के फोरम की एक बैठक इसके अध्यक्ष विवेक कुमार गर्ग की अध्यक्षता में बुलाई गई।
इस बैठक में फोरम के सचिव अमित राय जैन जो कि बड़ोत के जैन स्थानकवासी गर्ल्स कॉलेज के सेक्रेटरी है उन्होंने भी अपने विचार रखे। इस फोरम की कार्यकारी समिति की इस सभा में सर्व सम्मति से निर्णय लिया गया कि फोरम उत्तर प्रदेश सरकार से आग्रह करता है कि वह उत्तर प्रदेश राज्य विश्वविद्यालय अधिनियम 1973 में उल्लेखित प्रबंध समिति के वैधानिक अधिकारों की रक्षा करे और ऐसी किसी भी कार्रवाई को रोके जो इन प्रबंध तंत्रों के मौलिक अधिकारों का हनन कर सकती हो।
अध्यक्षययी संबोधन में विवेक कुमार गर्ग ने कहा कि विश्वविद्यालय अधिनियम की धारा 2 (13) के अनुसार प्रबंध समिति को कॉलेज के मामलों का प्रबंधन और नियंत्रण करने की वैधानिक जिम्मेदारी सौंपी गई है, जिसमें कदाचार के आरोपी की जांच लंबित रहने तक प्राचार्य को निलंबित करने का अधिकार भी शामिल है। उन्होंने कहा कि निलंबन कोई दंडात्मक उपाय नहीं है बल्कि निष्पक्ष जांच को सुविधाजनक बनाने के लिए एक उचित कदम है और यह प्रावधान जांच प्रक्रिया की अखंडता सुनिश्चित करने और जांच को प्रभावित करने वाले अनुचित हस्तक्षेप को रोकने के लिए आवश्यक उपाय है।
उल्लेखनीय है कि उड़ीसा राज्य एवं विमल कुमार मोहंती कैसे में 1994 में भीसर्वोच्च न्यायालय ने यह माना था कि जांच लंबित रहने तक निलंबन एक सजा नहीं है, बल्कि यह एक सुरक्षा उपाय है, जिससे निष्पक्ष जांच संभव की जा सके। यदि कोई प्रिंसिपल गंभीर आरोपों का सामना करते हुए भी पद पर बना रहता है तो यह एक ऐसा दवाब पूर्ण माहौल बना सकता है, जो कर्मचारी और गवाहों को सबूत या गवाही के साथ आगे आने से हतोत्साहित करता है, जिससे जांच की निष्पक्षता कमजोर हो जाती है। फोरम में एक स्वर से इस बात पर सहमति बनी कि संस्थान के कानूनी संरक्षक के रूप में प्रबंधन समिति को जांच लंबित रहने तक निलंबन सहित आवश्यक अनुशासनात्मक कार्रवाई करने का अधिकार हो। अनावश्यक आवश्यकताओं को लागू करना जैसे कि पूर्व कुलपति अनुमोदन केवल प्रक्रिया में देरी करेगा और जांच के तहत व्यक्तियों को प्रभावशाली पदों पर बने रहने की अनुमति देगा जिससे जांच की अखंडता से समझौता हो सकता है। इन विचारों के आलोक में फोरम ने उच्च शिक्षा निदेशक, उत्तर प्रदेश से भी अनुरोध किया कि उच्च शिक्षा निदेशालय कुलपतियों को प्रबंधन समिति के वैधानिक अधिकारों का सम्मान करने तथा प्रत्येक मामले के गुण दोष के आधार पर अनुशासनात्मक कार्रवाई करने के प्रबंध तंत्र के अधिकारों का अतिक्रमण करने या उन्हें रोकने से बचाने के लिए स्पष्ट निर्देश जारी करें। फोरम ने उपरोक्त सभी मांगे उत्तर प्रदेश के उच्च शिक्षा मंत्री योगेंद्र उपाध्याय एवं उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री श्री योगी आदित्यनाथ को भी प्रेषित की है।
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