लाइलाज बेरोजगारी
इलमा अज़ीम
भारत में आज बेरोजगारी चिंता का विषय बनी हुई है। प्रसिद्ध अर्थशास्त्री एवं विचारक रुडोल्फ ज्ञान डी मैलो के अनुसार ‘बेरोजगारी वह परिस्थिति है, जिसमें एक व्यक्ति इच्छा होने के बावजूद वैतनिक व्यवसाय की स्थिति में नहीं होता है।’ देखा जाए तो ऐसी परिस्थितियों से हममें से अधिकतर लोग अपने-अपने जीवन में कभी न कभी अवश्य गुजरे होते हैं।
वहीं अनेक लोगों के जीवन में तो हमेशा ही ऐसी ही स्थितियां बनी रहती हैं। अर्थात लोग जीवनभर बेरोजगार ही बने रहकर किसी प्रकार अपने जीवन की गााड़ी को ढोते रहते हैं। हालांकि, देश की अर्थव्यवस्था पहले के मुकाबले आज बहुत अच्छी स्थिति में पहुंच चुकी है, किंतु रोजगार के मामले में हम आज भी फिसड्डी बने हुए हैं। 140 करोड़ आबादी वाला भारत आज एक अत्यंत भयावह आपदा के मुहाने पर खड़ा है और वह है बेरोजगारी की आपदा। हालत यह है कि चपरासी के लिए निकली सरकारी नौकरी की भर्ती में स्नातक एवं स्नातकोत्तर उत्तीर्ण और वह भी निर्धारित पद-संख्या के मुकाबले कई-कई गुना अधिक अभ्यर्थियों द्वारा आवेदन किया गया था, जो यह बताने के लिए काफी है कि देश में आज बेरोजगारी एक अभिशाप का रूप ले चुकी है। जरा सोचिए कि देश में युवाओं की मनोदशा कैसी होती जा रही है, कि स्नातक एवं स्नातकोत्तर उत्तीर्ण अभ्यर्थी अपने जीवन की दशा सुधारने के लिए चपरासी तक बनने के लिए तैयार हो चुके हैं।
यहां पर गौर करने की बात यह है कि किसी भी व्यक्ति के लिए चपरासी होना कोई बुरी बात नहीं होनी चाहिए, परंतु यह भी सौ प्रतिशत सत्य है कि जब कभी कोई युवा उच्च तथा उच्चत्तर शिक्षा प्राप्त करता है तो वह यह तो कदापि नहीं सोचता कि अपनी शिक्षा-दीक्षा पूरी करने के बाद वह चपरासी की नौकरी करेगा। सच कहा जाए तो ये परिस्थितियां यह साबित करती हैं कि भारत में बेरोजगारी अब बीमारी या कहा जाए कि महामारी का रूप ले चुकी है, जिसे नियंत्रित करने अथवा रोकने के लिए आवश्यक ‘वैक्सीन’ के निर्माण में हमारी तमाम राज्यों एवं केंद्र की सरकारें अब तक असफल ही रही हैं।
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