कानून हो प्रभावी
इलमा अजीम 
हाल ही के दिनों में बच्चों व महिलाओं के खिलाफ बढ़ते अपराधों को लेकर देशव्यापी चिंता कई मंचों से उजागर हुई है। देश के राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो यानी एनसीआरबी के वे आंकड़े विचलित करते हैं, जिसमें कहा गया था कि साल 2022 में भारत में हर घंटे में औसतन 18 बच्चे अपराधों के शिकार बने। वहीं पिछले एक दशक में महिलाओं के खिलाफ अपराधों में 75 फीसदी वृद्धि की बात एनसीआरबी ने स्वीकारी है। विडंबना यह है कि एनसीआरबी केवल उन्हीं अपराध के आंकड़ों का उल्लेख करता है, जो थानों में दर्ज होते हैं। दरअसल, बच्चों के खिलाफ बड़ी संख्या में होने वाले अपराध अक्सर दर्ज ही नहीं होते। कानूनी जानकारी न होने और थानों व कचहरियों के चक्कर काटने से बचने के लिये अभिभावक कई मामलों में रिपोर्ट दर्ज ही नहीं करवाते। कुछ मामलों को पुलिस दर्ज करने से बचती है। दरअसल, बच्चों के खिलाफ अपराध केवल हमारे सामाजिक व्यवस्था में ही नहीं बढ़े, बल्कि इसका दायरा वर्चुअल दुनिया में भी तेजी से बढ़ा है। बच्चों के खिलाफ साइबर अपराधों में खासी तेजी आई है।


 चौंकाने वाली बात यह है कि वर्ष 2022 में बच्चों के विरुद्ध पहले साल के मुकाबले बत्तीस फीसदी अधिक साइबर अपराध दर्ज हुए। जो निरंतर गंभीर होती स्थिति को दर्शाते हैं। हाल के दिनों में स्कूल-कालेजों में ऑनलाइन पढ़ाई का दायरा बढ़ने और मोबाइल की सहज उपलब्धता से बच्चों की इस क्षेत्र में सक्रियता बढ़ी है। सस्ते इंटरनेट व मोबाइल फोन ने बच्चों के लिये सोशल मीडिया व गेमिंग की दुनिया में पहुंच आसान बनायी है। लेकिन बच्चे इंटरनेट की आपराधिक दुनिया से अनभिज्ञ हैं। उन्हें इन खतरों से बचाव का प्रशिक्षण न तो स्कूल में दिया जाता है और न ही पुरानी पीढ़ी के अभिभावक दे पाए। 



जिसके चलते ही वे साइबर अपराधियों का आसान शिकार बनते हैं। आज इंटरनेट के खुले और छिपे स्वरूप पर अपराधों की एक ऐसी समांतर दुनिया संचालित है, जिन्हें दुनिया की ताकतवर सरकारें भी नियंत्रित नहीं कर पा रही हैं। दरअसल, अधिकांश बच्चे इस चुनौती के मुकाबले के लिये डिजिटली साक्षर नहीं हो पाए हैं। इसके लिये साइबर कानून को अधिक सशक्त व प्रभावी बनाने की जरूरत है। 
 लेखिका एक स्वत्रत पत्रकार 

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