गंगा स्नान मेले में श्रद्धालुओं के रात्रि विश्राम के लिए तैयार हो रही, चटाईयां
हापुड़।खादर क्षेत्र में गंगा किनारे कार्तिक पूर्णिमा के अवसर पर विशाल मेला आयोजित होगा। मेले को लेकर जिला पंचायत सहित प्रशासनिक अधिकारियों ने मेले को भव्य रूप देने की भी तैयारी शुरू कर दी गई है। 7 नवंबर से 16 नवंबर तक आयोजित होने वाले उक्त मेले में काफी संख्या में श्रद्धालुओं आस्था की डुबकी लगाएंगे। गंगा किनारे मेला रेतीले मैदान पर लगता है। जिसमें श्रद्धालुओं को रात्रि विश्राम के लिए पटेर की चटाई की आवश्यकता होती है। उक्त चटाई का कारोबार गढ़ नगर में बड़े स्तर पर किया जाता है। मेले में इस बार फिर से पटेर की चटाई के कारोबार को संजीवनी मिलेगी। उक्त कारोबार करने वाले लोगों ने अभी से ही विभिन्न स्थानों से कच्चा माल मंगवाना शुरू कर दिया है,बता दें कि नगर के प्राचीन गंगा मंदिर के नीचे बसे सैकड़ों परिवार हस्तशिल्प कारीगरी से जुड़ी चटाई बनाने की अद्भुत कला को पुश्तैनी ढंग में सैकड़ों वर्षों से करते आ रहे हैं। मोहल्ला चटाई वाला में रहने वाले लोग भूमिहीन हैं, जो इधर उधर नौकरी करने की बजाए चटाई बनाकर अपने परिवारों की जीविका चला रहे हैं। गढ़ क्षेत्र से निर्मित चटाई की सप्लाई पंजाब, हरियाणा, उत्तराखंड, दिल्ली सहित प्रदेश स्तर पर है।
इन चटाई का उपयोग मुख्य रूप से आलू की खुदाई, आम और कटहल की फसल को पाले से बचाने, कोल्ड स्टोर, धार्मिक मेलों के दौरान जमीन पर बिछाने से लेकर अस्थाई शौचालय बनाने समेत विभिन्न कामों में किया जाता है। लगभग 12 घंटे में चार कारीगार एक दिन में 15 से 20 चटाई तक तैयार कर लेते हैं। एक कारीगर प्रतिदिन 500 से 600 रुपये तक कमा लेता है। गढ़ खादर, ब्रजघाट, अमरोहा के तिगरी धाम, मेरठ के मखदूमपुर, मुजफ्फरनगर के शुक्रताल, बिनजौर की विदुर कुटी, बुलंदशहर के अनूपशहर और नरौरा सहित विभिन्न स्थानों पर कार्तिक माह में गंगा किनारे लक्खी मेलों का आयोजन होता है। जिनमें चटाई की बड़े स्तर पर खपत होती है। जिसके मद्देनजर मेला प्रारंभ होने से महीनों पहले गढ़ के कारीगर चटाई बनाकर उनका स्टाक करने लगते हैं, ताकि मेलों से होने वाली डिमांड को पूरी किया जा सके। मेले को लेकर उक्त कारीगरों ने विभिन्न स्थानों से कच्चा माल लाकर चटाई बनाने का काम शुरू कर दिया,ताकि मेले में उनका स्टाक कम न पड़े।
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