हाशिए की आवाज थे कवि हीरालालः शिवानंद मिश्र
- डा. अवनीश यादव
प्रयागराज। प्रयागराज की एक शाम, बहुत ही स्तब्धता और भीगी आँखों के साथ अपने शहर के एक मकबूल जनकवि को याद कर रही थी। अंजुमन-रूह-ए-अदब सभागार में तीनों लेखक संगठन क्रमशः प्रलेस, जलेस और जसम के दानिशवरों ने कवि हीरालाल जी को शिद्दत से याद किया।
कार्यक्रम का संयोजन धर्मेंद्र और बसंत त्रिपाठी ने किया। मंच की अध्यक्षता कवि हरीश चंद्र पांडेय कर रहे थे। उनके साथ अनीता गोपेश, प्रणय कृष्ण, अजामिल जी और हीरालाल की पत्नी उमा मौजूद रहीं। कार्यक्रम का संचालन प्रकर्ष मालवीय ने किया। कार्यक्रम की शुरुआत में उन्होंने बताया कि इलाहाबाद विश्वविद्यालय में शमशेर जन्मशती पर केदारनाथ अग्रवाल के साथ हीरालाल ने काव्यपाठ किया था तब पहली बार उन्होंने देखा था। उसके बाद दूधनाथ सिंह जी ने कविताएं चुनकर प्रकाशित कराया। संगम लाल जी ने कंपोज किया।
शिवानंद मिश्र ने कहा मंचों पर आने में, खुद को अभिव्यक्त करने, रेखांकित करने के मामले में वे बड़े संकोची व्यक्ति थे इतने संकोची कि खुद इस दुनिया से चले भी गये और हमें पता भी नहीं चला एक लंबे समय तक । वे ज्यादा पढ़ते थे कम लिखते थे। इलाहाबाद के सभी गोष्ठियों में मौजूद रहते। वे हाशिए की आवाज़ थे, जीवटता से भरे हुए।
मोहन लाल यादव ने कहा हीरालाल अपनी कविता में टेंपोचालक और भैंस को कविता का कथ्य बना लेते थे। वे माटी के कवि थे। पुत्र अगमलाल यादव ने उनकी स्मृतियों को बहुत भावुकता से याद किया। उन्होंने बताया कि कैसे पिता हीरालाल जी ने सदैव सच्चाई, ईमानदारी और परोपकार के मार्ग पर चलना सिखाया।
प्रो. बसंत त्रिपाठी ने कहा कि इतनी सघन और मार्मिक कविताओं के बाद एक साइलेंट जोन में चला जाता है। एक बोलने वाला कवि जब अपना बोलना स्थगित कर देता है तो किसी भी स्वस्थ समाज के लिए यह सबसे ज्यादा सोचने का विषय है। हमें हीरालाल जी के बहाने अपने समय और समाज को समझना होगा कि कैसे उछलता हुआ व्यक्ति सबके सामने आ जाता है पर एक परिदृश्य से ओझल दूर शांति से काम करता व्यक्ति चर्चा के बाहर रहता।
प्रियदर्शन मालवीय ने कहा कि मैंने सबसे पहले उनकी कविताएं नया ज्ञानोदय में पढ़ी । हीरालाल जी कुलीन नहीं थे। यदि वे कुलीन होते तो शायद अधिक चर्चा होती। प्रो अनीता गोपेश ने कहा जिस तरह वे अपनी बच्चियों की सफलता की खुशी देते थे मुझे उनमें अपनी पिता की छवि देखी।
अजामिल ने बहुत भावुक ढंग से अपने कवि को याद करते हुए कहा हीरालाल जी से मेरी मुलाकात तब हुई जब मैं समकालीन राजनीति का संपादन करता था। उनकी तीन प्रगतिशील कविताएं उसमें मैंने प्रकाशित की। वे अपनी दुकान पर आने वाले को मिठाई जरूर खिलाते थे। वे अपनी साधरणता में असाधारण थे।
प्रो. प्रणय कृष्ण ने कहा कि विनम्रता के साथ उनके भीतर मेहनतकशों का स्वाभिमान था। हीरालाल जी कबीर के साथ मुक्तिबोध के भी गोती थे।
कार्यक्रम की अध्यक्षता कर रहे वरिष्ठ कवि हरीशचंद्र पांडेय जी ने कहा मुझे उनके न रहने की खबर कवि संतोष चतुर्वेदी से मिली। बच्चे कैसे पढ़ेंगे व्यवसाय कैसे चलेगा उस समय ये कविताएं सबके सामने आईं और जब उनके जीवन में निश्चिंतता का समय आया तब वे परिदृश्य से दूर हो गये।
इस गोष्ठी में अविनाश मिश्रा, असरफ अली बेग, आनंद मालवीय, संगमलाल जी, अनीता त्रिपाठी, मोहनलाल यादव, प्रेमशंकर सिंह, शिवानी, मारुति मानव, अंशु मालवीय, अवनीश यादव, केतन यादव, शशिभूषण, श्वेतांक तथा परिवार में उमा जी पत्नी बेटे अयान उनकी मां और परिवार के अन्य सदस्य उपस्थित होकर उनको याद करते हुए माल्यार्पण किया और श्रद्धांजलि दी ।
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