दरकते रिश्ते

इलमा अजी 
यह कैसा दौर है? कैसे रिश्ते हैं? वैवाहिक संबंध बेचे जा रहे हैं? ये सवाल, ये मुद्दे इसलिए उठे हैं, क्योंकि एक बहुराष्ट्रीय कंपनी में डीजीएम के पद पर कार्यरत, एआई इंजीनियर, 34 वर्षीय अतुल ने वैवाहिक उत्पीडऩ से तंग आकर आत्महत्या कर ली। मौत से पहले उस नौजवान ने जो वीडियो सार्वजनिक किया और 24 पन्नों का आत्महत्या नोट लिखा, वे थर्राने वाले दस्तावेज हैं। यह कैसा समाज बन गया है, जहां सिर्फ स्त्री और पुरुष हैं, कोई सामाजिक रिश्ता नहीं है। रिश्ते दरक रहे हैं, तो परिवार टूट रहे हैं और आपसी सम्मान भी विलुप्त हो रहे हैं। हमने ऐसा पश्चिमी देशों के संदर्भ में सुना था, लेकिन अब भारतीय संस्कृति में भी संबंधों और मूल्यों को खरोंचा जा रहा है।

 हम नारीवाद, महिला सशक्तिकरण के विरोधी भी नहीं हैं। घरेलू हिंसा, झूठे आरोप और उत्पीडऩ, आर्थिक लूट के शिकार पुरुष भी हो रहे हैं। उनके लिए विशेष कानून क्यों नहीं हैं? बलात्कार, यौन उत्पीडऩ, घरेलू हिंसा, दहेज की मांग के झूठे केस भी दर्ज होते रहे हैं। अदालतों के जरिए ऐसे मामले भी सुर्खियां बनते रहे हैं। स्त्री को निर्णायक तौर पर दंडित करने वाले कानून क्यों नहीं हैं। समाज में पुरुष भी उतनी महत्वपूर्ण और अनिवार्य ईकाई है, जितनी महिला है। उस युवक ने अदालती व्यवस्था को भी बेनकाब किया, क्योंकि महिला जज ने 5 लाख रुपए की घूस मांगी थी। जज ने हंसते हुए व्यंग्य किया था, ‘नहीं तो जिंदगी भर तुम और तुम्हारा परिवार अदालत के धक्के खाते रहना। नौबत आत्महत्या की भी आ सकती है, लिहाजा 5 लाख में मैं तुम्हारा केस सेटल कर सकती हूं।’ 



युवा इंजीनियर अदालत की व्यवस्था से भी उत्पीडि़त था। केस की 58 तारीखें लग चुकी थीं। वह बंगलूरु से जौनपुर, यूपी में हर तारीख पर नहीं आ सकता था। उसे पत्नी की 3 करोड़ रुपए के गुजारा भत्ता की मांग भी सवालिया लगी। अंतत: आत्महत्या का फैसला लिया, ताकि पैसा देने वाली ईकाई ही समाप्त हो जाए। आत्महत्या नोट में इंजीनियर ने लिखा- ‘यदि मुझे इंसाफ न मिले, तो मेरी अस्थियां अदालत के पास वाले गटर में बहा दी जाएं।’ कितना मार्मिक और पराजित कथन है यह! दरअसल हम किसी निष्कर्ष पर नहीं पहुंच रहे हैं। आत्महत्या नोट ‘सत्य की पराकाष्ठा’ माना जाता है। मरने से पहले नौजवान इंजीनियर ने जो कुछ लिखा है, हम उसके आधार पर ही विश्लेषण कर रहे हैं और कुछ सवाल उठाए हैं। अदालत का फैसला आना है। 


हमारे कानून नारीवादी हैं। यदि स्त्री हिंसा या उत्पीड़न अथवा शोषण की शिकायत दर्ज कराती है, तो पुरुष पक्ष के कई लोगों को जेल में भेजा जा सकता है। बाद में वह शिकायत फर्जी भी साबित हो सकती है। ऐसे कानून में संशोधन किया जाना चाहिए। 

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