‘व्ह्रेन लिस्टेड’ की श्रेणी लागू होने से बढ़ेगी पारदर्शिता
इलमा अजीम
भारतीय प्रतिभूति एवं विनिमय बोर्ड (सेबी) शेयर बाजारों से अपने प्लेटफॉर्म पर ‘व्ह्रेन लिस्टेड’ की श्रेणी लागू करने को कहने पर विचार कर रहा है, जहां प्रारंभिक सार्वजनिक पेशकश यानी आईपीओ आवंटन और सूचीबद्धता के बीच तीन दिन तक कारोबार किया जा सकता है। ऐसा इसलिए किया जा रहा है ताकि ऐसे शेयरों के ग्रे मार्केट कारोबार पर अंकुश लग सके। शेयर के सूचीबद्ध होने से पहले ही सेबी और विनियमित बाजारों के दायरे से बाहर उसकी खरीद-फरोख्त को ग्रे मार्केट कारोबार कहते हैं।
इस अंतराल में भी बड़े पैमाने पर सटोरिया गतिविधियां होती हैं। सेबी की चेयरपर्सन माधवी पुरी बुच ने कहा कि ‘व्हेन लिस्टेड’ सेक्शन आने पर आवंटित शेयरों का औपचारिक ढंग से कारोबार करना संभव होगा। ऐसी स्थिति में जिस प्राथमिक निवेशक को आईपीओ में शेयर मिले हैं, वह शेयरों की औपचारिक सूचीबद्धता की प्रतीक्षा किए बिना ही पारदर्शी लेनदेन के जरिये उन्हें बेचकर कमाई कर लेगा। एक बार शेयर के द्वितीयक बाजार में सूचीबद्ध हो जाने के बाद शेयरधारकों के नाम में बदलाव करके आवंटन के ऐसे कारोबार को नियमित किया जा सकता है।
मौजूदा हालात के मुताबिक तो इसे कुछ हद तक सुधार ही माना जाएगा। ग्रे मार्केट में लेनदेन की कीमत अस्पष्ट है और उसकी पुष्टि कर पाना नामुमकिन है। ऐसे में यह अवधारणा निवेशकों और विश्लेषकों के लिए बेहतर मूल्य खोज को संभव बनाएगी। परंतु यह तभी होगा जब ‘व्हेन लिस्टेड’ सेक्शन में बोली और पेशकश मूल्य तथा वॉल्यूम डेटा प्रदर्शित हो रहा हो। ठीक वैसे ही जैसा कि द्वितीयक बाजार कारोबार में होता है।
इसके साथ ही यह शायद उन हालात को भी संभालने का काम करेगा जहां ग्रे मार्केट में कीमतों की हलचल पर नजर रखने की प्रभावी व्यवस्था नहीं होने के कारण शेयर अक्सर बहुत ऊंचे प्रीमियम पर सूचीबद्ध होते नजर आते हैं। अगर शेयर की कीमत में इजाफा होता है तो सूचीबद्ध होने पर अचानक जानकारी मिलने के बजाय ‘व्हेन लिस्टेड’ सेक्शन में पहले ही इसका पता चल जाएगा। ऐसी प्रणाली से उन मामलों में देय कर को भी स्पष्ट किया जा सकेगा जहां आईपीओ आवंटियों ने पूंजीगत लाभ के लिए तुरंत नकदी निकाल ली है।
बहरहाल, जरूरी नहीं कि ऐसे उपाय सटोरिया गतिविधि को नियंत्रित करे लेकिन प्राथमिक बाजार को नियंत्रित करने वाले अन्य उपायों के साथ, खासकर लघु और मझोले उपक्रम जैसे कम नियमित उपक्रमों के साथ यह निवेशकों और अधिकारियों को बाजार की बेहतर निगरानी में सक्षम बनाएगा। इसके अलावा अगर सेबी आवंटन और सूचीबद्धता के बीच समय सीमा कम करता है तो यह ग्रे मार्केट कारोबारियों के लिए एक और दिक्कत होगी क्योंकि उनके पास अपने परिचालन के लिए समय और कम हो जाएगा।
तकनीक और उसे अपनाने में सुधार को देखें तो उसने भारतीय शेयर बाजारों में सौदों के निपटान का समय कम करने में मदद की है। नियामकों को ऐसे तरीके तलाशने चाहिए ताकि आवंटन और सूचीबद्धता के बीच समय और कम हो। इसे एक दिन करने का प्रयास किया जाना चाहिए। कुल मिलाकर आईपीओ बाजार में विगत 18 महीनों में बहुत ऊंची और अधिक गतिविधियां देखने को मिली हैं। मुख्य श्रेणी और एसएमई दोनों वर्गों के आईपीओ में निवेशकों ने काफी रुचि दिखाई है।
वर्ष 2024 में 91 कंपनियों ने 1.6 लाख करोड़ रुपये की राशि जुटाई। कई इश्यू को 100 गुना सबस्क्रिप्शन मिला जिसका अर्थ यह है कि एक आवंटन हासिल करना एक लॉटरी जीतने के समान था। परिणामस्वरूप कई शेयरों को इश्यू मूल्य से बहुत ऊंचे प्रीमियम पर सूचीबद्धता मिली। बदले में, आवंटियों को भारी मुनाफा हुआ और लोगों की इसमें रुचि बढ़ी। इसके चलते ग्रे मार्केट गतिविधियों में हलचल बढ़ी क्योंकि वहां सूचीबद्धता के पहले ही कारोबार संभव था। नए प्रस्तावित हिस्से के पीछे एकदम सहज तर्क है: अगर निवेशक इस समय सीमा के भीतर कारोबार करना चाहते हैं, तो उन्हें विनियमित क्षेत्र में इसकी इजाजत होनी चाहिए। यह समझदारी भरा रवैया है।
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